हिंदुस्तान के स्टूडेंट्स को सरकारों के विरोध का इतिहास इसलिए नहीं पढ़ाया जाता है, क्योंकि विरोध से हर सरकार को डर लगता है। जो संघ जय प्रकाश नारायण के पीछे खड़े होकर छात्र शक्ति से इंदिरा गाँधी की सत्ता उखाड़कर फेंकने का आवाहन करता था, वह आज स्टूडेंट्स और युवाओं को विरोध और हक के लिए चुप रहने की सभ्यता का पाठ पढ़ा रहा है।
कुल मिलाकर उन्हें सत्ता को देश समझने की संस्कृति की तालीम दी जा रही है। आपातकाल के वक्त भी हिंसक प्रदर्शन किए गए। स्टूडेंट्स ने सरकारें बदली हैं। आप विश्व के इतिहास पर नज़र उठाकर देख सकते हैं। इसके बाद भी स्टूडेंट्स को राजनीति में नहीं आना चाहिए जैसे कुतर्क दिए जाते हैं।
आंदोलनों के इतिहास से युवाओं को दूर रखा जा रहा है
देश का युवा जागरूक होकर अपनी शिक्षा और अपने हक की बात करता है, तो अब जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के देश मे वे देशद्रोही बन जाते हैं। वहीं, जेपी, जेटली, अटल, आडवाणी और जनसंघ सभी देशद्रोही ही थे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उन सबको देशविरोधी नहीं, बल्कि राजनीतिक विरोधी माना था।
आज इन सभी महापुरुषों को कष्ट ज़रूर हो रहा होगा कि उनके देश मे राजनीतिक विरोधी और देश विरोधी की परिभाषा गढ़ दी गई है। भारत में स्टूडेंट्स को आज़ादी की लड़ाई के बाद आज़ाद भारत की सरकारों के खिलाफ स्टूडेंट्स के प्रदर्शन और विरोध का इतिहास नहीं पढ़ाया गया।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष और उसकी वीर गाथाएं ही पढ़ाई जाती हैं लेकिन एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में स्टूडेंट्स के आंदोलनों और प्रदर्शनों का कोई इतिहास युवाओं को नहीं बताया गया।
क्या सरकार को विरोध से डर लगता है?
कल तक जो विश्वविद्यालय विचारों का समागम होते थे। उनमें मात्र पूंजीवादी व्यवस्था के लिए ज़रूरतमंद और मजबूर मज़दूर बनाए जा रहे हैं। युवाओं और स्टूडेंट्स की शिक्षा को नौकरी पाने तक सीमित कर दिया गया है। शिक्षा से बने विचार और तर्क करने की क्षमता को समाप्त कर दिया जा रहा है।
सरकार की कुर्सी पर विचारधारा कोई भी हो उसका फासीवादी स्वरूप जगजाहिर है। उसे विरोध से डर लगता है। सरकार का विरोध से डर एक सार्वभौमिक सत्य था और सदा रहेगा। आप वास्तव में देशभक्त हैं तो हर दशा में आपका अपनी सरकार से सवाल और उसके दिशाहीन होने पर विरोध कर अपनी देशभक्ति साबित करनी चाहिए।
आज की तारीख में जिस तरह से एक साज़िश के तहत स्टूडेंट्स के आंदोलनों को सत्ता द्वारा खत्म करने की कोशिश की जा रही है, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार चाहती ही नहीं है कि कोई उसके खिलाफ आवाज़ उठाए। आज जब सत्ता द्वारा स्टूडेंट्स का दमन किया जा रहा है तो हमें एकता का परिचय देते हुए ज़रूरत है स्टूडेंट्स के साथ खड़े रहने की।