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केरल की स्वतंत्रता सेनानी अक्कम्मा चेरियन को अन्य राज्यों के लोगों ने क्यों भूला दिया?

फोटो साभार- गूगल

फोटो साभार- गूगल

त्रावणकोर की “रानी लक्ष्मीबाई” के नाम से अपनी पहचान बनाने वाली अक्कम्मा चेरियन भारत के पूर्ववर्ती त्रावणकोर यानी केरल से हैं। वह महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनके बारे में केरल को छोड़कर अन्य राज्यों के अधिकांश लोगों को अधिक जानकारी नहीं है।

अक्कम्मा चेरियन का आरम्भिक जीवन

14 फरवरी, 1909 को त्रावणकोर के नसरानी परिवार में अक्कम्मा का जन्म हुआ। वह थॉमसन चेरियन और अन्नाममा करिपापारंबिल की दूसरी बेटी थीं। कंजिरपल्ली स्थित सरकारी गर्ल्स हाई स्कूल और सेंट जोसेफ हाई स्कूल (चांगनाशेरी) से अपनी से स्कूली शिक्षा पूरी की।

अक्कम्मा ने सेंट टेरेसा कॉलेज से इतिहास से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 1931 में उन्होंने मैरी अंग्रेज़ी माध्यमिक विद्यालय से एक शिक्षक के रूप में अपना कार्य शुरू किया। आगे चलकर उसी स्कूल की प्रबंधिका भी बन गईं। छह साल तक वहां काम करने के दौरान उन्होंने एलटी की उपाधि भी हासिल की।

भारत की स्वतंत्रता के लिए किया संघर्ष

उन्होंने 1938 में त्रावणकोर स्टेट काँग्रेस की स्थापना के बाद अपने शिक्षण करियर को छोड़ते हुए जंग-ए-आज़ादी के लिए शंखनाद किया। त्रावणकोर की जनता को काबू में लाने के लिए वहां के दीवान, सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने स्टेट काँग्रेस पर बैन लगा दिया।

इसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया। केरल में ऐसा पहली बार हो रहा था। स्टेट काँग्रेस के कई लीडर और प्रेसिडेंट जेल में डाल दिए गए। एक के बाद एक जो भी प्रेसिडेंट बनता, उसे जेल में डाल दिया जाता।

11वें प्रेसिडेंट ने अक्कम्मा को अपने बाद प्रेसिडेंट नियुक्त किया। अक्कमा ने राज्य काँग्रेस पर लगे प्रतिबंध को रद्द कराने के लिए थंपनूर से महाराजा चिथिरा थिरुनल बलराम वर्मा के कौडियार महल तक, खादी की टोपी पहने और झंडे लेकर निकलीं।

उन्होंने एक विशाल जन रैली का नेतृत्व किया। आंदोलन करने वाली भीड़ ने दीवान सी. पी. रामस्वामी अय्यर को बर्खास्त करने की मांग की, जिनके खिलाफ राज्य काँग्रेस के नेताओं ने कई आरोप लगाए थे।

दूसरों को मारने से पहले मुझे गोली मारो: अक्कम्मा चेरियन

ब्रिटिश पुलिस प्रमुख ने अपने सिपाहियों से 20,000 से अधिक लोगों की इस रैली में आगजनी करने का आदेश दे दिया। अक्कम्मा चेरियन चीख पड़ीं, “मैं इस रैली की नेता हूं, दूसरों को मारने से पहले मुझे गोली मारो।”

उनके इन साहसिक शब्दों ने पुलिस अधिकारियों को अपना आदेश वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। समाचार सुनकर महात्मा गाँधी ने उन्हें ‘त्रावणकोर की झांसी की रानी’ के रूप में सम्मानित किया। 1939 में निषिद्ध आदेशों का उल्लंघन करने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दोषी ठहराया गया।

देश सेविका संघ की स्थापना

अक्कम्मा चेरियन ने ‘देशसेविका संघ’ की स्थापना की और काँग्रेसी गतिविधियों में शामिल होने लगीं। स्वतंत्रता के संघर्षों के दौरान अक्कम्मा को दो बार कारावास की सज़ा सुनाई गई। जेल में उन्हें कई बार अपमानित किया गया और धमकी दी गई। जेल अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों के कारण, कुछ कैदियों ने उनके खिलाफ दुर्व्यवहार और अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया।

1947 में, आजादी के बाद, कंकिरपल्ली से त्रावणकोर विधानसभा के लिये अक्कम्मा चेरियन निर्विरोध चुनी गईं। 1951 में उन्होंने एक स्वतंत्रता सेनानी और त्रावणकोर-कोचीन विधानसभा के सदस्य वी.वी वर्की मैननामप्लाकल से विवाह किया। उन्हें एक बेटा जॉर्ज वी. वर्की हुआ, जो कि आगे चलकर एक इंजीनियर बनें।

राजनीति छोड़ने का फैसला

1950 के दशक की शुरुआत में लोकसभा टिकट देने से इनकार करने के बाद काँग्रेस पार्टी से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और 1952 में वो मुवात्तुपुझा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय संसदीय चुनाव लड़ने में असफल रहीं। 1950 के दशक की शुरुआत में जब पार्टियों की विचारधारा बदलने लगी, तो उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला कर लिया।

उनके पति वीवी वर्की मैननामप्लाकल, चिराक्कवडू, 1952-54 से केरल विधानसभा में एक विधायक के रूप में कार्य करते रहे। 1967 में उन्होंने काँग्रेस के उम्मीदवार के रूप में कानजीरापल्ली से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार ने उन्हें पराजित कर दिया।

बाद में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के पेंशन सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य किया। 5 मई 1982 को अक्कम्मा चेरियन की मृत्यु हो गई।

उनकी याद में वेल्लयांबलम, तिरुवनंतपुरम में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई थी। केरल के लोगों के ज़हन में उनका योगदान आज भी एक संघर्षपूर्ण स्मरण के रूप में इंगित है, जो नव-युवाओं को देश के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा देता है।

नोट: इस लेख में प्रयोग किए गए तथ्यों के लिए श्रीबाला के मेनन द्वारा अक्कम्मा चेरियन के जीवन पर लिखी गई एक वृत्तचित्र किताब “जीविथम ओरु समरम” से मदद ली गई है।

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