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“मुफ्त सुविधा का कार्ड कब तक खेल पाएगी आप”

अभी संपन्न हुए दिल्ली चुनावों में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को कड़ी शिकस्त देकर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई। उनको इसके लिए दिल से हार्दिक बधाई। चलो किसी राज्य में तो बीजेपी के सामने कोई टक्कर का नेता है।

अब बीजेपी की हार पर आते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी के राष्ट्रवाद के उन्माद को जनता ने नाकारा है। कोई कहता है कि विद्यार्थी पर हुए हमलों या कहें कि जेएनयू, जामिया, एएमयू जैसे संस्थानों के टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले स्टूडेंट पर हुई जवाबी कार्यवाही से सभी युवा के मत केजरीवाल को मिले।

शाहीनबाग तो पहले से ही आप के लिए था ही। मतलब जितनी मीडिया उतनी अलग-अलग बातें और परामर्श।

अरविंद केजरीवाल, फोटो साभार- सोशल मीडिया

ध्रुवीकरण की राजनीति

सच बात तो यह है कि जनाब की बीजेपी का मत प्रतिशत 2015 के 32.3% की तुलना में इस बार 2020 में 38.5% है। मतलब की करीब 6.2% की बढ़ोतरी हुई है। अब अगर सारे युवा, महिला, वृद्ध सब बीजेपी के राष्ट्रवाद के खिलाफ होते हैं, तो मत प्रतिशत बढ़ता नहीं घटता है।

आप पार्टी अगर जीतती है, तो वह अपनी मुफ्त वाली राजनीती के चलते ही जीता है। उसने शाहीन बाग करवा के एक तरह से एक समुदाय के मत का ध्रुवीकरण कर लिया है। दूसरा ध्रुवीकरण उसने मुफ्त में 200 यूनिट बिजली और पानी के बिल पर कर दिया। जिससे एकदम निम्न और गरीब वर्ग को लगा मुफ्त की बिजली पानी मिल रहा है और उन्होंने अपना मत आप को दिया।

दरअसल, केजरीवाल ने बड़ी खूबी से मुस्लिम और मुफ्त सुविधा का कार्ड खेला। इन दोनों के सामने अच्छे से अच्छा विकासवाद और राष्ट्रवाद भी फीका पड़ जाए।

ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ही मुफ्त बांटते है। काँग्रेस और शिवसेना एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में मुफ्तखोरी का नारा देकर चुनाव जीते हैं। हालांकि बाद में अभी तक कुछ फ्री नहीं हुआ और ना ही किसानों के कर्जे़ माफ हुए।

Credit: AAP/Twitter

मुफ्त की राजनीति

अब पश्चिम बंगाल भी दिल्ली की राह पर मुफ्त बिजली देने निकल पड़े हैं। अब तक अधिकतर इस मुफ्त की राजनीति पर दक्षिण भारत की पार्टियों का दबदबा था। लेकिन अब इसमें उत्तर भारत के प्रमुख दल भी शामिल हो चुके हैं।

गुजरात राज्य में लगातार 25 सालों से बीजेपी सरकार है लेकिन आज तक चुनावों में या बीजेपी के घोषणा पत्र में कभी कुछ भी मुफ्त मिलेगा (बिजली और पानी या कर्ज माफ़ी) जैसे मुद्दे नहीं मिलेंगे। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की एक बात साफ है। अगर सुविधा चाहिए तो उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। हर चीज की एक कीमत होती है। कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता।

अब वापस आते हैं मुफ्त की राजनीति पर। सत्ता और अपनी राजनीति चमकाने के लिए मुफ्त वाली राजनीति, सबसे आसान तरीका है। इसमें किसी भी राजनीतिक दल को अपने कोष से धन नहीं देना पड़ता है। मुफ्त वाली राजनीति के लिए धन या तो उस राज्य के नागरिकों पर स्थानीय कर में बढ़ोतरी करके या फिर केंद्र से या मध्यस्थ बैंक से ऋण लेकर काम चलाया जाता है।

विकास के साथ राज्य की हालत भी खस्ता

अधिकतर तो स्थानीय कर और स्थानीय सुविधाओं जैसे राज्य परिवहन का किराया बढ़ाना, बिजली और पानी के बिल में बढ़ोतरी उससे ही ज़्यादा पैसा वसूला जाता है। मतलब 9 लोगों को लूटकर 1 को मुफ्त दो। हम इसके खिलाफ नहीं है। हम सब उसके साथ है, जहां वाकई में ज़रूरतमंदों को सेवा और सुविधा मिले। लेकिन यहां बात उन लोगों की है, जो इसका दाम चुका सकते हैं।

दूसरा, अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए दूसरे क्षेत्रों की सहायता राशि भी खत्म कर दी जाती है। मतलब विकास तो गया साथ ही साथ राज्य की हालत भी खस्ता।

मतलब साफ है। त्वरित राजनीतिक लाभ के लिए किये जाने वाला मुफ्त सुविधा का वादा दूसरों पर बोझ समान है और साथ ही साथ अर्थतंत्र पर भी विपरीत असर डालता है।

मनोज तिवारी और अरविंद केजरीवाल

दिल्ली को मैंने देखा है। चंद इलाके जहा सरकारी कर्मचारी, व्यापारी वर्ग और राजनैतिक नेता रहते हैं, उसके अलावा हर जगह गन्दी और टूटी सड़क, शिक्षा का बेहाल और स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली ही है लेकिन क्या करें, जनता को सबकुछ मुफ्त चाहिए। एक यूनिट बिजली पैदा करने में कितना खर्च आता है, वह सबको सोचना चाहिए और बिजली कंपनी इसकी भरपाई दूसरे ग्राहक से ही करेगी।

सच तो यह है कि आज मुफ्त कुछ नहीं है। हर जगह उसकी कीमत होती है। खैर, दिल्ली ने मुफ्तवाली राजनीती को चुनकर विकास और सुरक्षा को 5 साल के लिए और पीछे धकेल दिया है।

टिप्पणी

मुफ्त की राजनीति वही नेतागण करते हैं, जो समय रहते काम नहीं करते बल्कि दूसरों पर काम ना करने देने का आरोप लगाते हैं। अपनी डूबती राजनीती को बचाने के लिए उन्हें मुफ्तवाली राजनीति का सहारा लेना पड़ता है

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