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“मेरा कज़िन भाई रंग लगाने के बहाने होली में भाभी को गलत तरीके से छुआ करता था”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

वैलेंटाइन वीक खत्म हो गया है और अब फाल्गुन आ चुका है। सच में वसंत की समाप्ति और फाल्गुन का आगमन एक नया उत्साह भर देता है। हर्सोल्लास से भरा यह माह सभी को खुश कर देता है।

बिहार, झारखंड और यूपी के कई इलाकों में होली का त्यौहार खास महत्व रखता है, क्योंकि होली में रंग लागने के नाम पर लोग सीमाओं को लांघ देते हैं। सहमति और असहमति नाम की कोई चीज़ होती भी है, इसका कतई ध्यान नहीं रखा जाता है।

चाहे वो रात को होलिका दहन के लिए कई दिनों से लकड़ी जुगाड़ करना हो या होली के दिन रंग में नहाकर भूत हो जाना, सच में इस त्यौहार का रंग सब पर बराबर चढ़ता है। आइए आपको होली से जुड़े कुछ अनुभव बता रहा हूं।

पिछले होली में अपने एक रिश्तेदार के यहां गया हुआ था। वहां मैं सबको नहीं जानता था, तो रंग भी केवल अपने कुछ लोगों के साथ ही खेल रहा था, फिर नहा-धोकर साफ होकर बाहर निकले ही थे कि उनके पड़ोस में रहने वाली एक भाभी आई और मेरे कज़िन भाई को रंग से नहला दिया।

फिर मेरे कज़िन भाई ने भी हाथ में अबीर (गुलाल) लेकर भाभी के मुंह, माथा और यहां तक कि ब्लाउज़ में पीछे से हाथ घुसाकर पूरा रंग दिया। मुझे लगा कि भाई गुस्से में कुछ ज़्यादा ही कर गया। अब मामला बिगड़ सकता है मगर हुआ ठीक उल्टा, भाभी ने भाई को कोल्ड ड्रिंक दिया।

कोल्ड ड्रिंक तो मुझे भी दिया गया और कई दफा मेरे ज़हन में भी यह बात आई कि मुझे कुछ वैसा करना चाहिए मगर मैंने नहीं किया, फिर मैं मन ही मन हंसने लगा कि यह क्या हो गया होली को? हम आज तक होली को क्या समझते थे और यह क्या निकला? वैसे बता दें भाभी भांग के नशे में थी पूरी तरह से!

बाद में भाई से इस घटना पर सवाल करने पर वह मुझे अपने एक दोस्त के घर ले गया, जहां जाकर मुझे लगा कि होली को लेकर मेरे पास जो भी समझ थे, सब धरे के धरे रह गए।

सामने मेज़ पर शराब की बोतलें खुली हुई थीं। घर के सभी लोग रंग से सराबोर हो चुके थे। भांग और शराब की महक पूरे घर को नशीला बना रहा था। आंगन में अनेक तरह के रंगों के पानी बह रहे थे और साथ में अश्लील गाने भी बज रहे थे। मुझे ठीक से याद नहीं मगर गाने के बोल कुछ ऐसे थे, “बैंगन से काम चलता भाभी के।”

वैसे तो सब रंग से भूत बने हुए थे फिर भी रह रहकर कुछ-कुछ देर में एक-दूसरे को रंग लगा रहे थे और अब रंग लगाने का तरीका बिल्कुल बदल चुका था। कभी किसी भाभी के मुंह पर लगाते हुए छाती को छुआ जा रहा था, तो कभी ज़मीन पर भाभी को गिराकर उनके उपर लेट रहे थे।

पानी में भीगी हुई भाभी अपने बालों को संवारती कि एक ने उनके पैरों में रंग लगाने के नाम पर जांघो पर भी रंग लगा दिया और सबसे अजीब बात यह थी कि भाभी भी लड़कों के साथ ऐसा ही कर रही थी।

लड़कों के शरीर पर केवल एक जांघिया ही था। बाकी कपड़ों को फाड़ दिया गया था। भाभियां भी लड़कों के प्राइवेट पार्ट में रंग लगा रही थीं। आप सभी को लग रहा होगा कि मस्तराम की कहानी पढ़ रहे हो मगर ऐसा नहीं है।

आज के समय में अधिकांश इलाकों में जिस तरह से होली के त्यौहार में लोगों की समहमित के बिना रंग लगाया जाता है, वह अश्लील ही है। कईयों को मेरे इस लेख से आपत्ति हो सकती है मगर मैं किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं चाहता हूं।

यह सच है कि होली जैसे त्यौहार को कुछ मानसिक रूप से बीमार लोगो ने मज़े लेने का ज़रिया बना दिया है। हमने देखा है कई घरों में जहां नई-नई शादियां होती हैं, वहां मित्रों का आना-जाना बढ़ जाता है।

एक पल को तो मुझे लगा कि शायद हमलोगों को होली खेलना आता ही नहीं है। ऐसी ही होली होती होगी, क्योंकि किसी भी औरत ने एक बार भी विरोध नहीं किया। मेरे भी प्राइवेट पार्ट में रंग लगाए गए थे। मैं आशा करता हूं कि अबकी बार होली में लोग थोड़ा सा सहमति और असहमति का ख्याल ज़रूर रखें।

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