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“वेश्यावृत्ति पर उंगली उठाने से पहले अपनी गंदी मानसिकता बदलनी होगी”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सआदत हसन मंटो के बारे में किताब पढ़ते हुए कुछ लेखों पर नज़र पड़ी। उस किताब में छपे ‘इस्मतफरोशी’ नामक लेख ने मेरे दिमाग को झकझोरने वाला काम किया। वेश्यावृत्ति के प्रति इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे इस मामले पर गंभीरता से सोचने हेतु मजबूर कर दिया।

यह अनुभव ठीक वैसा ही था जैसा कि ओशो की किताब “संभोग से समाधि की ओर” ने सेक्स के प्रति मेरी मानसिकता पर मुझे सवाल उठाने के लिए मजबूर कर दिया था। मेरी सलाह है कि जब भी आपको समय मिले, तो एक बार इस लेख को अवश्य पढ़ें।

“वेश्यावृत्ति समाज के ऊपर काला धब्बा” एक गलत धारणा

प्रतीकात्मक तसवीर। फोटो साभार- Flickr
प्रतीकात्मक तसवीर। फोटो साभार- Flickr

मेरी तरह बहुत से लोग यही मानते होंगे कि वेश्यावृत्ति समाज के ऊपर एक काला धब्बा है। सच तो यह है कि वेश्याओं व वेश्यावृत्ति पर हम बात ही नहीं करना चाहते हैं, बल्कि ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे इनका कोई वजूद ही नही हैं लेकिन वजूद तो है और हमेशा से रहा भी है और हमेशा रहेगा।

पहली बात तो यह है कि हमारे बात ना करने से यह मुद्दा दब नहीं जाएगा। मंटो ने अपनी ज़्यादातर कहानियों में वेश्याओं पर ही लिखकर उस सच्चाई को दर्शाया है, जिस पर हम बात करने से मुंह फेर लेते हैं।

यही कारण है कि समाज की इस काली सच्चाई को आईना दिखाने के कारण उनको ज़िंदगी भर अदालतों के चक्कर लगाने पड़े। उनकी जो भी कहानी प्रकाशित होती है, उस पर मुकदमा हो जाता है। ज़्यादातर लोगों ने उन पर यही आरोप लगाया कि वे अश्लीलता परोसने का काम करते हैं। जबकि उनका मानना है कि उन्होंने सिर्फ समाज को उसी की सच्चाई दिखाई है। उनका कहना है कि अगर समाज की सच्चाई नंगी है, तो मैं क्या करुं? मेरा काम उसे कपड़े पहनाना नहीं है।

 वेश्यावृत्ति गैरकानूनी चीज़ नहीं: मंटो

मंटो।

मंटो का कहना था कि वेश्यावृत्ति कोई कानून विरोधी चीज़ नहीं है। यह एक ऐसा पेशा है, जिसको अपनाने वाली औरतें कुछ सामाजिक ज़रूरतें पूरा करती हैं। जिस चीज़ के ग्राहक मौजूद हों और वह मार्केट में नज़र आए तो हमें ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

हमें उनकी आजीविका के साधन पर कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। इसलिए कि हर शहर में उनके ग्राहक मौजूद हैं। उनके ग्राहकों की वजह से ही उनका वजूद है। वेश्या वह औरत है, जिसके दरवाज़े हर उस शख्स के लिए खुले हैं जिसकी जेब में उसे एक निश्चित समय तक खरीदने के लिए चंद रुपये मौजूद हों।

चाहे वह मोची हों या भंगी, लंगड़ा हो या लूला, खूबसूरत हो या बदसूरत, उसकी ज़िंदगी का अंदाज़ा भली प्रकार से लगाया जा सकता है।

एक बदसूरत मर्द मुंह से पायरिया लगे दांतों की बदबू लिए सफाई पसन्द वेश्या के घर आता है। चूंकि वह व्यक्ति वेश्या के शरीर को एक निश्चित समय तक खरीदने के लिए रुपये रखता है, वह नफरत के बावजूद उस ग्राहक को छोड़ नहीं सकती है। सीने पर पत्थर रखकर उसे उस ग्राहक की बदसूरती और उसके मुंह की बदबू बर्दाश्त करनी ही पड़ती है, क्योंकि वह जानती है कि उसका हर ग्राहक अपोलो नहीं हो सकता।

हज़रात! यह जिस्मफरोशी ज़रूरी है

आप शहर में खूबसूरत और उम्दा गाड़ियां देखते हैं। ये खूबसूरत और उम्दा गाड़ियां कूड़ा-करकट उठाने के काम नहीं आ सकती। गंदगी और गलाज़त उठाकर बाहर फेंकने के लिए दूसरी गाड़ियां मौजूद हैं, जिन्हें आप कम देखते हैं।

देखते भी हैं तो फौरन अपनी नाक पर रुमाल रख लेते हैं। जिस तरह इन गाड़ियों का होना ज़रूरी है, उसी तरह उन औरतों का वजूद भी ज़रूरी है, जो आपकी गलाज़त उठाती हैं। अगर ये औरतें ना होतीं, तो गली-कूचे मर्दों की गंदी हरकतों से समाज में सड़न पैदा कर देते।

सोचिए हमारी सोच कैसी है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

वेश्याओं का काम बुरा नहीं होता है, बल्कि हमारी सोच बुरी होती है। वे निडर होकर अपना काम करती हैं, तो दूसरी तरफ आप बिन बुलाए पहुंच जाते हैं। हमने उसके काम को गंदा माना है लेकिन उसकी संगत में सेक्स को गंदा क्यों नहीं माना?

यदि वे गलत हैं, तो सेक्स प्राथमिक ज़रूरत कैसे है? ठीक वैसे ही जैसे खाना, पीना और सोना है। इसकी पूर्ति होना आवश्यक है। जब तक ये जरूरतें पूरी नहीं होतीं, तब तक हम अपनी बाकी ज़रूरतों पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। सेक्स की मांग को ही एक वेश्या पूरा करती है। तो यह मांग हमेशा से रही है और हमेशा रहेगी। अगर मांग उत्पन्न होती है, तो कहीं ना कहीं से उसकी पूर्ति तो होगी ही। 

वेश्यावृत्ति को लीगल करने की दिशा में सरकार को विचार करना चाहिए

सरकार को इस काम से कुछ आमदनी हो और वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं की दशा में सुधार हो, यह तभी सम्भव है जब वेश्यावृत्ति को लीगल करने की दिशा में सरकार कदम उठाए। भारत में करीब 1170 रेड लाइट एरिया हैं जिनमें करीब 30 लाख लड़कियां रोजाना  2000 लाख रुपये का रोज़ाना व्यापार करती हैं। 

वेश्यावृत्ति को लीगल कर देने से दलालों द्वारा वेश्याओं पर होने वाला अत्याचार रुक जाएगा और वेश्याओं को दूसरे कर्मचारियों की तरह सामाजिक लाभ मिल सकेंगें। इसके साथ ही हमें वेश्यावृत्ति के प्रति बनी अपनी सोच को बदलना होगा, तभी समाज में कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे।

वेश्यावृत्ति समाज की सच्चाई है, जिसे कानूनी घोषित कीजिए या गैरकानूनी, यह हर हालत में अपना वजूद रखेगी। बस हमारा दायित्व है कि इस सच्चाई को स्वीकार कर लें।

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