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ट्रंप के भारत आगमन पर किसानों ने क्यों मनाया काला दिवस?

रैली के दौरान किसान

रैली के दौरान किसान

24 फरवरी से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के भारत आगमन को राष्ट्रीय किसान महासंघ काला दिवस के रूप में मना रहे हैं।

किसानों की चिंता है कि दौरे के दौरान भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं, जिसके तहत हर साल 42000 करोड़ रुपये के कृषि, दूध व मुर्गी पालन उत्पादों का अमेरिका से आयात करने का दबाव अमेरिका द्वारा भारत पर बनाया जा रहा है।

राष्ट्रीय किसान महासंघ के नेतृत्व में हुआ विरोध प्रदर्शन

राष्ट्रीय किसान महासंघ ने प्रस्तावित भारत अमेरिका व्यापार समझौते के खिलाफ केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए 18 फरवरी को देशभर में ज़िला अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा था। पूरे देश के 200 से अधिक ज़िलों के ज़िला अधिकारियों को दिए इस ज्ञापन में कहा था कि भारत का किसान अमेरिका के किसान के साथ मुकाबला नहीं कर सकता है, क्योंकि अमेरिका में किसानों को बहुत भारी सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है।

वहीं, दूसरी तरफ भारत का किसान नकारात्मक सब्सिडी में अपना जीवन यापन कर रहा है, क्योंकि उसे अपनी फसलों का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार की तरफ से इस पर कोई सकारात्मक आश्वासन नहीं दिया गया। इसलिए 24-25 फरवरी को किसानों ने देशभर में काला दिवस मनाया व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पुतले जलाए।

अमेरिका ने 2014 के कृषि बिल में आगामी 10 साल के लिए अपने किसानों को 956 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी थी लेकिन 2019 के कृषि बिल में 867 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त सब्सिडी देने का ऐलान किया है। वहीं, दूसरी तरफ इस साल कृषि, ग्रामीण विकास और सिंचाई के लिए भारत का कुल वार्षिक बजट मात्र 40 बिलियन डॉलर है।

भूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष ने क्या कहा?

राष्ट्रीय किसान मज़दूर महासंग की रैली। फोटो साभार- साजन कुमार

भूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष शमशेर सिंह का कहना है,

अमेरिका के किसानों की तुलना में भारत का किसान काफी कमज़ोर है। जहां अमेरिका में सरकार द्वारा प्रायोजित कॉरपोरेट लेवल पर खेती होती है, किसानों के लिए व्यवसाय के साथ उचित मूल्य की गारंटी प्रदान करता है, वहीं भारत का किसान यह आजीविका कमाने के लिए करता है।

उन्होंने आगे कहा कि मोदी जी से अनुरोध करते हैं कि वह अमेरिका पर डब्ल्यूटीओ में भारत के किसानों पर सब्सिडी घटाने की याचिका वापस लेने का राजनीतिक दबाव बनाएं और कृषि निर्यात किसी भी डील पर किसान हित में फैसला लें।

वह आगे कहते हैं, “किसानों के हित लिए ज़रूरी होगा कि पहले भारत को विकसित देश की श्रेणी से निकालकर विकासशील देश की श्रेणी में लाकर अन्य क्षेत्र में व्यापारिक समझौते किए जाएं। अमेरिका में चुनाव जीतने के लिए प्रवासी भारतीयों के वोट बटोरने के साथ-साथ अमेरिका, भारत में निर्यात के लिए बाज़ार पर भी नज़र बनाए हुए है। अगर यहां की कृषि उत्पाद पर कोई गलत फैसला लिया गया, तो देश के किसानों की समस्या ओर भी बढ़ सकती है।”

अमेरिका और भारत में भूमि जनसंख्या अनुपात भी बिल्कुल अलग है। अमेरिका कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भारत से कई गुना अधिक खर्च करता है। एक तरफ केंद्र सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ इस तरह के किसान-विरोधी व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने का प्रयास हो रहा है, जिससे 2022 तक किसानों की आय नहीं, बल्कि आत्महत्या दोगुनी होने का खतरा है।

सरकार द्वारा लागत मूल्य लाभांश के विकल्प के तौर पर खुले बाज़ार में छोड़ना भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बर्बाद करना है। यह तब है जब किसान लागत मूल्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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