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“अहिंसा कोई पाठ नहीं जिसे पढ़ाया जा सके”

गाँधी

गाँधी

हे राम!!

30 जनवरी 1948, एक ऐसी तारीख जिसने दुनिया को गम में झकझोर दिया। इस दिन आधुनिक दुनिया के अहिंसा के सबसे बड़े संत, महात्मा गाँधी की हत्या हो गई लेकिन इस दिन उनकी केवल दैहिक हत्या ही नहीं हुई थी, बल्कि उनके सिद्धान्तों की भी हत्या हो गई। एक अहिंसा के पुजारी को भी हिंसा की बलि चढ़ाई गई।

महात्मा गाँधी जीवन भर अहिंसा की वकालत करते रहे लेकिन जिस बात से सम्भवतः उन्हें सबसे ज़्यादा ठेस पहुंची थी, वह उनके जीवन काल में ही भारत विभाजन के नाम पर लाखों लोगों की नृशंस हत्या रही।

क्या गाँधी जी का अहिंसा ईसा मसीह से प्रेरित था?

महात्मा गाँधी।

सम्भवतः गाँधी जी से भी वही गलती हुई, जो कभी ईसा मसीह से हुई थी। गाँधी जी की अहिंसा सम्भवतः ईसा मसीह से प्रभावित रही होगी, तभी तो ईसा मसीह का प्रसिद्ध वाक्य, “एक गाल पर यदि कोई चांटा मारे, तो दूसरा गाल आगे कर दें”, गाँधी जी के नाम के साथ भी जुड़ा।

हालांकि ऐसे कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं हैं कि ये वाक्य गाँधी जी ने कभी कहे हों, फिर भी बॉलीवुड से लेकर अन्य राजनीतिक, सामाजिक रैलियों, लेखों और किताबो में इसकी स्वीकारता यकीनन, गाँधी जी की अहिंसा को ईसा मसीह से प्रेरित बताती है।

मैरी के पुत्र, ईसा मसीह, जिन्हें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ईश्वर का पुत्र भी बतलाया जाता है, वे भी अहिंसा के मूल रूप को सम्भवतः समझ नहीं सके।

जिस तरह गाँधी जी की अहिंसा की शिक्षा वहां विफल हो गई, जब उनके जीते जी ही भारत की विभाजन की पटकथा में लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी। कुछ लोगों के सत्ता संघर्ष के सनक ने करोड़ों लोगों का घर परिवार बर्बाद कर दिया, खुद उनकी हत्या भी हिंसा से ही हुई। वहीं, अहिंसा के अग्रणी पंक्ति के संत ईसा मसीह को भी सूली पर लटका दिया गया था।

यह समझना होगा कि अहिंसा शब्द का अर्थ केवल हिंसा ना करने से कहीं ज़्यादा विस्तृत है। जैन परम्परा के अनुसार तो यदि मन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा का केवल विचार भी आता है, तो भी आप अहिंसक नहीं हो सकते।

क्या है पशु प्रवृति

जामिया में सिटिज़नशिप एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अहिंसा को समझने के लिए मूल में जाना होगा और यह समझना होगा कि डार्विन के अनुसार यदि मनुष्य 6 लाख सालों से पृथ्वी पर हैं, तो मनुष्य के सभ्य होने का क्रम अभी महज़ 12 हज़ार वर्षों से ही है। यह वही समय है, जबसे पशु मांस पर आधारित मनुष्यों ने खेती का विकास करना शुरू किया।

ऐतिहासिक खोजों के अनुसार, इसी 12 हज़ार वर्षों में कृष्ण से लेकर मूसा, ईसा मसीह, मोहम्मद, आइंस्टीन, फ्रॉयड, विवेकानंद या महात्मा गाँधी आए। यानी मनुष्यता का अभी भी सतत विकास हो रहा है और हम निरन्तर पशु से इंसान हो सकने की प्रक्रिया में हैं।

लेकिन गौर करने की बात यह है कि अनुमानतः 6 लाख वर्षों के मनुष्यों के इतिहास में मनुष्य हो सकने का काल क्रम अभी केवल अनुमानतः 5 लाख 88 हज़ार वर्ष ही है। यानी मनुष्यों ने जंगल में ज़्यादातर समय व्यतीत किया हुआ है और इसी कारण जंगली सोच और पशु प्रवृति अभी भी बहुसंख्यक मनुष्यों को अपना गुलाम बनाए हुए है।

गाँधी और ईसा मसीह दोनों ही मनुष्यों के अंदर की प्रवृति को पहचान नहीं पाए थे

ईसा मसीह।

जिस तरह पशु, क्षेत्र, सेक्स, आधिपत्य के लिए जंगल के अन्य जानवरों के साथ संघर्ष करते हैं, ठीक यही प्रवृति मनुष्यों में भी पाई जाती है। मनुष्य अभी भी क्षेत्रवाद, राजनीतिक, सामाजिक आधिपत्य और शारीरिक रूप से कमज़ोर विपरीत लिंग के साथ ज़बरदस्ती सेक्स के लिए लालायित रहता है। दुनिया के तमाम अपराध भी इन्हीं पशु प्रवृति की देन है।

ईसा मसीह या महात्मा गाँधी से जो बड़ी गलती हुई, वह भी यही थी कि वे मनुष्यों में अंदर छिपे उस पाशविक प्रवृति को नज़रअंदाज़ कर गए, जो कि प्राकृतिक रूप से मनुष्यों में उनके जंगली पूर्वजो से संस्कार स्वरूप मिली हुई है, जिन्हें केवल तभी दूर किया जा सकता है, जब उन्हें इस प्रवृति का एहसास हो।

आधुनिक मनुष्यों को भी समझना होगा कि बिना इन प्रवृतियों को समझे, अहिंसा की बात करना ना सिर्फ बेईमानी होगी, बल्कि ये उपाय भी ठीक वैसा ही होगा, जैसे कि बुखार आने पर गर्म शरीर को ठंडा करने के लिए हम ठंडे जल से नहाने लगें।

इससे बुखार तो कम नहीं होगा मगर हां शरीर एक-दो घड़ी के लिए ठंडा ज़रूर हो जाए। जबकि बुखार का इलाज तो तब सम्भव है लेकिन अंदर के रोग का इलाज कैसे हो? ठीक वैसे ही केवल अहिंसा की बात कहने मात्र से कोई अहिंसक नहीं हो जाता, जब तक कि मनुष्यों में छिपी पशु प्रवृति का उपचार ना किया जा सके, यह संभव नहीं है।

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