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कासिम सुलेमानी जिनकी मौत ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल दिया है?

कासिम सुलेमानी, एक ऐसा नाम जिसे 3 जनवरी के बाद पूरी दुनिया जानना चाहती है। वे एक ऐसे शख्स थे, जिनकी मौत ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की देहलीज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।

ईरान की कुद्स सेना के सबसे बेहतरीन सैन्य अधिकारी कासिम सुलेमानी को अमेरिका ने 3 जनवरी 2020 को बगदाद हवाई अड्डे के निकट एक ड्रोन हमले में मार गिराया।

कासिम सुलेमानी का मृत शरीर, फोटो साभार- ट्विटर

ज़िंदगी में बहुत संघर्ष देखे

11 मार्च 1957 को ईरान के केरमान प्रान्त में जन्में कासिम सुलेमानी ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि आगे जाकर वे विश्व की महाशक्ति की आंखों में खटकने लगेंगे।

सुलेमानी ने अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत अपने परिवार पर लदे ऋण से लड़ते हुए की थी। परिवार के लिए संघर्ष करते-करते सुलेमानी ने धीरे-धीरे पूरे ईरान को ही अपना परिवार बना लिया।

वर्ष 1979 में हुई ईरानी क्रांति ने सुलेमानी की ज़िन्दगी में भी क्रांति ला दी। ईरानी क्रांति ने ईरान में 2500 साल पुराने पर्शियन साम्राज्य का खात्मा कर दिया। जिसके बाद आयतुल्लाह खुमैनी ने सत्ता संभाली और 22 अप्रैल 1979 को इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आई.आर.जी.सी) की स्थापना की। कुद्स सेना इसी आई.आर.जी.सी. का एक अंग है, जिसमें वर्ष 1979 में सुलेमानी ने अपने गृह प्रान्त से योगदान दिया था।

कासिम सुलेमानी, फोटो साभार- ट्विटर

इसके कुछ दिनों बाद ही सद्दाम हुसैन ने ईरान पर आक्रमण कर दिया, जिसे इतिहास में ईरान-इराक युद्ध(1980-1988) के नाम से जाना जाता है। आठ वर्षों तक चले इस युद्ध का परिणाम तो कुछ नहीं हुआ लेकिन ये युद्ध सुलेमानी को अपना युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता दिखाने का एक मौका दे गया।

कुद्स सेना के कमांडर बने

सुलेमानी ने इस युद्ध के माध्यम से अपनी साख बनाई जिसके फलस्वरूप, 1998 में उन्हें केरमान प्रांत में कुद्स सेना का कमांडर नियुक्त किया गया। कमांडर नियुक्त होने के बाद सुलेमानी ने पूरे मध्य एशिया में ईरान के प्रभाव को बढ़ाना शुरू किया, जिसकी शुरुआत पड़ोसी देश इराक से ही हुई।

इराक के शिया और कुर्दों को एकसाथ लाकर उन्हें सद्दाम हुसैन के विरुद्ध करने में सुलेमानी का ही हाथ था।

अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते विवाद ने सुलेमानी को सबसे प्रभावशाली सैन्य अधिकारी के रूप में विश्व के सामने रखा। वर्ष 2007 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से कुछ ईरानी सैन्य अधिकारियों और राजनेताओं पर प्रतिबंध लगवा दिए। उस सूची में कासिम सुलेमानी का भी नाम था।

कासिम सुलेमानी, फोटो साभार- ट्विटर

प्रतिबंधों के साथ- साथ बने कुद्स सेना के मेजर जनरल

इसी बीच वर्ष 2011 में सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हो गए, जिसमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-अशद के लिए सुलेमानी एक रणनीतिकार के रूप में सामने आए। सुलेमानी की नीतियों और रूस के साथ से राष्ट्रपति अशद को, अपने कई शहरों को विद्रोहियों से वापस लेने में बड़ी कामयाबी मिली।

