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जानिए क्या है NPR और NRC में संबंध?

CAA के पास हो जाने के बाद, NRC के साथ विरोध हो रहे हैं। NPR को लोग कुछ नया मान रहे हैं, परन्तु यह नाम नया नहीं है। 2010 में भी NPR हो चुका है।

लोगों में बहुत बड़ा सवाल पैदा कर रहा NPR, दरअसल हकीकत में है क्या? क्यों लोग इसे NRC के साथ जोड़ रहे हैं? क्यों जनगणना होने के बाबजूद सरकार ने इसके लिए ₹3,941 करोड़ रुपए का बजट पास किया? सबको विस्तार से जानने के लिए मेरा यह लेख ज़रूर पढ़ें।

क्या है NPR?

NPR देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। NPR के तहत, एक “सामान्य निवासी” को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो पिछले छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या एक व्यक्ति जो अगले छह महीने या उससे अधिक समय तक उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है। जिसमें नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गाँव / उप नगर), उप-ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी को एकत्र किया जाता है।

एनआरसी और नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

इसमें एकत्र की जाने वाली जनसांख्यिकीय जानकारी होती है। NPR पहली बार 2010 में किया गया था और बाद में 2015 में अपडेट किया गया था। तब इसे आधार के साथ जोड़ा गया था लेकिन जबसे NPR अपडेट की घोषणा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) पर ज़ोरदार विवाद के बीच आई है, जिसके कारण दोनों के बीच व्यापक भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

लोग इसके इतना खिलाफ हैं, जितना कि CAA और NRC के। सरकार NPR और NRC को लेकर अलग-अलग बात कर रही है। वहीं लोगों का मानना है कि NPR ही आगे चलकर NRC में मदद करेगा।

लेखक अरुंधति रॉय ने अपने एक भाषण में कहा कि NPR के लिए जब लोग आपसे आपकी जानकारी मांगे तब उन्हें कुछ भी नाम बता देना जैसे रंगा-बिल्ला आदि, परन्तु अपनी जानकारी नहीं देना, लोगो को यहां तक कहा कि वे कागज़ नहीं दिखाएंगे। अगर आप नागरिकता के नियम 17 को पढ़ें जिसमे कहा गया है कि गलत सूचना के लिए 1000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। परंतु अभी तक गलत सूचना देने वाले या ऐसा करने वाले से कोई भी जुर्माना नहीं वसूला गया है।

जनगणना

क्या-क्या जानकारी NPR के तहत आपसे ली जाएंगी?

NPR का उद्देश्य देश में हर सामान्य निवासी की एक व्यापक पहचान कर उनके आंकड़े तैयार करना है। आंकड़ों में जनसांख्यिकीय और बॉयोमेट्रिक विवरण दोनों शामिल होंगे। इसके तहत आपसे 21 सवाल पूछे जाएंगे जैसे,

  1. आपका नाम
  2. घर के मुखिया से आपका सम्बंध
  3. पिता का नाम
  4. माता का नाम
  5. पति/पत्नी का नाम ( शादीशुदा के लिए)
  6. लिंग
  7. जन्मतिथि
  8. वैवाहिक स्थिति
  9. जन्म का स्थान
  10. नागरिकता
  11. वर्तमान पता
  12. कितने समय से वर्तमान पते पर रह रहे हो
  13. स्थाई पता
  14. व्यवसाय
  15. शैक्षिक योग्यता
  16. मोबाइल नंबर
  17. आधार कार्ड नम्बर
  18. पैन कार्ड नम्बर
  19. मतदाता पहचान पत्र
  20. ड्राइविंग लाइसेंस
  21. हिन्दुस्तानी पासपोर्ट

जब लोगों ने कागज़ ना दिखाने की बात कही, तब गृहमंत्रालय ने कहा कि NPR के दौरान कोई भी दस्तावेज़ पेश करने की ज़रूरत नहीं है। जो भी जवाब आपके द्वारा दिया जाएगा, उसे ही सच्चा माना जाएगा, उसका कोई प्रमाण आपको नहीं देना होगा। ना ही आपको आधार कार्ड दिखाना है और ना ही पासपोर्ट।

NPR के दौरान आपके यहां आने वाला अधिकारी भी आपसे कोई दस्तावेज़ नहीं मांगेगा। “NPR की जानकारी स्वप्रमाणित होगी”।

NPR का काम अप्रैल 2020 से लेकर सितम्बर 2020 तक पूरा किया जाएगा और इस पर काम भी शुरू हो चुका है। NPR सभी राज्यों में होगा सिवाए असम के। असम में NPR नहीं होगा क्योंकि वहां NRC पर काम चल रहा है।

सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना

जनगणना से कितना अलग है NPR?

