Site icon Youth Ki Awaaz

महाकाल एक्सप्रेस तो चल पड़ी लेकिन क्या हैं रेलवे की प्राथमिकताएं?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

16 फरवरी को काशी-महाकाल एक्सप्रेस का उद्घाटन किया गया। यह ट्रेन वाराणसी से चली और शिवरात्रि के दिन इंदौर पहुंची। तीन ज्योतिर्लिंगों ओंकारेश्वर, महाकालेश्वर और काशी विश्वनाथ को जोड़ने वाली यह ऐतिहासिक ट्रेन सुलतानपुर, लखनऊ, कानपुर, झांसी, बीना, भोपाल और उज्जैन के रास्ते इंदौर पहुंची।

उदघाटन के दिन का हाल

महाकाल एक्सप्रेस में शिव भगवान की सीट

उद्घाटन के दिन कोच संख्या पांच की सीट संख्या 64 भगवान शिव के लिए रिज़र्व कर मंदिर जैसा प्रारूप दिया जा रहा था। तब यह कहा जा रहा था कि यह सीट हमेशा के लिए रिज़र्व रहेगी। बड़ी संख्या में लोगों की असहमति जताने के बाद यह पैंट्री में शिफ्ट कर दी गई। वैसे तो हम आए दिन देखते हैं कि लोग ट्रेनों में किस तरह ठुंसे रहते हैं, फिर ऐसा करने की क्या ज़रूरत पड़ी?

दूसरी बात यह कि अगर इस मामले को तूल ना दिया जाता, तो क्या होता? कहीं यह एक परंपरा तो नहीं बन जाती? जिनका भी दिमाग इसके पीछे था, उन्हें समझना चाहिए कि ऐसा कुछ करके वे क्या करने जा रहे हैं?

रेलवे की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?

रेलवे की प्राथमिकता होनी चाहिए कि आप यात्रियों को सकुशल वक्त पर स्वच्छ माहौल के साथ उनके गंतव्य तक पहुंचाएं। हमारे देश में धर्म मंत्रालय नहीं है और यह इस बात की तस्दीक करता है कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? 

रेलवे ऐसा कुछ करने के बजाय साफ शौचालय उपलब्ध कराता रहे तो यात्री कृतार्थ रहें। साथ ही साथ जो यात्री पूजा अर्चना की विधियां आसानी से सीख लेते हैं, वे यह भी सीख लें कि उनके शौचालय इस्तेमाल कर लेने के बाद वह दूसरों के इस्तेमाल लायक भी रह जाएं, ऐसा कैसे हो?

आज के समय में भारतीय रेलवे को यदि आप करीब से देखेंगे, तो अंदाज़ा लग जाएगा कि किस तरह से ट्रेनों में लोग लटककर यात्रा करते हैं। जनरल बॉगी में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है। किसी तरह से लोग नीचे, इधर-इधर या बाथरूम तक में बैठकर यात्रा करते हैं। ऐसे में आस्था के नाम पर यह कैसा मज़ाक है?


नोट: विष्णु Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

Exit mobile version