Site icon Youth Ki Awaaz

मेरठ में हुआ इंटरनेट शटडाउन मेरी ज़िंदगी का शटडाउन था

मनुष्य की इच्छाएं बहुत हैं। कुछ पूरी होती हैं, तो कई अधूरी रह जाती हैं, लेकिन तब क्या हो जब हमें पता है कि यह काम कैसे होगा और समय पर पूरा भी हो जाएगा, लेकिन तभी कोई दूसरा आकर कह दे कि ‘माफ करिए आप यह काम अभी नहीं कर सकते’।

प्रतीकात्मक तस्वीर

कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ जिसका कारण इंटरनेट शट-डाउन था। पिछले दिसंबर, वर्ष 2019 में मैं ‘Youth Ki Awaaz Summit’ में ट्रेनिंग के लिए मेरठ से नई दिल्ली जा रहा था।

मेरठ से नई दिल्ली जाना असंभव सा हो गया

उन दिनों बिना बात ‘कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा भानूमति ने कुनबा जोड़ा’ मुहावरे को सिद्ध करते हुए पता नहीं कहां कहां से लोग दिल्ली में CAA और NRC के विरोध के लिए पहुंचे और ऐसा उपद्रव मचाया कि मेरा मेरठ से नई दिल्ली जाना असंभव सा हो गया है।

हमेशा देखा गया है कि कहीं कुछ हुआ नहीं कि मेरठ में इंटरनेट शट-डाउन। बस इसी के साथ मेरठ में भी उस दिन नेट बंद कर दिया गया, वह भी पूरे 48 घंटों के लिए। इसका एक कारण यह भी है कि “मेरठ” अति-संवेदनशील शहरों में आता है। एहतियात बरतते हुए प्रशासन ने यह कदम उठाया था।

इस कदम से सभी स्मार्ट फोन यूजर्स परेशान थे, चाहे बुजु़र्ग ही क्यों ना हो। युवा तो ऐसे हो गये जैसे मछली से कहा गया हो कि 48 घंटे बिना पानी के रहो, लेकिन उन मछलियों में मतलब युवाओं में मैं भी था, जो यह सोच रहा था कि ट्रेनिंग में जाऊं या नहीं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

नेट बंद होने के बाद ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे एक हाथ कट गया हो। इंटरनेट शट-डाउन की वजह से ना तो यह देख पा रहा था कि कौन सी ट्रेन है दिल्ली के लिए और न ही कोई अपडेट मिल पा रहा था।

घरवाले भी थे परेशान

मैं बहुत परेशान, लेकिन मुझसे भी ज़्यादा परेशान थीं मेरी माँ। बार-बार फोन करके कहती कि ‘मत जा, कैसे करेगा अकेले, नेट तो बंद है’ लेकिन मुझे आना था, तो आना था। जैसे-तैसे करके मैं एक ट्रेन में चढ़ा और खड़े-खड़े ही नई दिल्ली पहुंचा। रात तो नहीं लेकिन अंधेरा हो चला था। दिल्ली में नेट चला तो पता लगा कि ज़्यादातर मेट्रो स्टेशन बंद हैं।

अगर मेरठ में नेट बंद ना हुआ होता, तो मैं दिल्ली आता ही नहीं क्योंकि मुझे पहले ही पता लग गया होता कि दिल्ली की क्या स्थिति है। बड़ी मुश्किल से तीन गुना पैसा देकर मैं आटो से गंतव्य तक पहुंचा और ट्रेनिंग अटेंड की लेकिन अफसोस मैं काफी देर से पहुंचा था।

सावन कनौजिया

तो अब तक शायद आपको पता लग गया होगा कि मैं कौन सी तारीख की बात कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं 19 दिसंबर की। जिसे मैं अपनी जिंदगी का शट-डाउन मानता हूं। क्योंकि नेट बंद होने की वजह से,

मिला कुछ नहीं, केवल एक चीज़ का गुस्सा कि “इंटरनेट शट-डाउन” हुआ क्यों ?

Exit mobile version