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लिट्टी-चोखा की बात निराली

हमारी संस्कृति में त्यौहार के अनुरूप खास-खास प्रकार की व्यंजन को परोसने की परंपरा रही है। लेकिन कुछ ऐसे व्यंजन ऐसे भी होते हैं जो अमीर से लेकर गरीब तबकों के लोगों को भी खूब भाते रहे हैं। उन्हीं में से एक पूर्वांचल क्षेत्र की खास व्यंजन है ‘लिट्टी- चोखा’। जो सेहत के अनुसार काफी संतुलित, स्वादिष्ट और आजकल चर्चा के केंद्र में है।

 
लिटी चोखा में बसी है पूर्वांचल की संस्कृति 
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बात जब लिटी चोखा की होती है तो इससे जुड़े हुए क्षेत्रों का जिक्र होना भी स्वाभाविक है। जिसमें खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश का नाम शामिल है। क्योंकि इन्हीं जगहों से लिट्टी चोखा का शुरुआती इतिहास मिलता है।हालांकि अभी तक इसका कोई प्रमाणिक तथ्य मौजूद नहीं है। लेकिन फिर भी इसका एक और जुड़ाव त्रेता युग से मिलता है। जब महर्षि विश्वामित्र ने पंचकोशी यात्रा के दौरान राम लक्ष्मण के साथ चरित्रवान (वर्तमान बक्सर) में लिट्टी-चोखा खाया था। जिसे लेकर अभी भी बिहार के बक्सर जिला में प्रत्येक वर्ष लिट्टी-चोखा का खास मेला लगता है। जिसमें लोग शुद्ध शाकाहारी, सेहतमंद स्वदेशी लिटी-चोखा व्यंजन का आनंद लेते हैं। जबकि पटना, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर व चंपारण के क्षेत्रों में लोग मिर्च मसालेदार, नमक, धनिया आदि मिलाकर स्वाद के निवाला को अलौकिक बनाकर आनंद लेने लगे हैं।
 
बनाने की विधि
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इसे गेहूं के आटे में सत्तू को भरकर जलता हुआ आग (अंगीठी) पर पकाया जाता है। जबकि कहीं-कहीं इसे जलता हुआ उपला के ऊपर भी पकाया जाता है। और देसी घी के साथ मिलाकर खाना परोसा जाता है। इस गाने में बैगन के चोखा का होना भी अनिवार्य माना गया है। जिसमें टमाटर, मिर्च और मसाला डालकर तैयार किया जाता है। जिससे खाना का स्वाद और ही पौष्टिक व आनंद में हो जाता है।
 
 
स्वदेशी ‘फास्ट-फूड’ के रूप में प्रचलित
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किसी भी देश के विभिन्न क्षेत्र की पहचान उसके खाना, वस्त्र, कला व संस्कृति से होती है। जिसमें बिहार का स्थान सर्वोच्च की सूची में शामिल है। उनमें लिट्टी चोखा ही एक ऐसी खास प्रकार की स्वदेशी व्यंजन है। जिसका नाम सुनते ही तरह-तरह की कल्पनाएं शुरू हो जाती है। लेकिन वर्तमान दौर में जब पूरी दुनिया रसायनिक खाद पदार्थ से मिला हुआ भोजन को करता है, तो वह सेहत का ख्याल कर अपने अतीत में लौटना चाहता है। उन्हीं में लिट्टी चोखा का नाम शामिल है जो कभी बिहारी मजदूरों का कलेवा (दोपहर का नाश्ता) हुआ करता था। जिसे खाने के बाद लंबे समय तक भूख नहीं लगता है और शरीर में ताजगी का अनुभव भी होता है।
 
 
प्रधानमंत्री ने ‘लिटी-चोखा’ का स्वाभिमान बढ़ाया
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बिहार व पूर्वांचल क्षेत्र से निकला हुआ लिट्टी-चोखा आजकल देश भर की हस्तकला मेला और व्यंजन स्टॉल पर मिलने लगा है। जिसे अपनी जादू बिखेरते देखा जा सकता है। हाल ही में 19 फरवरी को दिल्ली के राजपथ पर अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से हस्तकाला व हस्त कलाकारों के लिए ‘हुनर हाट’ मेला का आयोजन किया गया था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक मेला का जायजा लेने पहुंचे तो बिहारी व्यंजन लिट्टी-चोखा की जायका का लुत्फ उठाते देखे गए। जिसका उन्होंने भुगतान भी स्टाल के काउंटर पर जाकर किया। जिसे देखकर लोग चौंक गए। इसी व्यंजन के कारण इन दिनों देशभर के जन समुदायों के बीच जुबान पर लिटी-चोखा का जादू लोगों के सर  चढ़कर बोल रहा है।
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