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“राम के नाम पर शाहीन बाग में गोली चल गई और हम खामोश हैं”

शाहीन बाग

शाहीन बाग

फिर राम के नाम पर गोली चलाई है

 कलयुग के राम की आज फिर जग हंसाई है,

जय श्री राम, जो हिन्दू चाहेगा वही होगा।

यह कहना है शाहीन बाग में दो हवाई फायर करने वाले कपिल गुर्जर का, जिससे जुड़ी ज़्यादा जानकारी अभी सामने नहीं आई है। कपिल गुर्जर नामक व्यक्ति जो कि सरिता बिहार की तरफ लगे बैरिकेट्स को तोड़ता हुआ शाहीन बाग में दाखिल हो जाना चाहता था, जिसे त्वरित कार्रवाई कर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

अभी हाल ही में जब हम महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि मनाकर नई पीढ़ी को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि गाँधी की हत्या गलत थी, तभी भीड़ से निकलकर एक नवयुवक चिल्लाता है, “किसे चाहिए आज़ादी?” फिर चल जाती है गोली।

मुझे भारतेंदु हरिश्चंद्र याद आ रहे हैं

मैं स्तब्ध हूं! क्या इसी भारत की कल्पना को लेकर हमारे युग पुरुषों ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी? आज मुझे भारतेंदु हरिश्चंद्र याद आ रहे हैं, जिन्हें हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। उनकी बात यहां अप्रसांगिक हो सकती है लेकिन उनकी कविता कतई नहीं। वह अपनी कविता “भारत-दुर्दशा” में लिखते हैं,

रोअहु सब मिलिकै आवहु भारत भाई।

 हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई।।

मैं एक हिन्दू हूं और उसी तरह के परिवेश में पली-बढ़ी हूं। मैंने पहली दफा राम (भगवान राम) को अपने दादा जी से पहचाना। वो हर सुबह रामचरित मानस का पाठ किया करते थे। बस मैं इतना जानती थी कि वो उस मर्यादा पुरुषोत्तम राम को पढ़ रहे हैं, जिन्होंने अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया।

क्या राम हिन्दू धर्म को बचाएंगे?

प्रतीकातमक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अपनी उम्र के लिहाज़ से बस इतना ही जानती थी और कभी मुझे किसी ने यह समझाया भी नहीं कि हिन्दू धर्म खतरे में है और राम ही हिन्दू धर्म को बचाएंगे। कुछ लोग, जो मेरे पिता और दादा के परिचित थे (गैर हिन्दू समुदाय), उनसे मुझे या मेरे राष्ट्र को खतरा है, इस बारे में मुझे नहीं बताया गया। हालांकि खतरा है भी नहीं।

दादाजी मुझसे विशेष प्रेम रखते थे। याद तो नहीं है लेकिन इतना पता है कि 10-12 की उम्र में वो मुझे अपने साथ अयोध्या ले गए थे और अजमेर शरीफ भी! अच्छी लगी थी मुझे राम की नगरी। सोचा था अजमेर शरीफ भी आऊंगी फिर। पता नहीं दादा जी से मोह अधिक था या समझने की उम्र कम!

फिर धीरे-धीरे दादाजी बूढ़े होते गए और मेरी समझ के राम मुझसे छूटने लगे। मैंने उन्हें (राम) छोड़ दिया लेकिन दादाजी (रामचरित मानस) को नहीं छोड़ पाई।तुलसी, कवि केशव और शबरी के राम जाने कब हथियार बन गए। तुलसीदास ने राम को तब गढ़ा, जब मुगलों ने भारत पर अत्याचार किए। वो राम के ज़रिये यह बताना चाहते थे कि कभी राम राज्य भी हुआ करता था, आज जिसकी हमें वापस ज़रूरत है।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहूहि व्यापा।

सब नर करहिं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति। (गोस्वामी तुलसीदास उत्तरकाण्ड)

वहीं रामराज्य है, जहां सब एक-दूसरे से प्रीति (प्रेम) करें और  उनकी यही आवाज़ जन-जन की पुकार बन गई लेकिन जिन्हें राम के आदर्श का अर्थ भी नहीं पता होगा, वे राम को चौराहे पर ले आए हैं और हमें अंधकार में।

