दुनिया भले ही दो अक्टूबर को अहिंसा दिवस मनाती आई हो लेकिन गाँधी के देश में हिंसा की दस्तक जारी रही है। आज चारों तरफ हिंसा का बोलबाला है। क्या जीव, क्या इंसान, हर किसी के साथ हिंसा सरेआम है। हालात तो ऐसे बन गए हैं कि हिंसा धीरे-धीरे जीवनशैली का अहम हिस्सा बन गई है।
आज पूरे भारत में हिंसा करने वालों के बीच अजब किस्म की होड़ है। हिंसा से एक आदमी की जान जाती है, माहौल अशांत होता है लेकिन जैसे ही हालात धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं, फिर एक नई हिंसा दस्तक दे जाती है। मानो यह शौक आदमी की जीवनशैली बन रहा है।
बिना किसी की हत्या किए आदमी को चैन क्यों नहीं मिलता? देश-दुनिया में जटिल होते हिंसक हालातों पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह हमारे लिए गर्व की बात है, क्योंकि गाँधी की अहिंसा ने भारत को गौरवान्वित किया है, भारत ही नहीं, दुनियाभर में अब उनकी जयंती को बड़े पैमाने पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
अहिंसा की धरती पर हिंसा जारी है
अब स्थिति यह है कि गाँधी की धरती पर मॉब लिंचिंग ने हिंसा से उत्पन्न होने वाले खौफ को जो मुकाम दिया है, वह अब NRC और CAA के रूप में परवान पर है। जामिया में पुलिस प्रशासन द्वारा जारी हिंसा, कानपुर और लखनऊ होते हुए JNU पहुंच गई। आखिर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन लोग हैं?
जामिया से राजघाट निकलने वाले मार्च में एक युवक हाथ में पिस्तौल लिए पहुंच गया। उसने “लो आज़ादी” कहते हुए पिस्तौल से गोली चला दी। गोली जाकर जामिया के स्टूडेंट शादाब को लग गई।
हिंसा क्यों बढ़ रही है?
भारत की धरती पर हिंसा बढ़ने के बहुत से कारण हैं, जिनमें देश के नेताओं द्वारा दिए गए विवादित बयान और बढ़ती बेरोज़गारी मुख्य हैं। एक ज़हरीला बयान जैसे ही अपना असर खोने लगता है, दूसरे नेता सक्रिय हो जाते हैं और बाज़ार को एक नया बयान दे देते हैं।
सोचने और समझने की बात है कि जामिया के बाहर युवक ने गोली क्यों चलाई? सवाल यह है कि गाय के नाम एक लिंचिंग का मामला रफादफा होता है, तो दूसरा अपने खौफ से दिल दहला जाता है।
अनुराग ठाकुर से लेकर जयंत सिन्हा जैसे भाजपा नेता ज़िम्मेदार क्यों नहीं?
फल कब आएगा? जब फूल खिलेगा, तो फूल कब खिलेगा? जब अंकुर पेड़ बनेगा, फिर अंकुर कब आएगा? तो हिंसा का फल भी मोहताज है अंकुर का, मगर हिंसा का अंकुर फूटता है ज़हरीले बयानों से।
हाल ही में भजपा नेता अनुराग ठाकुर ने मंच से बयान दिया, “गोली मारो सालों को, देश के गद्दारों को।” देश के एक युवा ने इस बयान पर तुरंत अमल किया, उसने जामिया के करीब NRC और CAA के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध कर रही भीड़ की तरफ गोली चलाई। शादाब नाम का एक युवक घायल हो गया।
मॉब लिंचिंग की हर घटना पर पूरा विश्व दहलता रहा है। बावजूद इसके झारखंड में अलीमुद्दीन अंसारी की लिंचिंग द्वारा हत्या करने के आरोप में कातिल जैसे ही ज़मानत पर जेल से बहार आए, उनको जयंत सिन्हा ने माला पहनाकर स्वागत किया।
अब बताइए मुल्ज़िम माला पहनेंगे तो सीना 56 इंच होगा या नहीं? जो लिंचिंग जैसी हिंसा करने की जुर्रत नहीं कर सकते, वे भी सीना फुलाये “बोल जय श्रीराम” जैसे नारे क्यों नहीं लगाएंगे? जीता-जगता सुबूत उसी झारखंड में तबरेज़ अंसारी की लिंचिंग द्वारा मौत है।
भारत अहिंसा की धरती है क्योंकि यहां सबर है
बताने के लिए बहुत सारे नेता और उनके ज़हरीले बयान हैं लेकिन यहां यह साबित करना मकसद नहीं है। साबित तो यह करना है कि किसी भी दल द्वारा चाहे जितनी हिंसा भारत की मिट्टी पर हो रही हो लेकिन देशवासियों ने ना तो कल और ना ही आज हिंसा का रास्ता अख्तियार किया।
सच तो यह है कि शाहीन बाग से जमशेदपुर के आम बगान जहां “गोली मारो सालों को, देश के गद्दारों को” वाले नारों के बीच NRC, CAA और NPR को लेकर जो भी विरोध हो रहे हैं, वे गाँधी के बताए अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए हो रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहां लोगों में सबर बेइंतेहा है।