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“पुलवामा हमले के पीछे वेलेंटाइन डे का नहीं सेना के लिए सरकार की कंजूसी का दोष है”

14 तारीख को वेलेंटाइन डे था। साथ ही पिछले साल इसी दिन पुलवामा हमले में हमारे कई जवान शहीद भी हुए थे। ऐसे दिनों में व्हाट्सएप्प पर अलग अलग तरह के मैसेजों का सिलसिला बना रहता है। इसी क्रम में मेरे एक मित्र ने ऐसा ही एक मैसेज भेजा। वह दक्षिणपंथी विचारधारा नसे प्रेरित हैं।

उसे देखकर मैं उन्हें अपनी प्रतिक्रिया दिए बिना नहीं रुक पाया। क्योंकि सवाल केवल समाज का ही नहीं “समाजवाद” व “स्वतंत्रता” का भी है।

ज़िम्मेदारी किसकी है?

“जहां तक पुलवामा के शहीदों की बात है, मेरी आंखें नम हैं और हृदय द्रवित है। पर साथ में मैं इस बात से भी आक्रोशित हूं कि इतनी सुरक्षा के बाद भी इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक वहां कैसे पहुंचा ? इस लापवाही की जिम्मेदारी किसकी है ? और जिसकी भी है, इतने महत्वपूर्ण सवाल की जांच क्या आज तक ना हो सकी ?

बात यह भी है कि ऐसी क्या मजबूरी थी कि जो सरकार 72 करोड़ रुपये सांसदों के खाने की सब्सडी दे देती है वह जवानों के लिए हवाई यात्रा का इंतजाम क्या नहीं कर सकती थी? जबकि सूचनाओं के अनुसार सेना द्वारा ये मांग उठाई गई थी। 

अब जब ये घटना उस दिन हुई जिस दिन युवा प्रेमी वैलेंटाइन डे मना कर एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार करते हैं। प्रेम ईश्वर का दूसरा नाम है, पुलवामा की घटना होने के पीछे उन प्रेमी जोड़ों का क्या दोष? बेमतलब उनको इस मामले से जोड़कर घसीटना कितना तर्कसंगत है?

पुलवामा और वेलेंटाइन डे को जोड़ना क्या सही है?

पुलवामा के शहीदों के लिए शोक और जोड़ो द्वारा वेलेंटाइन डे मनना, दो अलग बातें है। पुलवामा के नाम पर निर्दोष लोगों की बेवजह स्वतंत्रता बाधित करना क्या कानूनी अपराध नहीं?

पर अगर हम सोचे तो हमें पता चलता है कि कई हिंदुत्व वादी संगठनों को (बेशक इन संगठनों का नियंत्रण, विशेष उच्च जाति के लोगो के हाथ मे हैं) जैसे बजरंग दल, हिन्दू महासभा व आरएसएस बहुत पहले से प्रेम करने वालों पसन्द नहीं। बजरंग दल द्वारा मारपिटाई का किस्सा तो हर साल ही हम सुनते हैं। 

संविधान लागू होने के बाद हर धर्म जाती वर्ग के युवक युवतियां साथ पढ़ने लगे, साथ कार्य करने लगे, समीपता बढ़ने से एक दूसरे के प्रति प्रेम पैदा हो जाना भी स्वभाविक है। पर हम देखें तो ये प्रेम, दरसल मनुवादी वर्ण व जाति-व्यवस्था की दीवारों को ध्वस्त कर देता है। क्योंकि प्रेम केवल हृदय देखता है, ना वो जाति देखता है ना धर्म, तभी इसे ईश्वर का दूसरा नाम भी कहा जाता हैं।

इस जाति-व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ किसी भी तरह से एक कट्टरपंथी को मंजूर नहीं हो सकती। और लज्जा की भारी कमी की वजह से उनको अपने नापाक इरादों को सफल करने हेतु पुलवामा शहीदों की शहादत की भी धज्जियां उड़ाते भी देर नहीं लगती।”

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