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“मेरे गाँव का एक प्रेमी जोड़ा पिछले 10 साल से डरा हुआ कहीं छुपकर जी रहा है”

मुहब्बत एक ऐसा एहसास है जो आदमी को जीने की ओर प्रेरित करता है। मुहब्बत उस खुशबू का नाम है जो इंसानियत को ज़िंदा रखती है लेकिन फिर भी हमारे देश में प्रेम छुप-छुप के करना पड़ता है और इससे बड़ी हमारे लिए शर्म की बात क्या हो सकती है।

हमें पैदा होते ही एक सांचे में ढाल दिया जाता है और हमसे यह उम्मीद की जाती है कि हम इस सांचे को तोड़ने की कोशिश ना करें। हमारे दायरे निश्चित कर दिए जाते हैं। हर लड़के-लड़की को ज़िन्दगी भर उनका निर्वहन करना पड़ता है।

खुलेआम नफरत कर सकते हैं लेकिन मुहब्बत नहीं

हमारे समाज की सबसे बड़ी विड़म्बना यह है कि हम नफरत खुले आम कर सकते हैं, लेकिन मुहब्बत नहीं। मुहब्बत करने वालों को जाति, समाज, प्रतिष्ठा, दौलत, रुतबे की बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता है।

आज जबकि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, ऐसे दौर में भी प्रेम करने को ( विशेष रूप से अंतरजातीय प्रेम करने को ) खानदान की बदनामी का कारण समझा जाता है और ऑनर किलिंग को अपनी बदनामी का दाग मिटाने का ज़रिया समझा जाता है।

आज कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें लड़का-लड़की का या तो कत्ल कर दिया जाता है या उन्हें बेघर करके गाँव से बाहर रहने को मजबूर किया जाता है।

हमारे गाँव के ही दो प्रेमी जोड़े जिन्होंने प्रेम विवाह किया वे शादी के करीब दस वर्षों बाद भी निर्वासितों का जीवन बिता रहे हैं। ऐसे में कौन अपनी मुहब्बत का इज़हार खुलेआम करने की हिम्मत करेगा?

आज देश में बजरंग दल जैसे अपराधियों के गैंग हैं, जो संस्कृति को बचाने की आड़ में युवाओं के साथ मारपीट करते हैं। इससे दिलों में भय व्याप्त होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

संस्कृति बचाने के नाम पर प्रेमी जोड़ों के साथ हिंसा

आज जब हम डिजिटल इंडिया की बात करते हुए गर्व महसूस करते हैं, तो मुझे यह देखते हुए इतनी शर्म आती है कि कुछ बदमाश प्रेमी जोड़ों को पकड़कर उनकी मारपीट करते हुए वीडियो बनाते हैं और फिर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाता है।

बहुत से मामलों में तो मानवीयता इतनी तार-तार हुई है कि कई बदमाशों ने लड़की की वीडियो वायरल करने की धमकी देकर जबरदस्ती उसके साथ संबंध बनाए हैं और फिर उस वीडियो को फैलाया गया है। कोई उनपर मुकदमा नहीं चलाता। लड़के-लड़कियां घरवालों के डर के कारण एफआईआर करवाने से भी डरते हैं। किसी भी मीडिया में और ना ही कभी संसद में इन मुद्दों पर बात होती है। ऐसे माहौल में मुहब्बत करना भारी पड़ता है।

आज हम बड़े गर्व से बोलते हैं कि हमारे देश में मुहब्बत की निशानी और दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल है। लेकिन हमारे ही परिवार में कोई लड़की या कोई लड़का मुहब्बत कर ले तो हम उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इसलिए मुहब्बत सिर्फ किताबों में पढ़ने और केवल भाषणों का विषय बनकर रह गई है।

हमें यह बात समझनी होगी कि तकरीबन दो लाख साल पहले शुरू हुई यह इंसान बनने की यात्रा, ना जाने कितने ही दरख्तों के सायों से गुज़रती हुई, धूप और बरसात से दो-चार होती हुई, कितने ही दरियाओं, सेहराओं, नदियों और समंदरों को पार करती हुई यहां तक पहुंची है।

इसे इस मुकाम पर लाने वाली मुहब्बत ही है और अगर हम इसी तरह नफरतें फैलाकर मुहब्बत और मुहब्बत करने वालों का गला घोंटने में लगे रहे, तो यह ना केवल मनुष्यता के साथ अन्याय है बल्कि हमारे पुरखों के उस दो लाख साल के सफर की भी तौहीन है।

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