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क्यो अनशन पर बैठी मध्यप्रदेश की अतिथि शिक्षिका को सर मुड़वाने के लिए विवश होना पड़ा ?

एक आन्दोलन है जो दिल्ली के शाहीनबाग में चल रहा है जिसको भारत के सारे बड़े न्यूज़ चैनलों और अखबारों ने बड़े जोरो शोरों से कवर किया और जनता के सामने मुद्दे को उठाया पर किसी को पता नही की , मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के शाहजहानी पार्क में चल रहा अतिथि विद्वानों का प्रदर्शन  को 72 से ज्यादा दिन बीत चुके है पर मध्यप्रदेश सरकार की तरफ कोई भी संतोषजनक रुख नही अपनाया गया ।

लोकतांत्रिक तरीके से चल रहे अनशन में आज थक हार कर छिंदवाड़ा की महिला अतिथि विद्वान ने भोपाल आकर मुंडन कराया और मुख्यमंत्री कमलनाथ को इसका दोषी बताते हुए इस्तीफे की मांग की। समाज के लिए यह बहुत ही शर्मनाक
घटना है, जहाँ पर दुसरो को शिक्षित करने वाली शिक्षिका को अपने हक़ के लिए सरकार के सामने विवश होकर सर मुंडवाना पड़ा। एक महिला और शिक्षिका के रूप में इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है। पर सरकार के कानों तक अबतक आवाज नही पहुँची ।

मुंडन कराने वाली महिला का नाम डॉ. शाहीन खान है। वह कटनी के पालू उमरिया शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी पढ़ाती हैं एवं छिंदवाड़ा की रहने वाली हैं। अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ. देवराज सिंह ने बताया कि फिलहाल एक महिला अतिथि विद्वान ने आज 1 बजे मुंडन कराया है। अब 26 फरवरी को 4 महिलाएं और 4 मार्च को महिला और पुरुष मुंडन कराएंगे।

अतिथि शिक्षकों की मांगें

• गुरुजी की तर्ज पर नियमितीकरण किया जाए।
• 5 साल पुराने अतिथि शिक्षकों को संविदा शाला शिक्षक बनाया जाए।
• पात्रता परीक्षा पास अतिथि शिक्षकों को कट ऑफ कम रखा जाए और बोनस अंक प्रतिवर्ष 5 अंक दिए जाए।
यह कोई पहली बार नही है जो इस तरीके तक अतिथि शिक्षकों को विवश होना पड़ा है , इसके पूर्व भी 26 को अथित शिक्षकों ने अर्धनग्न होकर विरोध प्रदर्शन किया था

कई बार मिल चुका है आश्वासन
आश्वासनों का सिलसिला काफी पुराना है , हाल ही में राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी और स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभुलाल चौधरी भी शाहजहानी पार्क पहुंचे थे. पर वह भी बस अथिति शिक्षकों की मांगो को लेके आश्वासन देखे फ़ोटो खिंचवा कर चले गए।

बीते 2 वर्षो में कई बार अथित शिक्षकों ने अपनी मांगों को लेके सरकार को अवगत कराया है पर जिस प्रकार कोर्ट में तारीखों का सिलसिला जारी रहता है उसी प्रकार इन अथित शिक्षकों को बस आश्वासन सेही संतोष करना पड़ता है । 72 दिनों से चल रहे इस अनशन पर नातो कोई आवाज़ उठा रहा नाही कोई इन शिक्षकों की मदद के लिए आगे आरहा ।

शायद टीवी न्यूज चैनलों की टीआरपी इससे नही बढ़ती , क्योंकि यह हिन्दू मुसलमान नही है बात अधिकारो की है बात शिक्षकों की है और बात शिक्षा की है क्यों कोई बड़े न्यूज़ चैनल इसे दिखायेगे और क्यों सरकार से सवाल करेगा ।अंततः अपने अधिकारों की लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ती है । पर सवाल यही पर आके रुुुक जाता है क्यो अपने मौलिक अधिकारों के लिए हमे सडको पर उतरना पड़ता है ? क्यों हमें अपना हक बिना लड़े नही दिया जाता ? यह वह सवाल है जिनका शायद ही किसी के पास कोई जवाब हो । उम्मीद करता हूँ कोई तो इन अतिथि शिक्षकों की आवाज़ को सुने और सरकार इनकी जायज मांगो को जल्द से जल्द पूरा करने का प्रयास करे ।

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