18 मई 2011 को अमेरिका ने सीरियाई सरकार को मदद पहुंचाने की बात कहते हुए, सुलेमानी पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिए। इस बार प्रतिबंध में सीरिया के राष्ट्रपति तक के भी नाम शामिल थे।

ISIS को जड़ों से उखाड़ा

इन सभी घटनाक्रमों के बीच सुलेमानी का कद अपने देश में बढ़ता जा रहा था। 24 जनवरी 2011 को ईरान के शीर्ष नेता अली खुमैनी ने कमांडर सुलेमानी को कुद्स सेना का मेजर जनरल बना दिया। यह पद किसी भी सैन्य अधिकारी के लिए सबसे बड़ा पद होता है।

इराक और सीरिया में ISIS को जड़ों से उखाड़ फेंकने में जो सबसे बड़ा नाम सामने आता है, वह मेजर जनरल कासिम सुलेमानी का ही है। इराक में हश्द-अल-शाबी ने ISIS के साथ युद्ध में इराक सरकार का बखूबी साथ दिया था। हश्द-अल-शाबी इराक में कार्य करने वाले मिलिशिया समूह हैं, जो सुलेमानी के नेतृत्व में ही कार्य कर रहा था।

कासिम सुलेमानी ईरान के ही नहीं बल्कि पूरे मध्य एशिया के एक सबसे ताकतवर सैन्य अधिकारी के रूप में उभरे। उन्हें ईरान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘आर्डर ऑफ ज़ोलफाघर’ भी दिया गया है। ‘द फतह मेडल’ भी उनके वर्दी पर मौजूद था।

कासिम सुलेमानी की शोक सभा में उमड़ा लोगों का हूजूम, फोटो साभार- ट्विटर

वर्ष 2019 में अमेरिका ने इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स को एक आतंकी संगठन घोषित कर दिया और इसी घोषणा को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी राट्रपति ट्रम्प ने कासिम सुलेमानी की मौत की नीति रची।

भारत के लिए सुलेमानी कितने महत्वपूर्ण?

हालांकि भारत और ईरान का संबंध मूलतः व्यापार का ही रहा है, लेकिन कई ऐसे मौके आए जब मेजर जनरल सुलेमानी ने भारत का साथ दिया है। जैसे,

  1. इराक के शहर टिकरीट में ISIS के पास बंधक बनी 46 नर्सों को छुड़ाने में इराकी सेना के साथ जो मिलिशिया समूह ने संयुक्त जंगी करवाई की थी, उसका नेतृत्व मेजर जनरल कासिम सुलेमानी ही कर रहे थे।
  2. कुलभूषण जाधव प्रकरण में पाकिस्तान ने ईरान से मांग की थी कि वह भारत को अपनी ज़मीन का प्रयोग ना करने दे। पाकिस्तान ने दलील दी थी कि भारत पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों के लिए ईरान की ज़मीन का प्रयोग कर रहा है। उस वक्त भी सुलेमानी भारत के पक्ष में खड़े थे।
  3. चाबहार बंदरगाह को लेकर भारत-चीन में चल रहे गतिरोध में भी सुलेमानी भारत के साथ नज़र आए। मालूम हो कि मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक अपनी पहुंच बढ़ाने और पाकिस्तान के जलमार्ग का प्रयोग खत्म करने के लिए चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कासिम सुलेमानी की शोक सभा में लोगों द्वारा अमेरिका के खिलाफ प्रदर्शन, फोटो साभार- ट्विटर

सुलेमानी की मौत का भारत पर असर

सुलेमानी की मौत का प्रभाव भारत पर भी कई तरीकों से पड़ सकता है।

कासिम सुलेमानी की मौत की खबर से पूरी दुनिया हतप्रभ है। अपने सबसे चहेते सैन्य अधिकारी, जिसकी प्रसिद्धि के कारण उसे भविष्य के राष्ट्रपति के रूप में देखने वाली ईरानी जनता आज उसकी मौत पर गमज़दा है।

ईरान और अमेरिका एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं। युद्ध और शांति में ये दोनों देश किसे चुनेंगे, संपूर्ण विश्व इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहा है।

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