भारतीय समाज कैसे-कैसे हमें प्रभावित करेगा, इसके तो भुक्तभोगी हम और आप हो ही गए हैं। बढ़ते सोशल मीडिया उपक्रम और इंटरनेट की सुविधा ने हमें एक दूसरे के मुद्दों से जोड़कर रख दिया है। फिर इसमें JNU का मुद्दा कैसे छूट जाता। आज यह मुद्दा अलग-अलग तरीकों से जोड़ा और घटाया जा रहा है, फिर भी मैंने बहुत कुछ महसूस किया है जो आपको जानना चाहिए।
मेरे बहुत से मित्रों का वास्ता JNU से है और मेरा भी कई बार वहां आना-जाना हुआ है। JNU में कई विचारधाराएं पनप रही हैं और यह अच्छा भी है पर ये विचारधाराएं यदि विश्वविद्यालय और उससे जुड़ी समस्याओं और हकों तक सीमित रहे, तो बेहतर होगा।
पहला वाक्या मेरे दोस्त के साथ का है, जो इस समय BAPSA ग्रुप से जुड़ा हुआ है। उसका नाम नहीं लेना चाहता हूं मैं लेकिन यूं ही मेरी उसकी बहस हो गई। हम दोनों ही समाज के प्रति संवेदनशील हैं पर बात फिर विचारधारा की आ जाती है।
मैं छोटे-मोटे जिस भी तरीके से संभव हो दूसरों की मदद करता हूं, व्यावहारिक रूप में और दूसरी तरफ मेरे वे दोस्त JNU में बैठकर पूरे समाज में फैली गरीबी के साथ ही दलितों, महिलाओं सबके लिए मोर्चा लेकर बैठ जाते थे।
एक दिन मैंने यूं ही पूछ लिया कि रैली के किनारे वह जो गरीब है, उसकी मदद क्यों नहीं करते तुम तो उसने जवाब दिया, “मैं यहां किसी एक की मदद के लिए नहीं बैठा हूं, मुझे पूरे देश के गरीबों की चिंता है”। मैं हंसा और यही सोचा अच्छा है कि मैंने इन जैसा नहीं।
दूसरा किस्सा जब मेरा JNU में इंटरव्यू था। उसी वक्त मैं रास्ते में एक लड़के से मिला, जो बड़ी तेज़ी से कहीं जा रहा था। उससे मैंने पूछा भाई ज़रा SSS बिल्डिंग का पता बता दो, इसपर उसने मुझसे कहा कि मैं भी उसी तरफ जा रहा हूं, चलिए छोड़ देता हूं।
रास्ते में जाते समय पत्थरों, दीवारों और किसी लड़के के मिसिंग पोस्टर लगे थे। मैंने उससे पूछा यह नजीब कौन है और कैसे गायब हो गया था? उसने जवाब दिया कि यह उसका ही लैब मेट था लेकिन कभी लैब नहीं आता था, हमेशा कभी यहां प्रोटेस्ट, कभी वहां प्रोटेस्ट में रहता था और हमें भी बोलता था कि प्रोटेस्ट में चलो। वह कभी अपनी पढ़ाई के लिए सीरियस नहीं हुआ। उस नजीब के साथ क्या हुआ यह तो मुझे आज भी नहीं पता।
ये दो किस्से हैं, जिसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि इसमें कोई शक नहीं कि JNU कितना महान रहा है और आगे भी रहेगा परन्तु आज का JNU भटक गया है। अपनी बेहतर सुविधा को पहचान पाने में स्टूडेंट भटक रहे हैं, नफरत और राजनीति ने स्टूडेंट्स को मार्ग से भटका दिया है, जिसका परिणाम बहुत ही भयावह हो सकता है। इस समस्या से कैसे निपटा जाए इसकी चिंता होना बेहद ज़रूरी है।