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दीक्षा, जो आज भी झेल रही हैं किसी से प्यार करने की सज़ा

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

19 साल की दीक्षा (बदला हुआ नाम), जिसकी 18 साल की छोटी सी उम्र में शादी हो गई थी। उसके हालात देखकर मुझे बहुत हैरानी होती है। हो भी क्यों नहीं, आखिर जो ज़िंदगी वह जी रही है उसके लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं हैं। दीक्षा की जब शादी नहीं हुई थी तब वह अपनी बुआ के लड़के से प्यार करती थी।

ये बात शायद उसके घर वालों को भी पता थी लेकिन हमारे गाँव मे प्यार को अपराध की नज़र से देखा जाता है। हमारे यहां हर एक प्यार करने वाले को सज़ा दी जाती है। सज़ा में लड़कियों की ज़बरदस्ती किसी पैसे वाले लड़के से या फिर किसी ऐसे युवक जिसके पास थोड़ी बहुत ज़मीन है उसके साथ विवाह कर दिया जाता है।

जब परिवार को बेटी के प्रेम की लगती है खबर

लोगों को लगता है वह लड़की बिगड़ गई है उसे मारा जाता है। लड़की के पिता से लेकर भाई तक, सम्बंधित लड़के को भी डराते, धमकाते और मारते हैं। लड़की को घर से बाहर निकालने की इजाज़त नहीं दी जाती। उस दौरान उसे लगभग 4 या 5 दिन बहुत टॉर्चर किया जाता है। नसीहत दी जाती है कि अब तुम एक दूसरे से बात नहीं कर सकते हो। 

इस तरह से 18 वर्षीय लड़की की शादी एक 27 साल के लड़के से ज़बर्दस्ती करवा दी जाती है। मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि लोगों को प्यार से इतनी नफरत क्यों है? समाज में संस्कार, जाति और धर्म के ठेकेदार क्यों हैं? क्या इन्हें कोई और काम नहीं हैं?

अगर इन्हें शादी ही करनी थी तो थोड़े दिन ठहर कर ही करते या फिर उस लड़के से ही कर देते जिससे वह प्यार करती थी। दीक्षा के मामले में तो वह उसके पिता की बहन का लड़का था। यहां तो जाति और धर्म भी मसला नहीं थे।

जबरन शादी के बाद लड़की के हालात ससुराल में

शादी के पहले दिन सुसराल में उससे वादा किया गया था कि तुम मेरी बेटी के समान हो लेकिन ऐसा कुछ वास्तव में नहीं दिखा। शादी के 4 दिन बाद उसका पति दिल्ली पैसे कमाने चला गया। घर पर वह केवल 2 या 4 दिन के लिए ही आता है। इस बीच लड़की केवल एक बार ही अपने मायके गई है। ससुराल में एक जेठानी, जेठ, सास,ननद और ससुर हैं लेकिन उस लड़की का कोई नहीं है। सब उसे बहुत टॉर्चर करते हैं।

एक पल के लिए भी किसी से फोन पर बात कर ले तो ससुराल के लोगों को बहुत परेशानी होती है। इन लोगों ने उस लड़की का फोन छीन लिया। वे कहते हैं कि वह किसी लड़के से बात करती है। क्या किसी लड़के से बात करना कोई गुनाह है?

कौन अपने एक्स, दोस्तों से बातचीत नहीं करता है? कौन अपने माँ-बाप से बात नहीं करता है? क्या किसी लड़की के पास फोन होना एक गुनाह है? यहां तक उसका पति भी उसके पक्ष की बात नहीं करता है। हर कोई उस लड़की को गाली देता है। कोई कहता है “तलाक दे दो  हमारे लड़के को क्या लड़की नहीं मिलेगी” वहीं कोई लड़की को काम ना करने के ताने मारता है।

गर्भवती होने के बाद और बदतर हुए हालात

अभी 1 महीने पहले उसे बेटा हुआ लेकिन उसकी प्रेग्नेंसी के दौरान हसबेंड कहता रहता है कि होने वाला बच्चा मेरा नहीं है। ज़ोर देकर पूछता रहता है कि यह किसका है? यह कैसा सवाल है? क्या इस लड़की के साथ उसके हसबेंड ने शादी के दिन शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किए होंगे? और अगर मान लो कि उसका बॉयफ्रेंड था, तो क्या एक बार साथ सोने से किसी के शरीर का कोई भाग कट जाता है? 

मुझे नहीं समझ आता है लोगों की यह कैसी धारणा हैं? संविधान में हर किसी को उसके अधिकार मिले हैं। हमारा संविधान हमें अपने पार्टनर चुनने की आज़ादी देता है। फिर भी हमारे समाज में ऐसी कुप्रथाएं क्यों हैं? दीक्षा का गर्भावस्था के दौरान उसके पेट पर लातें क्यों मारता है? क्यों उसे जान से मारने की धमकी देता है? क्यों उसे गालियां दी जाती हैं।

कोई उसे खाने को नहीं देता है। सभी काम करने के ताने मारते हैं। नातेदार, रिश्तेदार, आस पड़ोस, परिवार सभी जगह उसे गलत साबित करने की होड़ लगी होती है। क्या यह सब कभी बदलेगा? लोग कब समझेंगे कि औरत उनकी कोई जागीर या संपत्ति नहीं है, जिसपर जैसे मन चाहा वैसे हक जमाया।

जन्म ले चुके बच्चे के हालात

शादी के एक वर्ष बाद जिस बच्चे ने जन्म लिया वह इतना कमज़ोर है कि उसकी स्किन पॉलिथिन की तरह प्रतीत होती है। वह अलग निकलकर उठ जाती है। 30 दिन हो गए हैं उसका पति उसे एक झलक देखने तक नहीं आया। लड़की इतनी कमज़ोर है कि सही से चल भी नहीं पाती है। फिर भी किसी को उसकी परवाह नहीं है, ना तो उसके मायके वालों को और ना ही ससुराल वालों को। 

सब कहते हैं कि “बेटा पैदा हुआ है, तुम बेटा मुझे दे दो हम पाल लेंगे। तुम घर छोड़कर कहीं भाग जाओ।” यहां तक कि उसका पति भी इसी भाषा का इस्तेमाल करता है। मुझे समझ नहीं आता कि ये कैसे लोग हैं? यह लोग समझना क्यों नहीं चाहते?

यहां पर वह पंडित सब कुछ ठीक करने क्यों नहीं आते, जो शादी के समय आपके राहू केतू और कुंडलियों को मिलाकर एक आदर्श जोड़ी का निमार्ण करते हैं। यहां भगवान को दया क्यों नहीं आती? क्यों भगवान सब कुछ चुपचाप सह लेते हैं? क्यों लोग सही और गलत के बीच का फैसला करना ही नहीं चाहते हैं।

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