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“मोदी, शाह और योगी के भारत में डॉक्टर कफील का मुसलमान होना गुनाह है”

डॉक्टर कफील

डॉक्टर कफील

आज के वर्तमान हालातों और परस्थितियों को देखकर तो यही महसूस होता है कि किस-किसकी बात करूं? हर कहानी ज़ुल्म की एक नई दास्तान लिख रही है और यह ज़ुल्म सिर्फ एक मुसलमान होने के कारण किया जा रहा है।

आज आप सब पाठकों से डॉ. कफील की कहानी पर गुफ्तगू करने जा रहा हूं, जिन्होंने इतने ज़ुल्म सहने के बाद अब भी लगातर ज़ुल्म सह ही रहे हैं लेकिन हुकूमत और कुछ नफरत के पालनहार देश की पहचान की एक नई इबारत गढ़ने पर तुले हुए हैं, जिसका जितना अफसोस किया जाए कम है।

गोरखपुर ऑक्सीजन कांड से शुरू था मामला

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

आपको याद होगा योगी सरकार के गोरखपुर का वो हॉस्पिटल, जहां कई मासूम बच्चों को मौत निगल गई थी, कई माओं ने अपने लख़्त-ए-जिगर को खोया, ना जाने कितने माँ-बाप के सपने उस हॉस्पिटल में फैली अव्यवस्था और हुकूमत की नाकामियों के कारण बर्बाद हुए और उसमें एक डॉ. कफील जिसने डॉ. के भगवान के रूप की कहावत को साबित किया।

उसी डॉ. को उसके नेक कामों की जो सज़ा भुगतनी पड़ी, उसके लिए हिन्दुस्तान कभी ज़ालिमों को माफ नहीं करेगा। 2017 में गोरखपुर के बीआरडी हॉस्पिटल में लगभग 70 बच्चों की ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण मौत हुई थी और उसी हॉस्पिटल का एक मामूली डॉ. अलग-अलग हॉस्पिटल से अपने मिलने वाले तमाम मित्रों के साथ पूरी रात मासूम बच्चों की जान बचाने के लिए मारा-मारा फिर रहा था।

वह बच्चों की जान बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था। जब यह खबर हिन्दुस्तान में तेज़ी से फैली और पूरे हिन्दुस्तान में योगी सरकार की आलोचना होने लगी, तो उस सरकार के प्रमुख जिसे हिन्दुस्तान में नफरत और उन्मादी भाषण देने के लिए जाना जाता है, उसकी सरकार ने सबसे पहले उसी मसीहा जिसे हम डॉ. कफील के नाम से जानते हैं, उन्हें सस्पेंड किया और कुछ दिन बाद गिरफ्तार भी।

हुकूमत के ज़ुल्म सहने के बाद जब निर्दोष साबित हुए थे डॉक्टर कफील

डॉक्टर कफील। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कारण पूरे भारत मे पूरे भारत में डॉ. कफील की मेहनत और कोशिशों की खूब सराहनाहुई लेकिन योगी तो योगी हैं! डॉ. कफील को उनका सस्पेंड ऑर्डर और गिरफ्तारी का फरमान सिर्फ इसलिए था, क्योंकि वो डॉक्टर मुस्लिम समुदाय से थे और यही उनका सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ, फिर योगी सरकार ने एक जांच एजेंसी बैठा दी।

पूरे आठ महीने डॉ. कफील जेल में रहे। सोचिए उनकी पत्नी और बच्चों ने उन आठ महीनों में कितने ज़ुल्म सहे होंगे और अभी तक सह रहे हैं। उनका पूरा परिवार उनकी ज़मानत के लिए कोर्ट के दरवाज़े पर गुहार लगाता रहा। हिन्दुस्तान के कोर्ट के हालात से आप सभी वाकिफ हैं और अंत में अप्रैल 2018 में उन्हें ज़मानत मिल ही गई।

उधर जांच एजेंसी कछुए की चाल से भी ज़्यादा धीरे-धीरे जांच करती रही लेकिन डॉ. साहब की गुहार पर हाईकोर्ट ने 10 जून 2018 को जांच को जल्द पूरी करने और रिपोर्ट पेश करने का फरमान सुनाया और अप्रैल 2019 मे जांच पूरी हुई।

6 महीने बाद डॉ. कफील को रिपोर्ट मिली, जिसमें उनके काम और बच्चों की ज़िन्दगी को बचाने के लिए उनकी तरफ से की गई कोशिशों के लिए उनकी प्रशंसा की गई थी। यानी डॉ. कफील अगस्त 2017 से अक्टूबर 2019 तक हुकूमत के ज़ुल्म को सहते रहे।

