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दो लड़कों के प्यार से ऐतराज करने वाले लोग ज़रूर देखें शुभ मंगल ज़्यादा सावधान

यह उन लोगों के लिए गलत फिल्म साबित हो सकती है, जो दो लड़कों के रिश्तों को अभी अलग नज़र से देखते हैं। दो प्रमुख किरदारों के गे लव स्टोरी पर बनी यह फिल्म छोटे शहरों की रूढ़िवादी सोच को पर्दे पर दिखाती है।

मुझे आयुष्मान खुराना के तारीफ में कोई शब्द नहीं जोड़ने हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने एक अभिनेता के तौर पर खुद को किस तरह स्थापित किया है, यह मुझे बताने की ज़रूरत बिल्कुल भी नहीं है।

होमोसेक्शुएलिटी की लेकर गलत धारणाएं

डिजिटल स्टार उर्फ जीतू भैया पहले ही कोटा फैक्ट्री जैसे प्रसिद्ध सीरीज़ से अपना एक अलग फैनबेस बना चुके हैं। इस फिल्म में उनका किरदार इलाहाबाद जैसे छोटे शहर ताल्लुक रखता है। जहां इंटरनेट आने के बाद भी होमोसेक्शुएलिटी को लेकर तरह-तरह की धारणाएं ही बनी रहती है।

फिल्म के एक दृश्य में आयुष्मान खुराना और जितेन्द्र कुमार
फोटो साभार – सोशल मीडिया

गजराज राव और मां नीना गुप्ता ने बेटे की शादी के लिए कुछ और सपने देखे थे। बेटे के लिए एक सुंदर,सुशील और उपयुक्त लड़की की भी खोज पूरी हो गई, जिसे आम भारतीय माओं की तरह प्यार के रूप में सोने का कंगन तो मिल गया लेकिन सपनों का राजकुमार नहीं।

कंगन सुहाग की निशानी होती है और भारत में सालों से चली आ रही प्रथा में होने वाली बहुओं को अपनी सास से कंगन मिलते रहें हैं। पिता का किरदार निभा रहे हैं गजराज राव हर वह खूबी से लैस हैं। उन्हें अपने बेटे के प्यारे क्षणों को देखकर उल्टी आने लगती है। किसी का प्यार इतना घिनौना हो सकता है कि उसे देखकर उल्टी आ जाए ? कतई नहीं।

दिल्ली दिखी कूल

फिल्म में दिल्ली को काफी कूल दिखाया गया है। जिस तरह से आयुष्मान खुराना और जितेंद्र बाइक पर बैठकर संगीत साझा करते हुए नज़र आते हैं, उससे साफ पता चलता है कि समलैंगिक लोगों के प्रति दिल्ली की सोच उदार है।

6 सितंबर 2018 के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों की स्वीकार्यता और बढ़ी है। अब उन्हें यानी कि दिल्ली वालों को ₹300 की टिकट खरीद कर भी दो लड़कों को किस करते हुए देखकर असहज महसूस नहीं होता है।

आयुष्मान यानी फिल्म का कार्तिक ‘प्यार तेनु करदा गबरू’ से एक दृश्य में एंट्री लेकर हर वह मुमकिन कोशिश करते हैं, जिससे कि जितेन्द्र कुमार यानी अमन का परिवार इस नाक में नथुनी पहने गबरू के प्यार को समझ सके।

प्यार तो प्यार होता है। इसके लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, ये तो आगे फिल्म देखने से पता चलेगा।

हितेश केवालिया ने फिल्म का डायरेक्शन और लेखन किया है जो कि तारीफे काबिल है। उनकी लेखनी में कई जगहों पर हर वह बारीकी देखी जा सकती है, जिससे सीट पर बैठे दर्शक खुद से जोड़कर ठहाकों में लीन हो सकें। पूरी फिल्म के दौरान कई ऐसे मौके आते हैं।

पारिवारिक उठापटक, बड़े भाई -छोटे भाई की तल्खी और उनकी बीवियों की छोटी-छोटी लड़ाईयां और इन सब के बीच में पिसते हुए गे लवर कार्तिक और अमन।

प्यार तेनु करदा गबरू।

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