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“रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ते वक्त क्लास में बच्चे एक-दूसरे के कान में हंसी-मज़ाक करते थे”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज भी स्कूलों में रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ाते वक्त कई बार टीचर असहज महसूस करते हैं। एक अजीब सी झिझक होती है उनके मन के अंदर कि पता नहीं स्टूडेंट्स सामने से कौन-सा प्रश्न कर दें।

कई बार जब बच्चे कुछ असहज सवाल कर देते हैं, फिर टीचर या तो शांत हो जाते हैं या फिर टॉपिक ही चेंज कर देते हैं। आज की 4जी इंटरनेट सेवा यूज़ करने वाली पीढ़ी के पास कैलक्यूलेटर हो ना हो, एंड्रॉइड फोन ज़रूर मिल जाएगा।

बंदिशें हमारे घरों से ही हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

यह भी एक कारण है कि बच्चों को सारी जानकारी पहले ही हो जाती है। जब भी रिप्रोडक्शन चैप्टर क्लास रूम में पढ़ाया जाता था, तब या तो बच्चे एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगते थे या फिर कान में एक-दूसरे से कमेंट पास करके हंसी मज़ाक करते थे।

अक्सर हमारे घरों में भी बचपन से यही सिखाया जाता है कि बड़ों के सामने ऐसी बातें मत करो। लड़की हो तो ढंग से रहो और ना जाने क्या-क्या! लेकिन हमको जब तक इन सारी चीज़ों को लेकर सब कुछ बताया नहीं जाएगा, तब तक हम कैसे जान पाएंगे कि भविष्य में हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत।

हमें अपनी आने वाली जेनरेशन से इस विषय पर डिसकस करने में कोई शर्म नहीं महसूस करनी चाहिए। वरना पर्याप्त जानकारी ना होने के कारण बच्चे कम उम्र में गलत काम कर बैठते हैं और समाज इसका ठीकरा माँ-बाप के सिर पर फोड़ता है। इसलिए सही उम्र में चीज़ों की जानकारी होना सही है।

इससे हम अपना अच्छा-बुरा जान सकते हैं और ऐसे किसी भी गलत काम को करने से पहले 10 बार सोचते हैं लेकिन जब ज्ञान ही नहीं होगा, तो सही-गलत सब एक सा ही लगता है।

जब हम हर एक विषय पर खुलकर बात कर सकते हैं, तो आखिर इस बारे में चुप्पी क्यों? जब तक हम अपनी पीढ़ी को इससे अवगत नहीं कराएंगे, तब तक हम दूसरी पीढ़ी की कामना भी कैसे कर सकते हैं भला!

लोगों में जानकारी की कमी

लोग सोचते हैं ऐसे सवाल करने का तुक ही क्या है भला? कहीं लोग मुझे गलत तो नहीं समझेंगे? सभी इस बात से परिचित हैं कि रिप्रोडक्शन सिस्टम का कार्य सन्तानोपत्ति से है, जो कि मानवजाति की निरंतरता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।

इसे किसी भी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता है। गर्भ के नौ महीने पूर्ण होने पर प्रजनन होता है। अज्ञातवश हमारे देश में प्रजनन की असावधानियों में स्त्रियां बहुत रोगग्रस्त होती हैं।

महिलाओं को पर्याप्त जानकारी नहीं होती कि गर्भ के दौरान क्या सावधानी बरतें और कैसा आहार लें वगैरह। अगर प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन ना हो, तो प्रजनन क्रिया आज भी बिना कष्ट के स्वाभाविक रूप से सम्पन्न हो सकती है।

यह एक महत्वपूर्ण विषय है, जो हर किसी के जीवन में अहम भूमिका निभाता है। इसलिए हमें इन विषयों पर बात करने में झिझक नहीं महसूस करनी चाहिए। यह हमारे भविष्य की रूप रेखा बनाने में सहयोग करता है।

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