कैबिनट ने जनगणना के लिए ₹8,500 करोड़ रुपए का बजट पास किया। लोगों के बीच यह भी भ्रम है कि NPR और जनगणना दोनों एक ही हैं, जबकि ऐसा नहीं है। NPR के तहत ली जाने वाली जानकारी में सिर्फ जनसांख्यिकीय विवरण ही शामिल होता है, परंतु जनगणना हिन्दुस्तान की जनता की विभिन्न विशेषताओं पर विभिन्न जन सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है।

जनगणना जनसांख्यिकी, आर्थिक गतिविधि, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाओं, शहरीकरण, प्रजनन और मृत्यु दर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, भाषा, धर्म, प्रवास, विकलांगता के अलावा अन्य पर विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती है।

जनगणना से बहुत ही विस्तृत जानकारी हासिल होती है, जैसे जनगणना से पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा, सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी और उन योजनाओं का क्या असर हुआ यह पता चलता है और भविष्य में किन योजनाओं को लाया जाए इस काम मे सरकार की भी मदद करती है।

NPR और NRC दोनों अलग-अलग हैं

NPR जो है, वह काफी हद तक NRC से अलग है, क्योंकि NPR के दौरान आपसे कोई भी कैसा भी दस्तावेज़ नहीं मांगा जाएगा, जबकि NRC में ऐसा नहीं है।

भाजपा सरकार लोगों को समझाने के बजाय भटकाने का काम कर रही है। वह कह रही है कि लोग NPR को NRC समझ रहे हैं, परन्तु ऐसा कतई नहीं है। लोग NPR को NRC नहीं समझ रहे हैं, बल्कि NPR को NRC में सहायक मान रहे हैं। NRC की पहली सीढ़ी NPR ही बनेगी ऐसा लोगों का मानना है।

अब, उस कनेक्शन को देखते हैं जो सरकार के मनसूबों पर संदेह करता है। हम बात करते हैं 2004 की, जब नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित किया गया था।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2003

जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में थी तब 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया और एक धारा 14 A को डाला गया था। धारा 14 A राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने से संबंधित है।

नागरिकता अधिनियम की धारा 14 A के अनुसार, “केंद्र सरकार अनिवार्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत कर सकती है और उसे एक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी कर सकती है।” नागरिकता अधिनियम की वही धारा 14A कहती है,

केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को बना कर रख सकती है और इस उद्देश्य के लिए एक राष्ट्रीय पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना भी कर सकती है।

NPR का सीधा ताल्लुक NRC से नहीं है, परन्तु यह सरकार की नियत पर निर्भर करता है की वह NPR के डेटा को कैसे इस्तेमाल करती है। क्योंकि धारा 14A NPR की तैयारी के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है और इसे जनगणना और NRC के साथ जोड़ता है।

इसमें कहा गया है कि “रजिस्ट्रार जनरल” ‘राष्ट्रीय पंजीकरण प्राधिकरण’ के रूप में कार्य करेगा और साथ ही ‘नागरिक पंजीकरण रजिस्ट्रार जनरल’ के भी रूप में। यहां कनेक्शन यह है कि ‘रजिस्ट्रार जनरल’ भारत के ‘जनगणना आयुक्त’ के रूप में कार्य करता है। जिसका साफ मतलब यह है कि सरकार जब चाहेगी तब NPR के डेटा को NRC के लिए इस्तेमाल कर सकती है।

जो आरोप भाजपा पर लग रहे हैं वे गलत नहीं है, क्योंकि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और देश के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह ने खुद कहा है कि वे एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगें। तब हो सकता है कि NPR के बाद आधी रात में किसी मंच पर खड़े होकर खुद को देश का चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नोटबन्दी की तरह एलान करें,

भाइयों बहनों आज रात 12 बजे के बाद से कोई भी व्यक्ति जिसके पास 1971 से पहले के दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं, वह देश का नागरिक नहीं रहेगा। मित्रों, अगर वह मुस्लिम समुदाय को छोड़कर हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन या अन्य धर्म से ताल्लुक रखता है, तब उसके लिए डरने की बात नहीं हैं, भाजपा सरकार उनके साथ है और उनकी सरकार उन घुसपैठियों के कागज़ खुद बनाकर देगी।

एक सवाल यहां भी खड़ा होता है कि सरकार कैसे तैय करेगी कि जो घुसपैठिया है वह दूसरे देश का खबरी नहीं है? और इससे देश को खतरा नहीं है? जब देश के युवाओं के पास ही रोज़गार नहीं है, तब उन घुसपैठियों को कहां से रोज़गार दिया जाएगा?

प्रदर्शन करती शाहीन बाग की महिलाएं

कुछ महीने पहले एक छोटी सी लड़की भूख के कारण भात-भात कहते हुए दम तोड़ देती है और उसकी मौत का कारण यह था कि उसकी मां के पास आधार कार्ड नहीं था, जिसके कारण उसे राशन नहीं मिला और उसकी बच्ची को मौत का निवाला बनना पड़ा। तब क्या गारंटी है कि उन घुसपैठियों के साथ ऐसा नहीं होगा?

सरकार के साथ उन लोगों को जो इसके समर्थन में खड़े है, उन्हें भी इस बात को सोचना चाहिए कि जिस देश के खुद के नौजवान बेरोज़गार हैं. वहां अगर बाहर से और लोग आ गए तब उनके देश के बच्चों के भविष्य का क्या होगा ?

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