पहले कभी जिस राम नाम पर श्रद्धा थी, अब उस राम से मुझे डर लगने लगा है। (मुझे हिन्दू और मुसलमान के पैमानों से डर लगने लगा है।)

मैं एक बार फिर अयोध्या गई और अजमेर शरीफ भी फिर मैंने वहां कभी ना जाने का फैसला किया। आज हम उस राह पर आ खड़े हैं, जहां राम ना मुक्ति देते हैं, ना बांधने को तैयार हैं। राम का दूसरा अर्थ आज साम्प्रदायिकता बन गया है और भगवा रंग उसका प्रमाण।

गोली चलाने वाला अब राम भक्त

शाहीन बाग में दो हवाई फायर करने वाले कपिल गुर्जर।

जय श्रीराम के नाम पर अब किसी को घेर कर मार दिया जाता है। सरेआम कोई हाथों में हथियार लिए आज़ादी के नाम पर गोली चला देता है और उसकी पहचान निकलती है रामभक्त के नाम पर। जी हां, मैं शाहीन बाग गोलीकांड की बात कर रही हूं। पहले हुए वाक्ये की, जिसमें एक दिशाहीन युवक हवाई फायर करता हुआ कह रहा है जय श्री राम।

जिस भारत ने आर्यभट्ट से लेकर अब्दुल कलाम तक का इतिहास रचा, अब उसका युवा राम रच रहा है। हिन्दू-मुसलमान रच रहा है।

वो उस शाहीन बाग (CAA के खिलाफ धरने पर बैठी महिलाएं) को खत्म करने पहुंचा है, जिस शाहीन बाग ने एक अमिट इतिहास रच दिया है। जिसे अब सरकारें, धर्मगुरु, विपक्ष और बौखलाया दिशाहीन युवा कोई भी इतिहास के पन्नों से नहीं मिटा सकता। अगर आपने शाहीन बाग की ठंड में तपते चेहरे नहीं देखे हैं, तो यकीन मानिए आप बहुत कुछ देखने से चूक रहे हैं।

लेकिन क्या इस तरह हाथ में पिस्तौल पकड़े पुलिस और भीड़ के बीच निकल जाना कोई साधारण बात है? जिस पुलिस के नाम पर हम डरते थे, डरते हैं अगर वे मूक दर्शक बनकर सब देखने लगें, तो ऐसे किस्से आम हो जाएंगे।

बयानबाज़ी भी हो रही है

अमित शाह।

क्या जामिया क्या जेएनयू, इतनी हिम्मत देने में हमारे मंत्री, नेताओ का बड़ा हाथ है। उप्र मंत्री रघुराज सिंह ने 30 जनवरी को एक सभा में कहा, “देश विरोधियों को कुत्ते की मौत मारना होगा” (AMU के छात्रों के परिपेक्ष्य में यह बात कही)

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने 3 दिन पहले ही कहा, “देश के गद्दारों को गोली मारो ..को।”

वहीं, हमारे ग्रहमंत्री जिनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस तरह की घटनाओं को होने से रोकें और उनकी ज़िम्मेदारी लें, वो कहते हैं,

आप भारत माता के साथ हैं या शाहीन बाग? इतनी ज़ोर से बटन (EVM) दबाओ कि करंट शाहीन बाग तक पहुंचे। (26जनवरी 2020 रैली को संबोधित करते हुए)

वहीं, बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने बयान दिया, “शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी कल को आपके घरों में घुसेंगे, आपकी बहन-बेटियों को उठाएंगे तब मोदी जी नहीं आएंगे बचाने।”

जहां ज़िम्मेदारों द्वारा इस तरह के बोल बोले जा रहे हों, वहां एक कपिल, एक गोपाल नहीं, बल्कि हज़ारों मूर्ख हिन्दू-मुसलमान के नाम पर सड़कों पर उतर सकते हैं। हम और आप इन गोलियों से कब तक बच पाएंगे और इन्हें बचाने वाले एक रोज़ खुद इन्हीं गोलियों की चपेट में आ जाएंगे।

क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह उन नागरिकों से बात करें, जो इसके खिलाफ या इसके साथ हैं। क्या आपकी हमारी ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि हम प्रशासन और कुशासन में थोड़ा फर्क कर लें और सरकारों से जवाब मांगें। अन्यथा राम के नाम पर गोली चलती रहेगी और हम यूं ही खामोश रहेंगे।

नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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