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आहिंसा का पाठ पढ़ते-पढ़ते देश के लोगों को क्या हो गया?

भारत, शब्द सुनते ही शरीर का रोम-रोम खिल उठता है। हैं ना? या नहीं? मेरा तो मन प्रफुल्लित होता है और साथ के साथ मायूस भी हो जाता है और लगता है कि जैसे क्या यह वही भारत है? जिसे गाँधी जी ने अहिंसा के पथ पर चल कर इसको सींचा था?

भारत में ब्रिटिश काल में कितने आंदोलन हुए, हमारे भारत के बुद्धिजीवी वर्ग के अलावा गाँव के बुज़ुर्ग, सब इस बात को भली भांति जानते हैं और अधिकतर आंदोलन अहिंसा के पथ पर चल कर आगे बढ़े थे। वह भारत जो आग की लपटों में और खून की छींटों से सराबोर था। उसके दाग को मिटाने के लिए अहिंसा के पाठ ने अपना विशेष योगदान दिया।

आज के युवा गाँधी जी को गालियां देते हैं, अपशब्द इस्तेमाल करते हैं, मगर आप ज़रा सोचिए कि हमको ब्रिटिश शासन से आज़ाद करवाने वालों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

गाँधी की हिंसा की परिभाषा

गाँधी जी ने हिंसा को दो रूपों में देखा; निष्क्रिय और भौतिक। निष्क्रिय हिंसा का अभ्यास एक दैनिक मामला है, जो सचेत और अनजाने दोनों में हो सकती है। भौतिक हिंसा वह ईंधन है, जो शारीरिक हिंसा की आग को प्रज्वलित करता है। गाँधी जी ने अपने मूल शब्द से हिंसा को समझते हैं, “हिंसा”, जिसका अर्थ है चोट।

मेरा इशारा जामिया के बच्चों या मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश के प्रदर्शनकारियों से है जो हिंसा की खुली चपेट में आए, यह संवैधानिक बिल्कुल नहीं हो सकता,बिल्कुल भी नहीं। यह तो वही कहावत हो गई, “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे”, जी हां, आज की स्थिति को देखते हुए यह बिल्कुल सार्थक है।

भारत बिल्कुल भी गाँधी जी वाला भारत नहीं है। मैं इस स्थिति की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करता हूं। यहां अपनी आवाज़ उठाने वाले देशद्रोही कहलाते हैं,उन पर राजद्रोह का आरोप तक लग जाता है।

मैं अपने माननीय प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहता हूं, कि दंड की सारी संहिंता और धाराएं बस आप जनता के लिए ही हैं? मुझे ऐसा लगता है देश की बागडोर सम्भालने से पहले नेताओं की परीक्षा होनी चाहिए और उनको संविधान से सम्बंधित सवालों के जावाब देने चाहिए, मुझे लगता है संविधान बस एक फॉर्मेलिटी है, जो देश को गुमराह करने के लिए सहारे के तौर पर इस्तेमाल होती है।

हमारा भारत तो अहिंसा के लिए जाना जाता था लेकिन यह हम क्या देख रहे हैं? इस समय देश के कोने-कोने में हिंसा, आगजनी, प्रदर्शन हैं। यह वही स्थिति है, जब देश अंग्रेज़ों की ग़ुलामी में था। हालात और भी बद्तर हैं, क्योकि उस समय देश को नोचने वाले बाहर के विदेशी थे और आज? आज हमारे देश के दुश्मन देश के ही ठेकेदार हैं, देसी हैं, हमारे वतन की हैं और हम जैसे हैं। मगर देश के गद्दार नेता आज देश में हिंसा और अराजकता फैला कर सोच रहे हैं कि इनको अमर रहना है और फसाद फैलाते रहना है।

एक वह थे गाँधी, जिन्होंने अहिंसा को अपना हथियार बना कर देश को एक नई दिशा दी और देश आज़ाद करवाया, मगर अंत में खुद ही हिंसा की भेंट चढ़ गए। वाह, जो देश को बचाने के लिए चला और जिसने अहिंसा का रास्ता अपना कर देश को भूखे भेड़ियों से बचाया उसको ही हिंसा के तहत मौत के घाट उतार दिया। यह कितना दुखदायी है ।यह मेरे संवेग को छिन्न भिन्न कर देता है।

