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Dilli – Hindi

एक कहानी जो इंसानी सच्चाई की कल्पना है …..

दिल्ली

अादमखोर कुत्तों का एक झुंड सड़क के किनारे रो रहा था , कुछ गिद्ध शर्म से सब देख रहे थे …
कुछ लोग मजहब के नारे , देश के नारे लगा रहे थे , सब झुंड में थे . एक आदमी को बेहरहमी से मारने के बाद वो झुंड उस लाश पर टूट पड़ा . वो झुंड एक दूसरे पर गुर्रा रहा था और लाश को चाकू से चीर कर उसका मज्जा , दिल निकाल कर खा रहे थे , कोई खून चाट रहा था .
एक पत्रकार लार टपकाते हुए देख रहा था , एक पुलिस वाला सबको हटा कर बोलता है ” एे , दिल मत खाना ! दिल निकाल कर दो, उसे नेताजी के यंहा ले जाना है , कुछ नेता उनके घर आयेंगे दंगो पर चर्चा के लिए , डिनर के लिए ये दिल ठीक रहेगा , चलो दिल और लीवर दे दो ” फिर उसने उसे एक पोलीथिंन में रखा और नेता जी के घर चला गया .

कुछ लोग टीवी पर ये सब देख रहे थे एक बोला ” यार , मुझे भी खाना है एक लाश बहुत भूख लगी है , चलो हम भी एक आदमी को मारते हैँ ” . एक लडकी बोली ‘ मुझे तो खून पीना है , कल मेरा जन्मदिन है बस थोड़ा ताजा खून पिलवा दो ”

उसी रात नेता के यंहा एक डिनर हुआ! कई नेता , पुलिस के अधिकारी , जज , पत्रकार . सब दंगो के बारे में स्वाद ले ले कर बात कर रहे थे .
डिनर की टेबल पर सजा था इंसानी दिल , मज्जा , लीवर के कबाब , दिमाग का कीमा और खून का जमा हुआ लोहुआ !
सब खाने पर टूट पड़े .

“दिल्ली का नाम कभी मत बदलना , यंहा सबसे लजीज दिल मिलता है ” इंसानी दिल के टुकडे को खाते हुए एक जज बोले .
-विवेक राा

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