नागरिकता कानून और वोट बैंक को लेकर भारत में सियासी जंग शुरू हो चुकी है। इस बीच देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए और अभी भी हो रहे हैं। कई जगह ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहें लेकिन कई जगह कुछ उपद्रवियों की वजह से इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। कई जगह पुलिसकर्मियों ने भी हिंसक रूख अपनाया। इन सबके बीच कई सार्वजनिक संपत्तियों को जलाया गया, उन्हें नष्ट किया गया।
हिंसा पर उतारू भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यदि अभी तक हुई हिंसा के आंकड़ों पर एक नज़र डालें तो,
- 27 दिसम्बर तक सिर्फ उत्तर प्रदेश में 288 पुलिसकर्मी घायल हुए, जिनमें 61 पुलिसकर्मीयों को गोली लगी है,
- पुलिस के मुताबिक हिंसा के दौरान अभी तक 19 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
- 10 दिसंबर से अब तक विभिन्न ज़िलों में 327 से अधिक मुकदमें दर्ज करके 1113 आरोपितों की गिरफ्तारी और करीब 6000 व्यक्तियों को हिरासत में लेकर उनके खिलाफ निरोधात्मक कार्यवाही की गई है।
- प्रदर्शनकारियों ने 1000 राउंड से भी अधिक फायरिंग की है। अभी तक 405 रिवॉल्वर, कट्टे और खाली कारतूस बरामद किए गए हैं।
सोशल मीडिया पर CAA के विरोध में भ्रामक व भड़काऊ पोस्ट के मामले में पुलिस ने 93 मुकद्दमें दर्ज कर, 124 आरोपितों को गिरफ्तार किया है, 19409 आपत्तिजनक पोस्टों के खिलाफ कार्यवाही की जा चुकी है।
उग्र प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा की आग में ना सिर्फ करोड़ों की संपत्ति जलकर स्वाहा हो गई, बल्कि इसका बुरा असर जनसामान्य के साथ-साथ पर्यावरण व बेज़ुबान पशु-पक्षियों और उद्योग धंधे पर भी पड़ा है।
संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होने और उसके कानून का रूप लेने के साथ ही देश के कई शहरों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश का भी माहौल बदल गया है।
प्रदेश में फिज़ा बनाए रखने की तमाम कोशिशों के बावजूद अलीगढ़ से शुरू हुई आग मऊ से लखनऊ, सम्भल, बुलन्दशहर, गोरखपुर, मेरठ, गाज़ियाबाद, मुज़फ्फरनगर, फरुखाबाद, बिजनौर, कानपुर, वाराणसी सहित कई जनपदों में फैल गई है।
ऐसा ही फिरोज़ाबाद में उस समय देखने को मिला, जब 19 दिसम्बर 2019 को कुछ राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए ज़िला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया। 20 दिसंबर को जुमे की नमाज़ के बाद योजनाबद्ध तरीके से असमाजिक तत्वों ने फिरोज़ाबाद के थाना दक्षिण के सीमा क्षेत्र में लगने वाली चौकी नालबंद और वहां पर मौजूद पुलिसकर्मियों को निशाना बनाते हुए अचानक पथराव शुरू कर दिया, जिसकी कीमत चार लोगों ने अपनी जान देकर चुकाई और कई घायल हुए। इस दौरान लगातार उड़ने वाली अफवाहों के कारण यहां भी पुलिस को गोरिल्ला युद्ध जैसे हालातों का सामना करना पड़ा।
हिंसा का औद्योगिक क्षेत्र एवं व्यापार पर असर
नागरिकता कानून को लेकर जहां कुछ लोग खुश नज़र आ रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसके खिलाफ नज़र आ रहे हैं। विगत दिनों इसके खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में हुईं हिंसा की घटनाओं ने ना सिर्फ सरकारी एवं निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि कई जगह दंगा जैसी स्थिति भी बनी। इसका खामियाज़ा संपूर्ण व्यापार जगत को भुगतना पड़ा। सिर्फ उत्तर प्रदेश से आने वाले आंकड़ों पर नज़र डालें तो अब तक अरबों रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ है और करोड़ों रुपये की संपत्ति भी जलकर राख हो चुकी है।
दैनिक जागरण अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार,
- इंटरनेट सेवाओं के बंद रहने से 2 दिन में सिर्फ वाराणसी में ही लगभग एक हज़ार पांच करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ है,
- जिसमें ऑनलाइन ट्रेडिंग का 350 करोड़,
- उद्योग जगत को 200 करोड़,
- ज्वेलरी कारोबार को 150 करोड़,
- ऑटो क्षेत्र को 150 करोड़,
- इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र को 100 करोड़,
- किराना बाज़ार को 50 करोड़,
- रेडीमेड मार्केट को 5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
- मऊ में लगभग 300 करोड़, आजमगढ़ में 700 करोड़, भदोही में 60 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ है।
इंटरनेट पर रोक लगाए जाने की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद, अलीगढ़, मेरठ, सम्भल सहित कई अन्य स्थानों पर भी हुए नुकसान का आंकलन किया जा रहा है, जो करोड़ों रुपये से अधिक है। इंटरनेट बंद होने की वजह से काफी बड़े स्तर पर कारोबार को नुकसान हुआ है।
हिंसा का पर्यावरण पर असर
अफवाहों के कारण दिल्ली, बांग्लादेश, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में भड़की हिंसा में उपद्रवियों ने जगह-जगह मोटर साइकिल, बस, पुलिस की जिप्सी, फर्नीचर आदि में आग लगा दी और जवाबी कार्यवाही करते हुए पुलिस ने भी उपद्रवियों को कंट्रोल करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे।
इसकी वजह से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड सहित अन्य विषैली गैसों की मात्रा अधिक हो जाने से घटना स्थल के आस-पास रहने वालों को आंखों में जलन के साथ ही सांस लेने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ा। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि मनुष्यों द्वारा की जाने वाली हिंसा का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
हिंसा का सामान्य जनजीवन एवं पशु पक्षियों पर असर
इंसान तो इंसान कई जानवर भी उपद्रवियों द्वारा किए गए पथराव का शिकार हुए। सोशल मीडिया सहित कई माध्यमों से की गई अपील के बाद भी देश में चारों तरफ हिंसा की आग लगी हुई थी, जिसके चलते आर्थिक स्थिति से कमज़ोर दैनिक रोज़गार प्राप्त कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले श्रमिक कभी भी होने वाली अनहोनी की आशंकाओं से दहशत में जी रहे थे, अचानक हुए दंगों के बाद जगह-जगह अघोषित कर्फ्यू जैसे हालात पैदा हो गए।
विकास का पहिया और ज़िन्दगी की रफ्तार थम सी गई, उद्योग धंधे बंद हो गए, लोग अपने ही घरों में कैद हो गए। विवादित क्षेत्रों में खिड़की, दरवाज़े और आने जाने वाले सभी रास्ते बंद हो गए, कई श्रमिकों के घरों में तो राशन भी खत्म हो गया, सिर्फ घर के मुखिया ही नहीं, बुज़ुर्ग, युवा, बच्चों के साथ-साथ मनुष्यों पर आश्रित कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, गाय, सांड, तोता, कबूतर, मुर्गा, बकरा आदि पशु पक्षियों पर भी पड़ा। सभी का जीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गया।