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“मेरी नहीं तो किसी की नहीं, जैसी मानसिकता प्यार नहीं दरिंदगी है”

“मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं होने दूंगा” और किसी की “ना” को सहन नहीं करने वाली मानसिकता को प्यार नहीं दरिंदगी कहते हैं। इसी घटिया मानसिकता (बीमारी) के कारण किसी लड़की के ऊपर एसिड फेंका जाता है, तो किसी लड़की को ज़िंदा जलाया जाता है।

इसी मानसिकता के कारण अभी कुछ दिन पहले 3 फरवरी को महाराष्ट्र के वर्धा ज़िला के हिंगनघाट में एक युवक ने महिला शिक्षक को जला दिया, जिसकी 10 फरवरी को इलाज के दौरान मौत हो गई है।

जब मैं यह न्यूज़ देख रहा था और पढ़ रहा था, तब इस घटना को एकतरफा प्यार कहा जा रहा था। इसका शीर्षक (हेडलाइन) कुछ ऐसा था, “एकतरफा प्यार में एक युवक (जो शादीशुदा है) ने एक महिला शिक्षक को जलाया”।

यह एकतरफा प्यार नहीं हो सकता है

मुझे यहां पर इसे ‘एकतरफा प्यार’ कहने पर दिक्कत है। अगर उस युवक को उस लड़की से वाकई में प्यार होता तो वह उसे जलाता नहीं, उसकी ‘ना’ को सह लेता। वह जिससे प्यार करता है, उसे कभी तकलीफ नहीं देता, उसके ‘ना’ कहने के फैसले की इज्ज़त करता।

हिंगनघाट की घटना में उस युवक ने उस महिला शिक्षक के साथ जो दरिंदगी की, जिससे उसकी जान चली गई, वह बेहद शर्मनाक और घिलौना काम है, उस गुनहगार को जल्द-से-जल्द और कड़ी-से-कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।

बॉलीवुड फिल्मों में प्यार में सहमति-असहमति

शाहरुख खान की ‘डर’ मूवी में ‘तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरण’ यह वही मानसिकता (बीमारी) है, जिसमें यह कहा गया है कि तू मुझसे प्यार करे या ना करे, वह मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता है।

फिल्म डर का सीन

यहां पर उस ‘ना’ की कोई अहमियत ही नहीं है और जहां उस ‘ना’ की कोई अहमियत नहीं है और ना कहने वाले के फैसले की कोई अहमियत नहीं है, उसे कभी प्यार नहीं कहना चाहिए, वह प्यार हो ही नहीं सकता है।

अभी कुछ महीने पहले आई मूवी ‘कबीर सिंह’ में ‘ये मेरी बंदी है’, भी वही मानसिकता है, जिसमें उस ‘ना’ की कोई अहमियत नहीं है। अमिताभ बच्चन की पिंक मूवी में इस ‘ना’ का मतलब सही से समझाया गया है, जिसमें कहा है गया है,

ना सिर्फ एक शब्द नहीं, अपने आपमें एक पूरा वाक्य है। इसमें किसी तर्क, स्पष्टीकरण, एक्सप्लनेशन या व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती, ना का मतलब ना ही होता है।

सामने वाले की पसंद-नापसंद का सम्मान ज़रूरी है

जो भी लोग किसी से एकतरफा प्यार करते हैं, वह यह समझ लें कि आप जिससे प्यार करते हैं, उसे आपको ‘हां’ ही कहना चाहिए, यह ज़रूरी नहीं है। उसे यह तय करने का पूरा अधिकार है कि उसे अपनी ज़िन्दगी किसके साथ बितानी है और किसके साथ नहीं बितानी है, उसे क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है।

फिल्म कबीर सिंह का सीन।

एकतरफा प्यार का मतलब यही है कि आप जिससे प्यार करते हैं, वह आपसे प्यार नहीं करता। मैं यह भी मानता हूं कि किसी को किसी से भी प्यार हो सकता है और प्यार होना कोई गुनाह भी नहीं है पर जब आप जिससे प्यार करते हैं उसके ‘ना’ को सह नहीं पाते और ‘तुम मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं होने दूंगा’ यह कहते हैं, तो असल में आपको उसके साथ कभी प्यार हुआ ही नहीं था, प्यार का सही मतलब आप समझते ही नहीं हैं।

‘ना’ कहने की वजह से किसी को तकलीफ देना, किसी की जान लेना, इसे प्यार नहीं कहते हैं, इसे बीमारी कहते हैं। वह बीमारी हुई तो आपको है पर किसी और की ज़िन्दगी को बर्बाद कर देती है।

एकतरफा प्यार में इस ‘ना’ को समझने की ज़रूरत है और ना कहने वाले के फैसले की रिस्पेक्ट करने की ज़रूरत है। ना कहने वाले को किसी भी तरह की हानि या तकलीफ नहीं होनी चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं सोचते या समझते हैं, तो समझ लीजिए, जिसे आप प्यार कह रहे हैं, वह प्यार नहीं एक बीमारी है। प्यार तो जिससे प्यार करता है, उसका हमेशा भला चाहता है, किसी की बर्बादी नहीं चाहता है, किसी को ज़िन्दा नहीं जलाता है।

अब 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे आ रहा है, इसे सेलिब्रेट कीजिए, प्यार का असली मतलब समझ लीजिए पर किसी ने ‘ना’ भी कहा तो उसके फैसले का सम्मान कीजिए।

जिससे प्यार करते हो, उसको आपसे डर लगने लगे तो वह प्यार नहीं है।
जिसमें फोर्स किया जाए, वह प्यार नहीं है।
जिससे प्यार करते हो, उसी को धमकाया जाए, वह प्यार नहीं है।
जो किसी को बर्बाद करने की सोचे, वह प्यार नहीं है।
किसी को तबाह करने की सोचे वह प्यार नहीं है।
किसी को जान से मारने की कोशिश करे, वह प्यार नहीं है।
प्यार किसी की ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाता है, बिगाड़ता नहीं है।
प्यार ज़िन्दगी देता है, किसी की ज़िन्दगी लेता नहीं है।
प्यार किसी की अच्छी यादें बन सकता है पर किसी का बुरा सपना नहीं है।

इस वैलेंटाइन डे पर मैं यह उम्मीद करता हूं कि एसिड अटैक करने वाली, ज़िंदा जलाने वाली, डराने-धमकाने वाली घटिया मानसिकता समाज से खत्म हो जाए।

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