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जब मुस्लिम पड़ोसियों ने उठाई हिंदू दुल्हन को सुरक्षित विदा करने की ज़िम्मेदारी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Pixels

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Pixels

ज़रा सोचिए आप या आपके रिश्तेदार की लाडली की शादी हो, वह दुल्हन की लिबाज़ में बैठी शुभ मुहूर्त का इंतज़ार कर रही हो। अचानक दुल्हन के कानों‌ में सांप्रदायिक दंगों को प्रेरित करने वाली आवाज़ों के शोर दस्तक देते हैं। क्या बीतेगी उस लाडली पर जिसकी डोली उठने वाली हो। यह कतई काल्पनिक नहीं है, बल्कि ऐसा हुआ है उस दिल्ली में, जो बीते कुछ दिनों से जल रही है।

चांद बाग की 23 वर्षीय सावित्री प्रसाद को दुल्हन बनाने की तैयारी ज़ोर-शोर से हो रही थी। किसे पता था कि मंगलवार को शुभ मंगल विवाह के दिन हिंसक भीड़ से उन्हें सावधान होना पड़ेगा। इत‌ना सावधान कि दिल्ली स्थित मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाली सावित्री प्रसाद के परिवार शादी को रद्द करने के लिए मजबूर हुआ जा रहा था।

सावित्री के पिता ने बेटी की शादी तय समय पर करने की ठानी तो उनके मुस्लिम पड़ोसी भी साथ खड़े हो गए। सावित्री ने बताया कि मुसलमान भाइयों की बदौलत ही मेरी शादी हो पा रही है। शादी भी ऐसी जगह शांति से हुई, जहां से चंद कदम दूर का इलाका युद्ध क्षेत्र का रूप ले चुका था।

मुस्लिम पड़ोसियों ने एकजुट होकर सावित्री की शादी करवाने का ज़िम्मा लिया

शादी के लिए दुल्हन की पोशाक पहने हुए सावित्री के हाथों में लगी मेंहदी की लाली चीख चीखकर बता रही थी कि शादी की सारी तैयारी हो चुकी थी। हिंसक भीड़ भी चरम पर थी।

23 वर्षीय सावित्री प्रसाद ने बताया कि वो अपने घर में रो रहीं थीं, क्योंकि मंगलवार जो उसकी शादी का दिन था उस दिन हिंसा शुरू हो चुकी थी। पिता जी को मुस्लिम परिवारों से उम्मीद थी इसलिए उन्होंनें शादी का आयोजन यह कहते हुए तय किया कि उनके मुस्लिम पड़ोसी उनके साथ हैं।

सावित्री के घर से कुछ कदम दूर, मुख्य सड़क एक युद्ध क्षेत्र की तरह दिखाई दे रही थी, जहां कारों और दुकानों के साथ बर्बरता हो रही थी। यही नहीं, सड़क के दोनों किनारों पर मौजूद भीड़ के बीच की लड़ाईयों को जारी रखने के लिए पथराव जारी था।

क्या कहते हैं सावित्री प्रसाद के पिता?

सावित्री प्रसाद के पिता भोदय प्रसाद ने बताया कि जब हम छत पर गए तो चारों तरफ बस धुआं ही धुआं मौजूद था, मुस्लिम भाई साथ थे तब जाकर शादी की रस्म पूरी हुई।

भोदय प्रसाद ने कहा कि वह वर्षों से इस क्षेत्र में मुसलमानों के साथ बिना किसी परेशानी के रहते आए हैं लेकिन अब तक जो भी हुआ, वह भयानक था। उन्होंने आगे कहा, “हम नहीं जानते कि हिंसा के पीछे कौन लोग हैं लेकिन वे मेरे पड़ोसी नहीं हैं। यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है।”

सोमवार की शाम हुई सावित्री प्रसाद की प्री-वेडिंग रस्म

सावित्री के हाथों पर मेहंदी लगनी थी लेकिन हिंसा पहले ही नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। दूल्हा गुलशन अपने माता-पिता के साथ सावित्री प्रसाद के घर पहुंच चुके थे।

सावित्री कहती हैं,

बाहर से बहुत हंगामे की आवाज़ आरही थीं, जिसे हम साफ-साफ सुन सकते थे। मुझे इधर मेहंदी लग रही थी उधर हम उम्मीद कर रहे थे कि अगले दिन चीजें बेहतर होंगी लेकिन हालात बेहतर होने के बजाये और बदतर हो गए।

बड़ी मुश्किल से बारात पहुंची

बहरहाल, जयमाला और बाकी की रस्म के लिए नाम‌भर के बारातियों के साथ दूल्हा सावित्री के घर पहुंचे। सावित्री के पड़ोसी आमिर कहते हैं, “दूल्हे के पहुंचते ही मुस्लिम पड़ोसियों ने ज़िम्मा सम्भाला, शादी की रस्में हुईं, जिसमें एक हिंदू पुजारी ने पवित्र छंदों का पाठ किया और दूल्हा और दुल्हन घर के अंदर स्थापित एक छोटे से मंडप में फेरे लिए।

जयमाला की रस्म यानी मालाओं के आदान-प्रदान के बाद सावित्री प्रसाद और उनके पति को मुस्लिम पड़ोसियों की मदद से सकुशल  और दूल्हन के ससुराल के रास्ते तक पहुचाया गया।

भोदय प्रसाद कहते हैं, “आज हमारे रिश्तेदारों में से कोई भी मेरी बेटी की शादी में शामिल नहीं हो सका लेकिन हमारे मुस्लिम पड़ोसियों ने उनकी कमी महसूस नहीं होने दी। वे हमारा परिवार जो हैं।”

सावित्री की शादी को लेकर पड़ोस की मुस्लिम महिलाओं का कहना था कि जिस वक्त लड़की को सबसे ज़्यादा खुश रहना चाहिए था, वह घर में बैठकर रो रही थी। हम सबने मिलकर उसकी शादी करवाई, इससे बड़ी खुशी हमारे लिए क्या हो सकता है।

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