जो अहिंसा रखता है वह धन्य है

गाँधी जी सिखाते हैं कि जो अहिंसा रखता है वह धन्य है।धन्य है वह आदमी जो अपने चारों ओर हिंसा की प्रचण्ड अग्नि के बीच अहिंसा (अहिंसा) के नियम को महसूस कर सकता है।एक सच्चा अहिंसावादी कार्यकर्ता दूसरे पर भड़काने के बिना खुद पर हिंसा स्वीकार करता है मगर किसी दूसरे को हिंसा की सीढ़ियों पर नहीं चढ़ने देता।

हिंसा से निपटने के लिए एक अचूक हथियार की ज़रूरत है और यह अहिंसा है।अहिंसा का अंग्रेजी में अहिंसा का अर्थ सिर्फ अनुवाद करना है, लेकिन इसका मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा से बचना है।अहिंसा का अर्थ है कुल अहिंसा, कोई शारीरिक हिंसा नहीं और न कोई निष्क्रिय हिंसा।

गाँधी अहिंसा को प्रेम के रूप में अनुवादित करते हैं। इस प्रकार अरुण गाँधी द्वारा एक साक्षात्कार में यह समझाया गया है;”उन्होंने (गाँधी) ने कहा कि अहिंसा का अर्थ है प्रेम। क्योंकि यदि आप किसी के प्रति प्रेम रखते हैं, और आप उस व्यक्ति का सम्मान करते हैं, तो आप उस व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने वाले हैं।”मगर यहाँ कुछ और ही हालात हैं, औरतें सड़क पर हैं, और देश के महत्वपूर्ण चेहरे वाले मर्द चार दिवारी के अंदर बन्द। शर्म करो।

महात्मा गाँधी

गाँधी जी के लिए,अहिंसा मानवता निपटान में सबसे बड़ी ताकत है।अहिंसा सामूहिक विनाश के किसी भी हथियार से अधिक शक्तिशाली है।यह सत्ता की एक जीवित शक्ति हैं गाँधीजी की अहिंसा सत्य की खोज है। गाँधी के अहिंसा के दर्शन में सत्य सबसे बुनियादी पहलू है।उनका पूरा जीवन “सत्य के प्रयोग” रहा है मगर आज यह सिर्फ किताबों तक सीमित हो गया है।

अहिंसा को मन से शुरू करना चाहिए

सत्य और अहिंसा पहाड़ियों की तरह पुरानी है। मजबूत और प्रभावी होने के लिए अहिंसा को मन से शुरू करना चाहिए, जिसके बिना यह कमजोर और कायरों की अहिंसा होगी।एक कायर एक ऐसा व्यक्ति है जो खतरनाक और अप्रिय स्थिति का सामना करते समय साहस का अभाव रखता है और इससे बचने की कोशिश करता है।

एक आदमी अहिंसा का अभ्यास नहीं कर सकता और एक ही समय में कायर हो सकता है।सच्ची अहिंसा भय से अलग हो जाती है।गाँधी को लगता है कि हथियारों पर कब्ज़ा न केवल कायरता है, बल्कि निडरता या साहस की कमी भी है।गाँधी ने इस पर ज़ोर दिया जब वे कहते हैं;

मैं एक पूरी तरह से सशस्त्र आदमी की कल्पना कर सकता हूं कि वह एक कायर है। हथियार के भय का एक तत्व है, अगर कायरता नहीं, लेकिन सच्ची अहिंसा असंवैधानिक निर्भयता के कब्जे के बिना असंभव है।

लोगों पर लाठीचार्ज कर के उनके ऊपर गोलियां दाग कर तुम कोई मर्दानगी वाला कार्य नहीं कर रहे, तुम कायर हो, और साथ के साथ बुज़दिल भी।

अहिंसा को अपनाओ, और इस बीच हम गौतम बुद्ध जी के द्वारा अपनाया गया अहिंसा का रास्ता कितना सुलभ और सत्यप्रतिक था। बुद्ध और गाँधी के भारत को क्या हो गया? किसकी नज़र लग गई? आहिंसा का पाठ पढ़ते-पढ़ते देश के लोगों को क्या हो गया? मैं बहुत आहत हूँ, कि गाँधी वाला भारत अब कहीं भी नज़र नहीं आता और शायद कभी नज़र ना आए।

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