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प्रदर्शनों की बदौलत सीएम बने केजरीवाल आज शाहीन बाग के प्रदर्शन पर चुप क्यों हैं?

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आज वोटिंग हुई। 6 फरवरी को चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था। इस दौरान दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में CAA-NRC के विरोध में हो रहे प्रदर्शन पर सभी पार्टियों ने जमकर राजनीति की है।

शुरू से ही शाहीन बाग के खिलाफ रही है बीजेपी

बीजेपी शुरू से ही शाहीन बाग के खिलाफ रही है। उनकी तरफ से शाहीन बाग पर ‘ऐसा बटन दबाना कि करेंट शाहीन बाग तक लगे’ से लेकर ‘यह प्रदर्शन संयोग नहीं एक प्रयोग है, यह देश तोड़ने की सोच है’ जैसे बयान आए हैं। इन बयानों से साफ है कि बीजेपी शाहीन बाग के खिलाफ है।

इस मामले में केजरीवाल का नज़रिया

इन सबके बीच सबकी नज़रें केजरीवाल पर थी। केजरीवाल ने CAA-NRC का शुरू से ही विरोध किया है। कई बार CAA-NRC पर सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि इसकी ज़रूरत क्या थी? लेकिन पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कभी शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन को ना ही खुले तौर पर गलत कहा और ना ही सही ठहराया।

कई बार बीजेपी की ओर से कहा गया कि अगर केजरीवाल शाहीन बाग के इतने ही हितैषी हैं, तो वे वहां जाते क्यों नहीं हैं?

इस पर केजरीवाल ने कहा,

मेरी उसमें कोई भूमिका नहीं रही है, मेरी अपनी सीमाएं हैं, मैं दिल्ली का सीएम हूं। मैं शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी के लिए ज़िम्मेदार हूं, मैं उस मामले में टांग नहीं अड़ाना चाहता हूं। यह CAA और NRC को लेकर कानून-व्यवस्था से जुड़ा मसला है और मेरी उसमें कोई भूमिका नहीं है।

प्रदर्शनों की बदौलत सीएम बने केजरीवाल आज शाहीन बाग पर चुप

लेकिन ऐसा कहते हुए शायद केजरीवाल भूल गएं कि उनकी पार्टी भी प्रदर्शनों से ही निकलकर आई है। 2011 में देशभर में हो रहे अन्ना आंदोलन के बाद ही आप पार्टी का गठन हुआ।

इसके बाद पार्टी कानूनी मसले जनलोकपाल बिल को ही लेकर, जिस पर केंद्र सरकार से उसका मतभेद था, दिल्ली में सत्ता में होने के बावजूद धरने पर बैठ गई और अंत में इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद इसे मुद्दा बनाकर पार्टी दोबारा सत्ता में आई लेकिन जब इसी दिल्ली में CAA-NRC के विरोध में शाहीन बाग में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल वहां क्यों नहीं जा रहे हैं? खुद को आम आदमी मानने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री शाहीन बाग में विरोध कर रहे आम लोगों के साथ क्यों नहीं खड़े हो पा रहे हैं?

शाहीन बाग

इसके इतर अगर वो वहां नहीं जा रहे हैं, तो एक मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उसे गलत या सही किसी नज़रिए से तो ज़रूर देखते होंगे, जिसे जनता या उनका वोटर जानना चाहता होगा। उस प्रदर्शन में शामिल दिल्ली के लोग जानना चाहते होंगे लेकिन आम आदमी पार्टी या केजरीवाल शाहीन बाग पर खुलकर बात क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

क्या वोट बैंक की पॉलिटिक्स कर रहे हैं केजरीवाल?

खुद को ईमानदार और वोट बैंक की राजनीति से अलग बताने वाले केजरीवाल कहीं वोट बैंक की राजनीति के कारण ही तो शाहीन बाग से दूर नहीं हैं? इसके अलावा भी दिल्ली चुनाव में केजरीवाल ने कई ऐसी चीजें की हैं, जो कहीं-ना-कहीं उनकी राजनीति से इतर थीं।

केजरीवाल ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में खुद को ‘कट्टर’ हनुमान भक्त बताया और हनुमान चालीसा पढ़कर भी सुनाई। केजरीवाल को खुद को कट्टर हनुमान भक्त बताने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? क्या केजरीवाल खुद को हिंदू ‘साबित’ करके एक खास वोट बैंक को अपनी ओर लाना चाहते हैं? क्या बिजली, पानी, स्वास्थ्य, यातायात, फ्री बस सेवाएं ये सारे मुद्दे काफी नहीं थे, जिन्हें लेकर वो चुनावी मैदान में उतरे थे।

किस तरह की देशभक्ति पढ़ाएगी आप सरकार?

दिल्ली चुनाव का घोषणा पत्र जारी करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा कि स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या अब तक बच्चों को देशभक्ति का पाठ नहीं पढ़ाया जा रहा था? इतिहास की किताबों में फिर क्या पढ़ाया जा रहा था?

अब देशभक्ति का पाठ जब अलग से पढ़ाया जाएगा तो उसमें पहले से क्या अलग होगा? क्या देशभक्ति का अलग से कोई विषय या कोर्स लाया जाएगा? जब घोषणा-पत्र में ये बात शामिल की गई है तो ज़रूरी हो जाता है कि ये भी बताया जाए कि ऐसा क्या अलग से पढ़ाया जाएगा जो अबतक पढ़ाए जाने वाले देशभक्ति के पाठों से अलग होगा।

बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सुरक्षा के मुद्दे पर चुनाव प्रचार की शुरुआत करने वाली आम आदमी पार्टी चुनाव के अंतिम दौर में देशभक्ति का पाठ पढ़ाने या यूं कह लें कि राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांगने लगी। क्या आप भी बीजेपी की तरह ही राष्ट्रवाद और देशभक्ति की पॉलिटिक्स को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं? यह सवाल कहीं-ना-कहीं दिल्ली चुनाव में वोट डालने वाला वोटर ज़रूर सोचेगा।

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