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“क्यों मैं शाहीन बाग की महिलाओं के प्रोटेस्ट को सपोर्ट नहीं करती हूं”

प्रदर्शन करती शाहीन बाग की महिलाएं

प्रदर्शन करती शाहीन बाग की महिलाएं

दिल वालों की दिल्ली इन दिनों प्रदर्शन की आग में जल रही है। ये चीज़ें कुछ लोगों की सोच और समझ से काफी परे है। हर दिन दिल्ली का दिल इस धुएं में जलता जा रहा है। इस गली से उस गली तक हर कोई प्रदर्शन की आग में जल रहा है।

आलम यह है कि लोग घर से निकल तो रहे हैं लेकिन अपनी मंज़िल तक पहुंचने के बाद घर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। असम से शुरू हुई यह आग दिल्ली की जामिया पहुंची, वहां से जेएनयू और अब शाहीन बाग।

इस कांपती सर्दी में औरतें सड़कों पर अपने बच्चों को गोद में लिए सड़क जाम कर बैठी हैं। अपने घरों की सुध-बुध खोए CAA और NRC को हटाने की लगातार मांग कर रही हैं।

आस-पड़ोस से लोग भी उनके लिए कंबल, खाने-पीने और चाय की सुविधाओं में अपना योगदान दे रहे हैं। चारों तरफ औरतों की आवाज़ें और नारे गुंज रहे हैं। रास्ते बुरी तरह से जाम हो चुके हैं। लोग घर से निकलते वक्त इस खौफ में हैं कि बस किसी भी तरह शाम को अपने घरों तक, अपने बच्चों के पास, अपने माँ-बाप के पास समय रहते पहुंच जाएं।

जंग के मैदान में तब्दील हो चुकी है शाहीन बाग

प्रदर्शन करती शाहीन बाग की महिलाएं। फोटो साभार- सोशल मीडिया

पुलिस कड़े इंतज़ाम के साथ सड़कों पर डटकर खड़ी है मगर ना महिलाएं वहां से हटने को तैयार हैं और ना ही सरकार अपने कानूनों को लेकर टस-से-मस होने को तैयार है। इतना ही नहीं, शाहीन बाग प्रदर्शन को लेकर लोग कई प्रकार के विचारों में बट गए हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि शाहीन बाग की यह भीड़ चंद पैसे से इकट्ठी की गई है, तो वहीं कई लोग यह भी मान रहे हैं कि हक की लड़ाई सड़कों पर उतरकर ही लड़ी जा सकती है। इन सबके बीच कई जगहों पर हिंसा भी देखने को मिल रही है।

फिलहाल, खूबसूरत शाहीन बाग एक जंग के मैदान सी नज़र आ रही है, जहां लोग अपने हक या यूं कहें कि जानकारी के आभाव में गलत दिशा में जा रहे हैं। उन लोगों को यह बात समझनी होगी कि यह देश सभी का है। यहां हर धर्म एक साथ मिल जुलकर रहता है और हमेशा रहेगा।

विरोध के स्वर इतने मुखर क्यों हैं?

शाहीन बाग में प्रोटेस्ट के दौरान महिलाएं। फोटो साभार- प्रीति परिवर्तन

हमारे देश में इन दिनों लोग अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए कह रहे हैं कि शाहीन बाग की महिलाएं आंदलोन कर रही हैं। महिलाओं का आंदोलन है, हमें साथ आने की ज़रूरत है। खैर, आधी आबादी का प्रतिनिधित्व मैं भी करती हूं मगर CAA और NRC के खिलाफ होने वाले आंदोलनों का समर्थन कतई नहीं। चाहे वो शाहीन बाग हो या पटना के सब्ज़ी बाग का आंदोलन।

हमें कई चीज़ों के बारे में विचार करने की ज़रूरत है। जैसे- जो भी महिलाएं शाहीन बाग में NRC और CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं, क्या वे अच्छी तरह से जानती हैं कि CAA और NRC क्या है? क्या उन्हें CAA और NRC में फर्क मालूम है? क्या उन्होंने इस बारे में अध्यन किया है?

ये तमाम सवाल हैं, जो हर ज़हन में उठने चाहिए। मैं यह भी नहीं कह रही हूं कि शाहीन बाग का आंदोलन प्रायोजित है। इस विषय पर टिप्पणी नहीं करना चाहती हूं मगर सवाल यह उठता है कि आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं यदि किसी खास मुद्दे का विरोध करते हुए सड़कों पर बैठ जाएं, तो यह जानना ज़रूरी है कि आखिर विरोध के स्वर इतने मुखर क्यों हैं?

लगातर इस तरह की बातें निकलकर सामने आ रही हैं कि ये महिलाओं का आंदोलन है। इसे महिलाएं ही लीड कर रही हैं और सबसे खास बात कि इसमें किसी भी राजनीतिक दल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। सवाल तो यह भी है कि जो महिलाएं दिन-रात सड़कों पर बैठी हैं, वे अगर CAA और NRC के बारे में पढ़तीं, तो बेहतर होता।

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