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“ऑस्ट्रेलिया के 9 वर्षीय बच्चे की बुलिंग की घटना देखकर मुझे स्कूल के दिन याद आ गए”

फोटो साभार-सोशल मीडिया

फोटो साभार-सोशल मीडिया

ऑस्ट्रेलिया की एक महिला ने अपने 9 साल के बेटे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है। इस वीडियो में 9 साल का लड़का मानसिक रूप से आघात होकर आत्महत्या की बात कर रहा है। वीडियो में लड़का भावनात्मक रूप से टूटकर कहता है, “मैं बस दिल में छुरा घोंपना चाहता हूं।”

हैरानी की बात तो यह है कि 9 साल का लड़का आत्महत्या की बात क्यों कर रहा है? इसके पीछे की वजह है स्कूल में अन्य लड़कों के द्वारा की जाने वाली बुलिंग। यह लड़का अचोंड्रोप्लासिया के साथ पैदा हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप उसका कद नहीं बढ़ पाया।

उसी क्लास के अन्य लड़के उसके शरीर को लेकर बुलिंग करते हैं, जिसकी वजह से 9 साल का लड़का भावनात्मक रूप से इतना टूट गया है कि आत्महत्या की बात कर रहा है और उसकी माँ अन्य माता-पिता से अपने बच्चों के समाजीकरण पर बात कर रही है।

इस घटना ने मुझे मेरे स्कूल के दिनों में हुई बुलिंग को याद दिला दिया। स्कूल के दिनों में मैं पतला-दुबला शरीर का था, जिसकी वजह से मुझे स्कूल में अन्य लड़कों के बुलिंग का सामना भी करना पड़ता था और बहुत बार तो मारपीट का भी सामना करना पड़ा।

वह समय मानसिक रूप से इतना दुख भरा था कि मुझे अपने आप से नफरत होने लगी थी। मेरा आत्मविश्वास मानो खत्म सा ही हो गया था। मुझे बहुत घबराहट होने लगती थी जब मैं लड़कों के समूह के सामने से गुज़रता था। उस समय लगता था कि कहीं से कोई टिप्पणी आएगी जो मुझे अंदर से तोड़ देगी।

कैसे आई स्कूल में बुलिंग की घटना की याद

फोटो साभार- सोशल मीडिया

9 साल के क्वाडेन की हालत को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है। बुलिंग सिर्फ एक पल मज़ाक सा लगता है लेकिन इस एक पल के मज़ाक का गहरा और बुरा असर सारी ज़िन्दगी रहता है। आज भी मुझे बहुत ज़ोर से हंसते हुए लड़कों के समूह के पास से गुज़रते समय स्कूल वाली भावना महसूस होती है, जो मुझे बहुत असहजता की तरफ धकेलती है।

ऐसे बहुत सारे व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में रंगरूप, कद-काठी,चलने का तरीका या फिर आवाज़ की वजह से बुलिंग का सामना करना पड़ा हो। बहुत से व्यक्ति ऐसे भी हैं, जिन्हें इस मानसिक टॉर्चर को सहन करने की बजाय आत्महत्या करना ज़्यादा आसान लगा। कई लोग इस परिस्थिति से बाहर तो ज़रूर निकल जाते हैं लेकिन उसका असर ज़िन्दगीभर उनके साथ एक परछाई की तरह चलता रहता है।

यह कैसी मर्दानगी है, जिसमें पुरुषों को दूसरे व्यक्तियों को नीचा दिखाकर, उन्हें ठेस पहुंचाकर ही मज़ा आता है या फिर मर्दानगी के ऐसे कौन से पैमाने को हासिल करने के खातिर पुरुषों को बुलिंग जैसे अपराध का सहारा लेना पड़ता है?

मर्दानगी के अलग-अलग पैमाने तय किए जाते हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

बचपन से लेकर बड़े होने तक पुरुषों को अपने आप को मर्द साबित करने के लिए ऐसे मुखोटों को पहनना पड़ता है, जो वास्तव में वे नही हैं या फिर नहीं होना चाहते हैं। स्कूल में लड़कों को “माचो”, “कूल” या फिर मज़बूत दिखने के लिए हिंसा और बुलिंग जैसे अमानवीय व्यवहार का इस्तेमाल ताकत के प्रदर्शन के लिए करना पड़ता है।

घरों से लेकर सिनेमाघरों तक लड़कों को मर्दानगी के अलग-अलग पैमानों पर आंका जाता है।  हमेशा लड़कों को ताकतवर के रूप में दिखाया जाता है। चाहे फिर ताकत शारीरिक हो या फिर भावनात्मक। एक लड़का अपनी ज़िन्दगी में यह बहुत बार सुनता है कि लड़के रोते नहीं या फिर क्या लड़कियों की तरफ रो रहा है।

लड़के को मर्दानगी के पैमाने पर खरा उतरने के खातिर अपने रोने जैसी भावनाओं को गुस्से और हिंसा के पीछे छुपाना पड़ता है। सही मायने में देखा जाए तो रोना ना तो लड़कियों से जुड़ा है और ना ही किसी भी तरफ से रोना छोटा होने की निशानी है। बल्कि मुझे लगता है कि सबके सामने रोना या अपनी दुख  भरी भावनाओं को व्यक्त करना बहुत साहसी कार्य है।

एक लड़के को मर्द बनाने के चक्कर मे समाज उसकी संवेदनशीलता को खत्म कर देता है। लड़कों द्वारा खेले जाने वाले खेलों में हिंसा और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की चाह साफ नज़र आती है।

किशोरावस्था से लेकर बुढ़ापे तक एक खेल या मनोरंजन के साधन में हिंसा, जोखिम, बदला, नफरत और सर्वोच्च की भावना को साफ तौर पर देखा जा सकता है। अगर गौर से देखा जाए तो बुलिंग करने वाले पुरुष भी अपनी ज़िन्दगी को हिंसा और जोखिमों के अधीन करके अपने आप को हानिकारक ज़िन्दगी में बदल देते हैं। आज की दुनिया को सुरक्षित रखने के लिए हिंसात्मक, मज़बूत या जोखिम लेने वाले पुरूषों की नहीं, बल्कि प्यार करने वाले भावुक सवेदनशील पुरुषों की ज़रूरत है।

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