देश के विभिन्न हिस्सों में NRC और CAA के विरोध में चल रहे आंदोलनों के बीच दिल्ली के उप-राज्यपाल ने कल से यानी कि 19 जनवरी से 18 अप्रैल तक रासुका लागू कर दिया है।
इसका मतलब है कि रासुका के तहत दिल्ली पुलिस कमिश्नर को यह अधिकार है कि वे किसी भी व्यक्ति जिसे वे राष्ट्रीय सुरक्षा व कानून व्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं, हिरासत में ले सकते हैं। इस कानून के लागू होने से यह माना जा रहा है कि सरकार नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को खत्म करना चाहती है।
हालांकि पुलिस का कहना है कि यह एक रूटीन प्रक्रिया है, जिसका हर तीन महीने में नोटिफिकेशन निकलता है। इसका CAA या चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। उनका कहना है कि इस बार पता नहीं यह नोटिफिकेशन कैसे वायरल हो गया और फिज़ूल में इसे प्रोटेस्ट और चुनाव से जोड़ दिया।
इन सबके बीच हम सबके लिए यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि रासुका है क्या?
क्या है रासुका?
रासुका का मतलब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National security act) है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है।
यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को किसी भी संदिग्ध नागरिक को हिरासत में लेने की शक्ति देता है। यह कानून 1980 में इंदिरा गाँधी सरकार के दौरान बना था। इस कानून के तहत
- किसी भी व्यक्ति को बिना किसी आरोप के केवल संदेह के आधार पर न्यूनतम तीन महीने से लेकर अधिकतम एक साल के लिए हिरासत में रखा जा सकता है।
- पकड़े गए व्यक्ति को पांच दिनों तक गिरफ्तारी या हिरासत में लेने की वजह बताना ज़रूरी नहीं है।
- असाधारण परिस्थितियों में 15 दिनों तक किसी को बिना वजह बताए हिरासत में रखा जा सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उनके खिलाफ आरोप तय किए बिना 10 दिनों के लिए रखा जा सकता है।
- इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को 1 साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।
- गिरफ्तार व्यक्ति उच्च न्यायालय के एक सलाहकार बोर्ड में अपील कर सकता है, लेकिन उसे वकील की सुविधा नहीं दी जाती है।
इस कानून का इस्तेमाल ज़िलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।
रासुका के तहत गिरफ्तार हुए हैं ये लोग
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत 2019 में गोकशी के मामले में मध्यप्रदेश में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर को भी रासुका के तहत गिरफ्तार करते हुए कई महीनों तक जेल में रखा गया था।
वहीं इस कानून के तहत मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को जेल में रखा गया था। सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने पर उन्हें नवंबर 2018 में गिरफ्तार किया गया था। वह 133 दिन जेल में रहे थे।