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“यह कैसी देशभक्ति, जो हमें तिरंगा वालों पर गोली चलाने को मजबूर कर रही है”

शाहीन बाग में चली गोली

शाहीन बाग में चली गोली

देश खतरे में है, देश का लोकतंत्र, हमारी सामाजिक व्यवस्था खतरे में है, ये बातें तो हम लगातार सुनते आ रहे हैं लेकिन आज जो हालात समाज में पनप रहे हैं, जो दृश्य हम देख रहे हैं, सच मानिए देशभक्ति खतरे में है।

मैं कोई भाषण नहीं लिख रहा, आपसे ही बात कर रहा हूं। चार गालियां देकर शांत हो लीजिएगा, लेकिन वक्त मिले तो सोचिएगा। आखिर ये कौन सी देशभक्ति है, जो हमें अपने ही देशवासियों के खिलाफ खड़ा कर रही है? जो हमें अपने ही लोगों पर गोली चलाने को मजबूर कर रही है? जिसमे हमें तिरंगा वाले भी देशद्रोही लगते हैं?

देशभक्ति के नाम पर हो रही है सत्ता भक्ति

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

क्या यही है भगत सिंह वाली देशभक्ति? क्या यही है सुभाष चंद्र बोस वाली देशभक्ति? लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे वाली देशभक्ति भी यही है क्या? नहीं है साहब! आपको आज जिस देशभक्ति की पाठ वाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जा रही है, वह इन महापुरुषों वाली देशभक्ति नहीं है।

दरअसल, देशभक्ति के नाम पर आपको सत्ता भक्ति सिखाई जा रही है। सत्ताभक्ति कभी भी देशभक्ति के सामानांतर नहीं खड़ी हो सकती है, क्योंकि स्वभाव से ही वह देशभक्ति की विलोम है। हमारे क्रांतिकारियों ने सत्ता के खिलाफ ही विद्रोह किया था और उनके ऊपर देशद्रोह के आरोप लगे थे। सत्ता और सरकार देश नहीं होती हैं।

भारत और भारतीयता का संरक्षण देशभक्ति है। इन 135 करोड़ लोगों के हित में सोचना देशभक्ति है। इस मुल्क की सरहदों के अंदर निवास करने वाले हर इंसान की रक्षा करने के साथ-साथ उसके हक और अधिकारों की रक्षा करना देशभक्ति हैं।

देशभक्ति की साज़िश

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोटेस्ट के दौरान गोली चलाने वाला युवक।

सभी भारतीयों से प्रेम और आदर करना सबसे बड़ी देशभक्ति है। आपस में मिल-जुलकर, हाथ से हाथ मिलाकर इस देश को सफलता के शिखर तक ले जाना देशभक्ति है।आईटी सेल के कम्प्यूटर से निकली देशभक्ति की परिभाषा किसी को सत्ता दिला सकती है मगर 1947 वाली आज़ादी नहीं!

किसी को मंत्री, सांसद, विधायक बना सकती है, चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह नहीं पैदा कर सकती है। चंद्रशेखर और भगत सिंह की देशभक्ति के लिए किसी को लाखों के पैकेज नहीं मिले थे। किसी ने करोड़ों रुपये नहीं बहाये थे।

प्लीज़ इस डिजिटल देशभक्ति की साज़िश को समझिए। करोड़ों की दौलत से पैदा की जा रही यह देशभक्ति सिर्फ नफरत पैदा कर सकती है। यह कुछ लोगों को विधायक सांसद बना सकती है, कुछ लोगों को ठेके दिला सकती है लेकिन हमारे हाथों में काम की जगह सिर्फ हथियार दे सकती है। क्या सच में हमें यही देशभक्ति चाहिए?

देश नेताओं से नहीं, हमसे है

अमित शाह और नरेन्द्र मोदी।

यह देशभक्ति नहीं एक खेल है। इस देशभक्ति ने कुछ लोगों को सत्ता में पहुंचा दिया, फिर उस सत्ता की रक्षा के लिए आपके हाथों में हथियार दे दिया गया। आपके मन में यह बैठा दिया गया है कि सत्ता ही देश है, सत्ता ही धर्म है और इसे बचाना ही देशभक्ति है। उसके लिए लड़ना ही धर्मयुद्ध है।

फिर हम इस सत्ता को बचाने के लिए देश, देशवासी, देश की एकता, सामाजिक सौहार्द के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इस बात की गांठ बांध लीजिए, देश हम और आप हैं, इस मुल्क के 135 करोड़ लोग हैं, जिन्हे हम भारतीय कहते हैं।

इस साज़िश को समझना होगा। देश में लोकतंत्र है तो राजनीति भी होगी लेकिन किसी राजनीति से बड़ी है राष्ट्रनीति अर्थात इस राष्ट्र को बचाने, संभालने और सहेजने की नीति। किसी नेता से बड़े हैं इस देश के 135 करोड़ लोग। प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक हमने बनाया है।

ये हमारी वजह से हैं, हम इनकी वजह से नहीं हैं। किसी ने देश की आज़ादी के नाम पर हमारी लोकतान्त्रिक समझ को कैद किया और अब कोई धार्मिक आज़ादी के नाम पर वही कहानी दोहरा रहा है। वक्त अब भी है, संभल जाइए। सत्ता के खेल में रची गई साज़िश को समझिए। राजनीतिक ज़ुबान की माया से खुद को बचा लीजिए।

नफरत नहीं, प्रेम देशभक्ति है

एनआरसी और सीएए के खिलाफ शाहीन बाग में प्रोटेस्ट। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हमें किसी का समर्थन करने के लिए, किसी का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है। नेता इतना कमज़ोर नहीं हुआ अभी कि उसे बचाने के लिए हमें हथियार उठाना पड़े। लोकतंत्र के खिलाफ हो रहे षड्यंत्र में नेता नहीं जनता कम़जोर हुई है। आप और हम कमज़ोर हुए हैं।

एक इंसान के रूप में हमारा कर्तव्य ही धर्म हैं। धर्म हमारा बेहद निजी विषय है। इसका सार्वजनिक होना ही इसे विवादास्पद बनता है और राजनीति निजी नहीं सार्वजनिक विषय है। राजनीति जब-जब धर्म का नाम जपेगी, संभव है वह अपना चेहरा छुपाने का प्रयास कर रही होगी।

राजनीति ‘धर्म’ के नाम पर खुद को श्रद्धेय बनाने का प्रयास करेगी। नेता खुद को ईश्वर बनाना चाहेगा, जिससे वह लोकतांत्रिक सीमाओं को आसानी से लांघ सकें। फिर एक बार आपको याद दिला दूं कि नफरत नहीं, प्रेम देशभक्ति है।

बन्दुक नहीं, तिरंगा हाथ में लेना देशभक्ति है। 135 करोड़ लोग देश हैं, भारत हैं और उनकी भारतीयता की रक्षा करना देशभक्ति है। यही देशभक्ति हमें भगत सिंह, आज़ाद, और सुभाष ने सिखाई थी। यह देश हमारा है, हम अपनी विरासत, अपनी वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति को सत्ता की बलि नहीं चढ़ा सकते हैं। देश, समाज, संविधान और लोकतंत्र बचा है तभी आप और हम बचे हैं ।

जय हिंद!

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