जब मसीहा बने डॉक्टर कफील

बिहार में बाढ़ के दौरान डॉक्टर कफील

फिर एक बार और डॉ. कफील चर्चा मे आए जब बिहार में बाढ़ आई और लाखों लोगों की ज़िंदगी को बर्बाद कर गई। बिहार में उन्होंने फिर एक बार अपना मसीहा होने का रूप दिखाया और मेडिकल कैम्प के माध्यम से बिहार की जनता की सेवा करते रहे।

लेकिन जब केंद्र सरकार काले कानून लाकर देश की एकता को मिटाने की भावना के साथ षड्यंत्र रचती है, तो सरकार के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगते हैं।इसी तरह का एक आन्दोलन अलीगढ़ में भी चल रहा था।

डॉ. कफील अलीगढ़ मे 12 दिसंबर 2019 को छात्रों द्वारा बुलाए जाने और उन्हें समर्थन देने, जो कि हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, धरना स्थल पहुंचे। वहां उनके साथ स्वराज पार्टी के योगेन्द्र यादव भी थे। डॉ. कफील इन काले कानूनों के खिलाफ छात्रों को संबोधित करते हैं और इनके साथ योगेन्द्र यादव भी संबोधित करते हैं।

डॉ. कफील के खिलाफ मुकदमा दर्ज़  किया गया

दिल्ली के ओखला में निशुल्क चिकित्सा करते डॉ काफिल खान, फोटो साभार- Twitter

13 दिसम्बर 2019 को डॉ. साहब के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के लिए अलीगढ़ के थाना सिविल लाइन द्वारा मुकदमा दर्ज़ किया जाता है और इसी मुकदमें के तहत उत्तरप्रदेश की पुलिस UPSTF द्वारा 29 जनवरी को मुंबई एयरपोर्ट से उन्हें अरेस्ट कर लिया जाता है।

इसके बाद डॉ. कफील को उनकी टीम की मदद मिलती है और उन्हें कोर्ट द्वारा 10 फरवरी 2020 को 60-60 हज़ार के दो बेल बॉन्ड भरवाकर ज़मानत दे दी जाती है लेकिन उन्हें जेल प्रशासन द्वारा रिहा नहीं किया जाता है।

जब उनकी टीम को 72 घंटे बाद इस बात की जानकारी मिलती है, तो पता चलता हे कि उसी उत्तरप्रदेश की पुलिस द्वारा उन पर NSA के तहत मुकदमा दर्ज़ किया गया है, जिससे उनकी बेल पर रोक लगाई गई है।

यह कानून डॉ. कफील पर इसलिए लगाया गया ताकि पुलिस को यह ना बताना पड़े कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया है और ज़मानत भी ना मिल सके। क्या हमारे मुल्क में कोई संविधान है भी या नहीं? योगेन्द्र यादव से जब पूछा गया कि क्या हकीकत में डॉ. साहब ने कोई भड़काऊ भाषण दिया था, तो उनका कहना था कि उन्होंने भड़काऊ भाषण तो बहुत दूर, एक शब्द और एक अक्षर भी गलत नहीं बोला है।

उत्तरप्रदेश और दिल्ली पुलिस भारतीय पुलिस का रोल ना निभाकर इज़राइल की पुलिस की भूमिका निभा रही है। यह ज़ुल्म ही नहीं, जुल्म की इन्तेहा है। केंद्र की सरकार में एक मंत्री “गोली मारो” जेसे बयान एक आम सभा मे जारी करता है, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

प्रवेश वर्मा जैसे नेता शाहीन बाग, जामिया, एएमयू और देवबंद जैसे देश के नामी संस्थानों के होनहार छात्रों को आंतकवादी, पाकिस्तानी, गद्दार और देशद्रोही होने का सर्टिफिकेट बांटते नज़र आते हैं लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

संसद में देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ खुल्लम-खुल्ला बोला जाता है। कार्टून बनाए जाते हैं, गाने लिखे जाते हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। पुलिस के कुछ गुंडे यूनिवर्सिटी के कैंपस में ज़बरदस्ती घुसकर लाइब्रेरी में पढ़ने वाले मासूम छात्रों पर लाठियां भांजती हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। उत्तरप्रदेश में पुलिस की बर्बरता से कई लोग घायल तो कई मौत के शिकार हो जाते हैं मगर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

यह ना-इन्साफी नहीं तो क्या है?

यह ज़ुल्म नहीं तो क्या है?

तब मुझ जेसे लोगों को यह लिखने पर मजबूर होना पड़ता है कि मोदी, अमित शाह और योगी के भारत में शायद मुसलमान होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ा गुनाह है।

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