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केजरीवाल का मॉडल आगामी विधानसभा चुनावों में असर करेगा।

 

 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में जो रुझान आ रहे है उससे साफ है कि आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार बना रही है। आम आदमी पार्टी पूरे चुनाव में भाजपा की पिच पर खेलने से बचती रही। भारतीय जनता पार्टी सीएए को लेकर आप व कांग्रेस पर आक्रामक रही जिसका उसे करीब 10 प्रतिशत वोटों का फायदा मिला। भाजपा ने यह चुनाव जीतने के लिए नही बल्कि अपना कैडर, हिंदुत्व, और राष्ट्रवाद के एजेंडा को मजबूती देने के साथ प्रसारित करने के लिए लड़ा है। गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव की कमान संभाली, उससे अन्य दलों को सीख लेनी चाहिए। 200 से ज्यादा सांसदों, अन्य प्रदेशों के मंत्रियों, 4 प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को दिल्ली के मोहल्लों तक की जुम्मेदारी सौपी गयी। भाजपा ने 5000 से ज्यादा छोटी-छोटी मोहल्ला सभाएं की। वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के पास बड़े नेताओं की कमी साफ दिखी। उनके पास जो नेता है वह खुद लड़ रहे थे। हालांकि आप ने देशभर से अपने स्वयंसेवकों को बुला रखा था।

धार्मिक धुर्वीकरण चुनाव के नतीजे कैसे दिखते हैं, वोट शेयर से समझ सकते है। पिछली बार 32 प्रतिशत वोट पाने वाली बीजेपी इस बार शाहीन बाग़, बिरयानी, गोली मारो वगैरह के साथ 44 प्रतिशत वोट शेयर के करीब जा पहुँची है, 2015 के चुनाव में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी का वोट शेयर तक़रीबन 5 % तक गिरा है | यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ताक़त है या उसकी सीमा कि बीजेपी सब कुछ करके भी दिल्ली फ़तह नहीं कर सकी।

 

भाजपा द्वारा केजरीवाल को आतंकवादी और अराजक कहने पर केजरीवाल ने भावनात्मक कार्ड खेला। दिल्ली की जनता ने भाजपा को दिल्ली से नकार दिया है। मनोज तिवारी पर दांव लगाना भाजपा की बड़ी गलती रही है।

शाहीन बाग में महिलाओं के आंदोलन को लेकर भाजपा नेता कपिल मिश्रा की ‘मिनी पाकिस्तान को हरायेगा हिंदुस्तान’ जैसी टिप्पणियों ने भाजपा की धुर्वीकरण की राजनीति को धार दी। यह चुनाव आम आदमी पार्टी सत्ता में वापसी के लिए लड़ रही थी। वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव नागरिकता संशोधन कानून,हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर पकड़ मजबूत करने का था और अपना वोट प्रतिशत बढ़ाकर भाजपा कुछ हद तक सफल भी रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे की साख पर लड़ी भाजपा आम आदमी पार्टी के मुक़ाबले स्थानीय मुद्दों पर कमजोर रही। हालाँकि केजरीवाल का पूरा जोर इस चुनाव को स्थानीय विषयों पर केंद्रित किया था। दिल्ली में विपक्ष की भाजपा और कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री का चेहरा नही दिया गया. जिसका साफ फायदा केजरीवाल के लिए अप्रत्यक्ष रूप से दिखता है.

 

भाजपा का पूरा चुनावी अभियान शाहीन बाग और धुर्वीकरण पर केंद्रित होने की वजह उदार विचार वाले वोटरों ने नाराजगी दिखाई है। हिंदुत्व को धार देने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करीब 12 जनसभाऐं की जिसमे उन्होंने शाहीन बाग़, पाकिस्तान और बजरंगबली आदि भाषणों से हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने की कोशिश की। जाट वोटों को आकर्षित करने के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी जिम्मेदारी सौपी गई। वहीं आम आदमी पार्टी भाजपा पर मुद्दों से चुनाव को भटकाने का आरोप लगाकर अपने चुनाव प्रचार में विकास कार्यों तक सीमित कर रखा था। चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के ऐलान के बाद प्रेसवार्ता में केजरीवाल ने साफ कर दिया था कि “अगर काम किया हो तो वोट देना, नही किया हो तो न देना”। उनका यह बयान भारत की राजनीति के लिए एक उदाहरण पेश कर सकता है। जिसका असर देश में आने वाले विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है।

कांग्रेस इस पूरे चुनावी दृश्य से गायब दिखी। कांग्रेस को लगभग 4 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है। कांग्रेस चुनाव प्रचार में भी पीछे थी। कांग्रेस ने महिलाओं को टिकट देकर आप के खेमे में सेंध मारने की कोशिश की। छात्रसंघ से निकले युवाओं को भी लड़ाया गया। आप से कांग्रेस में गयी अल्का लांबा तो 2000 वोट भी नही पा सकी।

 

यह चुनाव जेडीयू से निकाले गए नेता और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशान्त किशोर के लिए और भी ज्यादा अहम था। उन्होंने दिल्ली चुनाव में ‘आप’ के चुनाव प्रचार का जिम्मेदारी ली थी। पर्दे के पीछे से आप की जीत के नायक प्रशान्त ही है।

आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता में तीसरी बार काबिज होने जा रही है। ‘आप’ दिल्ली के अलावा पंजाब में 20 विधायकों के साथ मुख्य विपक्षी दल है और उत्तर प्रदेश में नगर निकायों में कुछ प्रतिनिधित्व पाने में सफल रही थी। विकास की राजनीति और दिल्ली मॉडल ‘आप’ स्वयं के लिए भुना पाती है या नही यह समय बताएगा। वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस का एक विकल्प बन सकती है। काम करने पर वोट मांगने की राजनीति का प्रभाव भी आगामी विधानसभा चुनावों में नजर आ सकता है ।

 

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