देखो, ऐ दीवानों तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम ना करो। किसी भी नौजवान का भटकना जब सोशल मीडिया पर सुर्खियां बनकर उसे हीरो बना देता है या फिर भटककर धर्म और विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े नारे लगाना फैशन बन जाता है।
यही नहीं, जब “भटकना” राजनीति के हाथों मोहरा बनकर पाले बदलने लग जाता है, जब “भटकना” धर्मांध उग्र भीड़ के हाथों की कठपुतली बन जाता है, तब “भटके हुए” आभासी दुनिया में विचरण करने वाले सभी नौजवान यथार्थ के धरातल पर भटकते हैं। तब वे यूं ही सिर्फ और सिर्फ परिवार, समाज और देश को शर्मसार करते हैं।
ऐसा कब तक चलेगा?
इन भटके हुए नौजवानों के हर दुष्कृत्य को जब तक धर्म, राजनीति और विभिन्न विचारधाराओं का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा, तब तक ये अधिक-से-अधिक संख्या में भटकाव के रास्ते पर चलते रहेंगे। चलेंगे ही नहीं, बल्कि चलकर नायक बन प्रसिद्धि पाने को यूं ही लालायित होते रहेंगे।
शायद उन्हें संरक्षण देने वाले भी तब तक नहीं जागेंगे, जब तक भटके हुए नौजवान उनके खुद के घर भी नहीं फूंक डालेंगे।
फिर चाहे वह शर्जील हो या कोई रामभक्त। कभी ‘अल्लाह’ के नाम पर तो कभी ‘राम’ के नाम पर भटकना अब देश के युवा वर्ग में फैशन के तौर पर अपनाया जाने लगा है। वह भी इन दोनों नामों में छिपी विचारधाराओं के मूल को समझे बगैर!
पता ही नहीं चला कब भटक गए युवा
मेरे देश की फिज़ाएं ना जाने कब से इन नौजवानों को यूं भटकाने लगीं, समझ ही नहीं आ रहा। ये कम-से-कम मेरे रामभक्त या अल्लाह के नुमाइंदे तो कर नहीं सकते। वरना राम और अल्लाह के चरित्र की महिमा को इन्होंने अवश्य समझा होता।
मेरे राम के भक्त यूं हिंसा का सहारा कभी नहीं लेते। तो सवाल उठता है कि सोशल मीडिया पर लोग इन भटके हुए नौजवानों को शह देते हुए इनका उत्साहवर्धन करते हैं, तो दुख होता है।
दुख होता है जब इधर वाले भटके नौजवानों की तुलना उधर वाले भटके हुए नौजवानों से करने की होड़ मच जाती है। हमें याद रखना चाहिए कि नौजवानों का यूं भटकना कभी भी किसी भी कीमत पर सही नहीं कहा जा सकता।
तो जवाब हां है। वास्तव में युवाओं के इस भटकाव में सोशल मीडिया का भी पूरा-पूरा हाथ है, क्योंकि वास्तविक जीवन और आभासी जीवन के बीच के अंतर को न समझ पाने वालों को यूंही सोशलमीडिया भटकाव के रास्ते पर ले जाती है। तभी तो अपनी पल-पल की खबर सोशल मीडिया पर लाइव करने वाला यह नाबालिग भी शायद इसी आभासी दुनिया का शिकार हो गया है।
गोली चलाने वाला नौजवान
इस युवक के परिवारजनों के अनुसार वह भी वह 15 दिनों से मानसिक तौर पर बीमार था। कभी भी जय श्रीराम के नारे लगाने लगता था। अजीब सी हरकतें कर रहा था। उसे दिखाने के लिए किसी डॉक्टर से भी बात की थी परिवार वाकों ने। गुरुवार को स्कूल से लौटने के बाद उसे डॉक्टर के पास ले जाने वाले थे। इससे पहले दिल्ली में उसने गोली चला दी।
सुना है कि वह युवक हिंदुत्व को लेकर काफी कट्टर था। वह हमेशा हिंदुत्व की पैरवी करता था। कोई उसे समझाने की कोशिश करता तो उससे उलझ जाता। कई बार मुहल्ले के लोगों से भी उसकी ऐसे ही मुद्दों पर बहस हो चुकी थी।
गोली चलाने से पहले युवक ने फेसबुक पर क्या लिखा?
दिल्ली जाने से पहले उसने फेसबुक पर लिखा था, “उसे आज कुछ हो जाए तो भगवा वस्त्रों में ही लपेटकर अंतिम संस्कार करें।” वह कासगंज में 2 साल पहले निकाली गई तिरंगा यात्रा के दौरान हुई हिंसा में मारे गए चंदन की मौत का बदला लेना चाहता था। फेसबुक पर युवक की तलवार और हथियारों के साथ कई फोटो भी मौजूद हैं।
एक नाबालिक के मन में हिंदुत्व’ का ‘नायक’ बनने की चाह के चलते इतना ज़हर कब और कैसे भर गया कि वह सही गलत का भेद ही भूल गया।
घटना के तुरंत बाद इस बच्चे का फेसबुक प्रोफाइल चेक किया था मैंने और बेहद शर्मनाक बात यह रही कि उस वक्त भी लोग लगातार कमेंट में “बहुत अच्छा किया, जय श्रीराम, दो चार को और आज़ादी दे दो” आदि कमेंट मौजूद थे।
मेरे हिसाब से ऐसे कमेंट्स लिखने वाले भी सभ्य समाज के ही लोग थे। ऐसे ही लोगों के उत्साहवर्धन का परिणाम है, जो देश के नौजवान यूं भटकते जा रहे हैं। सोशल मीडिया ऐसे भटकाव में बराबर का ज़िम्मेदार है। सवाल उस सिस्टम से है कि जब वह युवक कई दिनों से ऐसी पोस्ट कर रहा था, तो माता पिता को किसी ने खबर क्यों नहीं की?
फेसबुक पर कई पोस्ट में युवक के हाथों में हथियार मौजूद
उसके प्रोफाइल में तमाम हथियारों के साथ कई फोटो हैं जो बाकायदा पूरे तामझाम के साथ डाले गए। क्यों किसी ने भी उस यूवक को सच्चे रामभक्त होने का अर्थ नहीं समझाया? यह दुख का विषय है।
सोशल मीडिया क्या केवल तफरीह लेने की जगह है? हमारा एक छोटा सा लाइक, कमेंट किसी पर क्या सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालता है अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।
समाज की ज़िम्मेदारी
काश कि सोशल मीडिया पर रहने वाले हम सभी अपने फेसबुक प्रोफाइल के अंतर्गत ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए अपने अकाऊंट से जुड़े लोगों, विशेषकर नाबालिग बच्चों पर नज़र बनाए रखें।
यह समझने की कोशिश करें कि कहीं वह किसी गलत रास्ते पर भटक तो नहीं रहा है। यदि कहीं ज़रा सा भी संदेह लगे, तो कृप्या परिवारजनों को अवगत कराने का प्रयास कर किसी अनहोनी को टालने में सहयोग दें।
इस घटना से सीख लेते हुए हमें सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने संबंधित नियमों, कायदे, कानूनों के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत व्यवहार, संवाद जो लाइक्स और कमेंटस के रूप में सामने आते हैं, उन्हें व्यवस्थित और संतुलित करना होगा, क्योंकि लाइक्स की गिनती और कमेंट्स की भाषा किसी का जीवन बना भी सकती है और किसी का जीवन तबाह भी कर सकती है। याद रखें सावधानी आपकी सुरक्षा हमारी नौजवान पीढ़ी की!
जय श्रीराम!