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“रेडियो, जो कभी परिवार का हिस्सा बना तो कभी मेरे हॉस्टल के दिनों का साथी”

21वी सदी को कंप्यूटर का युग कहा जाता है। जिससे पूरी दुनिया आधुनिक उपकरणों व टेक्नोलॉजी से जुड़ते जा रही है। लेकिन इसके अतीत की ओर नज़र दौड़ाएं तो रेडियो का ज़माना मिलता है। जिसके माध्यम से आम लोगों के बीच अलग-अलग प्रकार की खबरें पहुंचा करती थीं।

तब फिल्मी दुनिया, चौपाल, खेती-बाड़ी, फोन-इन कार्यक्रम जैसे विशेष कार्यक्रमों को लोग रेडियो पर सुना करते थे। जिसमें आवाज़ की तारतम्यता ही महत्व रखती थी।

रेडियो प्रसारण को सुनकर श्रोता बता देते थे कि फिलहाल रेडियो स्टेशन से बोल रहा आमुख व्यक्ति कौन हैं? लेकिन बदलते ज़माने ने टीवी, अखबार, पत्रिकाएं व डीटीएच संस्करणों ने विस्तार किया और अब फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर आदि ने लोगों के संपर्क के माध्यम को सुलभ बना दिया है।

हालांकि इस सुलभता का एक नकारात्मक प्रभाव भी है, वह है आम लोगों के बीच विभिन्न प्रकार की फर्ज़ी खबरों का वायरल होना।

प्रतीकात्मक फोटो

आवाज़ की मौलिकता व सजगता

रेडियो के आने से पूरी दुनिया में “आवाज़ की क्रांति” की लहर उठ खड़ी हुई। आम लोगों के बीच सुनने-सुनाने को एक नया जीवन मिला, जिसका माध्यम सिर्फ और सिर्फ आवाज़ ही हुआ करती थी। तब यूरोप समेत एशिया में भी रेडियो का दौर आया।

भारत में सन 1923 में पहली बार रेडियो ब्रॉडकास्ट की शुरुआत हुई। उस समय हमारा देश ब्रिटिशों के अधीन गुलाम ही था। फिर भी आम लोगों व कार्यालयों में रेडियो सुनने का दौर शुरू हुआ।

हमारा देश 15 अगस्त 1947 मध्य रात्रि को आज़ाद हुआ, तो रेडियो से भी इसका प्रसारण किया गया। जिसमें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अभिभाषण रेडियो से प्रसारित किया गया था।

रेडियो सुनते लोग

आज़ादी के एक वर्ष बाद बिहार के पटना में 1948 में आकाशवाणी पटना की स्थापना हुई और पूरे प्रदेश में आवाज़ का एक और बुलंद सुनहरा दौर शुरू हुआ। जिसको लोग बड़े ही चाव से सुनते थे। बाद में चलकर अलग-अलग स्थानों पर क्षेत्रीय रेडियो स्टेशन खुलने शुरू हुए, तो रेडियो के श्रोताओं की संख्या बढ़ती चली गई।

बीबीसी हिंदी रेडियो से जुड़ाव

बात सन 2007 की है, जब मैं पहली बार गाँव से शहर आया था। पापा ने मुझे पढ़ाई के लिए हॉस्टल में भर्ती कर दिया, ताकि मैं अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकूं।  वह मेरा बचपना था। तब एक पुस्तक विक्रेता से हमारी पहचान बन गई थी, जो उन दिनों सुबह 6:30 बजे बीबीसी हिंदी रेडियो कार्यक्रम को सुना करते थे।

उन्हीं के बताने पर मैंने बीबीसी हिंदी रेडियो सुनना शुरू किया, जो अब तक जारी रहा। बीबीसी की सबसे खास बात यह थी कि वे खबरों का विश्लेषण, शब्दों का उच्चारण और हिंदी भाषा की शुद्धता बनाए रखते थे। बीबीसी ने रेडियो से एक लंबे अरसे से जुड़े रहने का सुनहरा मौका दिया।

जब भी मैं शहर से अपने गाँव जाता हूं, तो पापा का पुराना रेडियो लेकर बीबीसी हिंदी के चैनल को ट्यून करने लगता हूं। तब मेरे घर के सभी सदस्य शांत होकर 30 मिनट के कार्यक्रम को सुना करते थे।

बीबीसी का बंद होना एक स्वर्णिम युग का अंत है

पहले जब हम हिंदी बोलते थे, तो हमारे शब्दों में बहुत ही अशुद्धि होती थी। लेकिन बीबीसी की सुबह ‘नमस्कार भारत’ और शाम ‘दिनभर’ के कार्यक्रम ने मुझे हिंदी शब्दों का उच्चारण करना सिखाया।

31 जनवरी 2020 से बीबीसी ने अपने सभी शार्ट वेव रेडियो प्रसारण बंद कर दिये हैं। जिससे देश- दुनिया के करोड़ों श्रोताओं को बीबीसी की कमी महसूस हो रही है। लेकिन मेरे लिए तो बीबीसी का बंद होना एक युग का अंत है। बीबीसी रेडियो अब तक अपने निष्पक्ष रेडियो प्रसारण के लिए ही जाना जाता था।

मेरे प्रिय दोस्त सुरेश गुप्ता पर गर्व है

रेडियो प्रस्तुतकर्ता सुरेश गुप्ता

हमारा पड़ोसी देश नेपाल है, जहां अलग-अलग प्रकार के एफएम रेडियो चैनल से कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। जिसके माध्यम से विभिन्न कार्यक्रम मनोरंजन, खेल, वार्तालाप जैसे कार्यक्रम का प्रसारण होता है। जिसमें हमारा एक मित्र आरजे सुरेश गुप्ता है, जो इन दिनों कंकाली एफएम (91.8MHz) पर अपनी आवाज़ का जादू श्रोताओं के बीच फैला रहे हैं। 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस था और उस अवसर पर अपने मित्र सुरेश गुप्ता पर मुझे गर्व की अनुभूति हुई।

 

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