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क्यों ज़रूरी है खेती में रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद की तरफ शिफ्ट होना 

हमारा देश कृषि प्रधान देश है साथ ही कृषि ही सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला क्षेत्र भी है। भारत में कई उद्योग कृषि उत्पाद पर ही आधारित हैं। मतलब भारत में कृषि एक संजीवनी की तरह है। जिस साल कृषि फसलें अच्छी हो, देश का अर्थतंत्र खुशनुमा रहता है और जिस साल फसलें कम होती हैं, देश का अर्थतंत्र लड़खड़ा जाता है।

पहले हमारे पूर्वज पारंपरिक साधनों से कृषि करते थे। बैल से हल जोतते थे, कुएं से पानी निकालकर खेत सींचते थे, खाद के तौर पर जैविक खाद डालते थे जो कि गाय, भैंस और बैल जैसे जानवरों के जैविक कचरे से बनती थी।

इस खाद से ज़मीन से पैदा होने वाली फसलों का स्वाद ही कुछ और होता था। यह जैविक खाद ज़मीन की आद्रता और उसके पोषक तत्वों को भी बनाए रखती थी। तभी पहले के ज़माने में कम लागत में ज़्यादा फसलें होती थीं।

शहरीकरण से खेती की ज़मीन में कमी और आबादी बढ़ने के साथ फसलों के उत्पादन पर दबाव

समय के साथ-साथ कृषि से सलंग्न ज़मीन शहरीकरण के चलते कम होती गई और बढ़ती हुई मांग के सामने आपूर्ति के लिए दबाव बढ़ने लगा। अब पहले जैसा समय नहीं रहा कि फसलें अपने तय समय से हों।

अब कम समय में ज़्यादा-से-ज़्यादा फसलें पैदा करने का दबाव बनता गया, जिसके चलते रासायनिक या कहें कि यूरिया और नाइट्रेट जैसे कृत्रिम खाद का चलन बढ़ता गया। ये कम समय में फसल को पोषण देकर तय समय से जल्दी पैदावार करता है। साथ ही फसलों को जीव-जंतु से बचाने के लिए भी कृत्रिम कीटनाशक भी बाज़ार में आ गए हैं।

क्यों खतरनाक हैं रासायनिक खाद और कीटनाशक

अब हम कहेंगे कि यह सब अच्छा है। कम समय में ज़्यादा फसल और कीटनाशक से फसलों की बर्बादी रोकी जा सकती है। पर आप यह भी जान लें कि ये रासायनिक खाद और कीटनाशक फसलों में पोषकतत्वों के साथ-साथ ज़मीनी आद्रता को भी खत्म करते हैं। कृत्रिम पोषक तत्वों से उत्पन्न हुई फसलें भी ज़्यादा स्वास्थ्यप्रद नहीं होती हैं।

कीटनाशक स्वास्थ्य के साथ-साथ पानी और हवा को भी दूषित करते हैं, यह किसानों की जेब पर भी बोझ बनते हैं, क्योंकि यह महंगे भी होते हैं।

जैविक खाद के फायदें

जैविक खाद जो प्राणी के जैविक कचरे से बनते हैं, उससे कोई नुकसान नहीं है। साथ ही इससे जैविक कचरे के निकलने की समस्या भी खत्म हो जाती है। ज़मीन में पोषकतत्व और आद्रता के चलते कम पानी की लागत लगती है। कीटनाशक के तौर पर हम गौमूत्र और नीम के पत्तों के रस का इस्तेमाल कर सकते हैं, यह दोनों चीज़ मुफ्त में मिलती है, जिससे किसान कम लागत में ज़्यादा फसल ले सकता है।

सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि रासायनिक खाद, कीटनाशक ना सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि ज़मीन, हवा और पानी को भी दूषित कर रहे हैं। इनका ज़्यादा इस्तेमाल ज़मीन की आद्रता भी खत्म कर देता है। बाद में यही ज़मीन बंजर बन जाती है।

जैविक खाद और कीटनाशक के चलते ज़मीनी आद्रता के साथ-साथ कचरे के निकलने की समस्या खत्म हो जाएगी और प्रदूषण भी कम होगा।

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