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“वित्त मंत्री जी, पहले शिक्षा व्यवस्था ठीक कर लेतीं फिर नए संस्थानों की घोषणा करतीं”

निर्मला सीतारमण

निर्मला सीतारमण

उम्म्मीदों और आशंकाओं के बीच झूलता हुआ यूनियन बजट 2.0 आखिरकार हमारी पूर्णकालिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया। वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में कहती नज़र आईं कि यह बजट तीन महत्वपूर्णथीमपर आधारित है

पहला, ‘Aspirational India, दूसरा, ‘Economic Development’ और तीसरा ‘Caring Society. फिलहाल हमारा देश सबसे खराब अर्थव्यवस्था वाले दौर से गुज़र रहा है। यूं तो बजट में आम आदमी से लेकर कॉरपोरेट, आर्थिक, कृषि, बैंकिग और शिक्षा आदि के संदर्भ में बहुत घोषणाएं की गई हैं।

खैर, पिछले बजट में भी काफी घोषणाएं की गई थीं लेकिन प्रश्न यह है कि हम बजट पर कितना खरे उतरे? यूं तो विस्तृत समीक्षा किए जाने में समय लगेगा लेकिन हम आपको बताते हैं निर्मला सीतारमण का यह बजट शिक्षा के लिए कैसा है।

शिक्षा संबंधित घोषणाएं

निर्मला सीतारमण। फोटो साभार- सोशल मीडिया

उम्मीदों के बजट के ऐलान से पहले ही लुढ़का सेंसेक्स

गौरतलब है कि उम्मीदों के बजट के ऐलान से पहले ही सेंसेक्स 250 अंकों की गिरावट पर खुला। जबकि शाम ढलते-ढलते 978.96 अंकों की गिरावट पर चला गया। इसे सबसे बड़ी गिरावट के तौर पर दर्ज़ किया गया है लेकिन यह बजट शिक्षा के लिए कितना कारागार होगा, यह तो समय और बजट विशेषज्ञ ही बता सकते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

जहां अशिक्षा दर 35 फीसदी हो (2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 35% अशिक्षित आबादी भारत में रहती है) और बेरोज़गारी 45 वर्षों में शिखर पर हो, वहां इन घोषणाओं का कितना महत्व है, यह विचारणीय है।

शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी बढ़त अर्थव्यवस्था की बढ़त पर ही निर्भर करती है, क्योंकि रोज़गार ही नहीं होंगे तो शिक्षा में विनियोग बेकार होगा। वित्त मंत्री कितना भी कह लें कि FDI में हमारा योगदान बढ़ा है मगर RBI की रिपोर्ट के मुताबिक कुल GDP में हमारा योगदान 8% से घटकर 5% पर गया है।

वहीं, हालात यह है कि हमारी GDP ग्रोथ लगातार तिमाही से गिर रही है। जुलाई बजट में सरकार ने 2.9 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था को 2024 तक लगभग 5 ट्रिलियन का लक्ष्य रखा है। इसे पाने के लिए हमें 9% ग्रोथ चाहिए। जबकि अभी हम 5% से भी नीचे हैं।

पिछले बजट की घोषणाओं का क्या हुआ?

जब आप इस शिक्षा बजट की समीक्षा करने बैठेंगे, तो पाएंगे कि पिछले बजट में घोषित हुए आधे संस्थानों की नींव तक अभी डाली नहीं गई है। जैसे- 2017 में 62 नए जवाहर नवोदय विद्यालयों की स्थापना की घोषणा की गई थी, जिनमें से अभी तक 4 भी नहीं बन पाए हैंमुंबई में भी नैशनल सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन गेमिंग एंड स्पेशल इफेक्ट्स की अब तक स्थापना नहीं हो सकी है।

वहीं, बजट और बजट की घोषणाओं को कई जगहों पर दोहराया भी गया है। जैसे- केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही ग्रेटर नोएडा में पुलिस यूनिवर्सिटी की घोषणा कर चुका है। तलाशने बैठेंगे तो ऐसे बहुत उदाहरण निकलकर जाएंगे।

लेकिन क्या शिक्षा के बजट में इस पर बात नहीं की जानी चाहिए थी कि जो संस्थान पहले से चल रहे हैं, उनके सुधार के लिए क्या नीति होनी चाहिए?

नए संस्थानों और नई नीतियों की घोषणा कर देना सरल है लेकिन पुरानी नीतियों में सुधार लाना भी ज़रूरी हैबड़ी-बड़ी योजनाएं, जैसे- मनरेगा, आयुष्मान भारत योजना  में भी फंड नहीं बढ़ाया गया है। शिक्षा की नीति को रोज़गार और स्वास्थ्य दोनों ही प्रभावित करते हैं।

बजट पर क्या कहा दिग्गजों ने?

पी चिदंबरम। फोटो साभार- सोशल मीडिया

पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिये कहा,

केंद्र की सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद छोड़ चुकी है। मैंने अभी के वर्षों का सबसे लंबा बजट भाषण देखा, जो 160 मिनट तक चला लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि बजट 2020-21 क्या कहने का इरादा था।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,

यह भाषण इतना लंबा था कि समझने में इसे समझने में दिक्कत हुई।

यूं तो बजट पर त्वरित प्रक्रिया दी जा सकती है लेकिन जब राजकोषीय घाटा बढ़ रहा हो, बचत की दर पिछले 15 सालों में सबसे कम हो, बेरोज़गारी 42 साल का रिकॉर्ड तोड़ रही हो और नोटबंदी, GST जैसे कदम छोटे मंझोले इकाइयों की कमर तोड़ चुकी हो, तो उम्मीद ही की जा सकती है कि आगे आने वाले महीनों में बजट कुछ सुधार की स्थिति लाएगा।

नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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