पिछले दो महीनों में संविधान की प्रस्तावना का पाठ शायद इतिहास में सब से ज़्यादा हुआ।
समाज के एक बड़े हिस्से ने “धर्म निरपेक्षता” वाले हिस्से पे बहुत ज़ोर दिया।
आधुनिक भारत में वैसे भी इस बात की ज़िम्मेदारी केवल मुसलामानों पे छोड़ दी गई कि वो खुद को धर्म निरपेक्ष साबित करें, जबकि साम्प्रदायिक ताक़तों ने हमेशा से मुसलामानों को हाशिये पर पहुंचाने की प्रबल कोशिश की, और इस का साथ secular मानी जाने वाली कॉंग्रेस ने भी दिया।
उसी प्रस्तावना में दिए गए समता के अधिकार को ना मुस्लिम समुदाय ना कल समझ पाया और ना आज ही समझ रहा है।
रंगनाथ मिश्रा कमिशन और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के इलावा बहुत सारी रिपोर्टें ऐसी हैं जो इस बात की व्याख्या करती है कि मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक हालत हिन्दुस्तान में सब से ख़राब है।
हिन्दी प्रदेशों का एक बड़ा तबका समुदाय को पंचर और सलून से जोड़ कर मज़ाक़ भी बनाता है।
किसी भी सरकार ने समुदाय के विकास के लिए काम नहीं किया है।
और तो और क़ानून ने भी मुसलामानों के के साथ दोहरा व्यावहार किया है।
अनुच्छेद 341 में मुसलामानों को आरक्षण से वंचित रक्खा गया है, मतलब यह कि अगर कोई मुस्लिम है तो वो SC में नहीं गिना जा सकताा।
नाइंसाफी़ यहीं समाप्त नहीं होती।
हिन्दुस्तान में अनगिनत constituency ऐसी हैं जिस में मुस्लिम बहुलता के बाद भी उन को SC समुदाय के लिए रिजर्व कर दिया है जब कि उन में SC समुदाय की जनसंख्या बहुत कम हैं – उदाहरण में Nagina (नगीना) – 53% मुस्लिम, 21% SC; Khargam (50% मुस्लिम, 23% SC); करीमगंज (52% मुस्लिम, 12% SC) और बहुत सारी हैं।
जिसकी वजह कर लोकसभा या विधान सभा में मुसलामानों की तादाद बहुत कम रहती हैं।
इस तरह से जो संविधान समता की बात करता है वही समता से रोकता भी है।
1992 में किए गए 73वें संशोधन में पंचायती राज लाया गया जिस की वजह बतायी गयी लोगों तक self governance (स्वशासन) का पहुंचाना। इस के तहत प्रशासन का विकेंद्रीकरण भी हुआ।
इस बात को समझा जाए तो मुस्लिम समुदाय के पास भी बराबर का प्रतिनिधित्व का अधिकार होना चाहिए लेकिन secularism के भोंडे व्याख्या से इस समुदाय को समता से भी दूर रक्खा गया।
अनगिनत सरकारों के पास मुस्लिम समुदाय के हाशिए पर रहने के knowedge के बावजुद काम नहीं किया गया और अब पार्टियाँ समुदाय के हित में बात करने से भी डरती हैं।
341 और Constituency के reservation का मेल, एक ज़हरीला cocktail है जिसको संविधान का संरक्षण है।
अगर हम प्रस्तावना पे भी अपना ईमान और आस्था रखते हैं तो हमें ऐसे कानूनों के खिलाफ़ भी संघर्ष करना पड़ेगा।