मैं मोहब्बत में पड़ा हूं। हां मोहब्बत से ही पलते हैं, बड़े होते हैं, स्कूल में सबसे दोस्ती करते हैं, हर जात, ह,र धर्म, हर रंग, हर लिबास और हर इंसान को हम उसी दर्ज़े से देखते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं मोहब्बत करना मुश्किल हो जाता है और मोहब्बत दुनिया के सामने लाना तो लगभग असंभव है।
लड़कियों के लिए इश्क करना और मुश्किल होता है। लोग उन्हें जज करते हैं। हम लोग जजमेंटल तो शुरू से हैं हीं। मुझे समझ नहीं आता कि क्या गलत है प्रेम करने में? क्या राधा ने प्रेम नहीं किया था? क्या द्रौपदी ने प्रेम नहीं किया था? क्या मर्यादा पुरुषोत्तम से माता सीता ने शिद्दत से प्यार नहीं किया था? क्या पार्वती ने महादेव से मोहब्बत नहीं की थी? क्या मीरा ने कृष्ण से अनकंडीशनल इश्क नहीं किया?
तो ये कब किसने लिख दिया और कानून बना दिया की मोहब्बत संस्कारों के खिलाफ है?
असली कानून मोहब्बत है
मोहब्बत असल में कानून है हमारी परंपरा और हमारे समाज का। हमारी मर्यादा ही मोहब्बत है, तो फिर अगर कोई लड़की किसी को दिल से चाहती है, तो क्या बुरा है इसमें? अगर मोहब्बत करना गलत है समाज के खिलाफ है, तो क्या माँ सीता भी समाज को नहीं दर्शाती हैं?
ये कब से हो गया कि नफरत फैलाना, नफरत की बात करना और नफरत दिखाना मोहब्बत करने से ज़्यादा आसान हो गया है? क्यों ऐसा है कि आप जिसे चाहते हैं, उसके साथ रहने के लिए आपको अनुमति लेनी पड़ती है। वे भी उन लोगों से जिन्हें आपसे कोई लेना देना ही नहीं है।
मैं मोहब्बत में पड़ा हूं। सच कहूं तो, ये बहुत खूबसूरत एहसास है। कम से कम यह तो लगता है कि कोई तो है, जो आपको खुद से बढ़कर समझता है। खुद से बढ़कर आप पर जान छिड़कता है। किसी के बारे में सोचकर अचानक आपको हंसी आ जाती है। अचानक आप के लब किसी की याद में खिलखिला उठते हैं।
ये जो बेड़ियां मोहब्बत पर लगी हैं, इन्हें हमारी पीढ़ी को तोडना है। चाहे एक दोस्त के रूप में हो, एक हमसफर के रूप में हो, एक पिता के रूप में हो या एक शिक्षक के रूप में।
मैं सच कहता हूं कि देश की आधी समस्याएं सुलझ जाएंगी। जातीय समानता आएगी। देश में एकता बढ़ेगी और मोहब्बत दुश्नाम नहीं माना जाएगा। मोहब्बत में पड़ना इबादत है और इबादत का सम्मान किया जाना चाहिए ना कि सूली पर चढ़ाना चाहिए।
नफरत को आसान मत बनाइए
मोहब्बत करना जुर्म नहीं है। अगर दो इंसान एक दूसरे को चाहते हैं, तो चाहने दीजिये उन्हें एक-दूसरे को। मोहब्बत से विश्व-युद्ध नहीं होते हैं, नफरत से होते हैं। मोहब्बत करना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और समाज को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
कसम खाइये कि अपनी बहनों को, अपने भाइयों को और अपनी आने वाली पीढ़ी को मर्यादा भी सिखाएंगे और मोहब्बत भी। मोहब्बत कोई मर्यादा नहीं लांघती। मोहब्बत मर्यादा की सबसे ऊंची पायदान है। जब आपमें संस्कार प्रवाह होता है, तभी आपमें किसी को खुद से ज़्यादा चाहने की हिम्मत होती है। इसलिए इश्क़ कीजिए। इश्क़ को इतना बदनाम मत कीजिए की नफरत करना ही आसान लगने लगे।