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दिल्ली में रह रहे कठपुतली कलाकारों को आखिर क्यों बेघर होना पड़ा?

फोटो साभार- विष्णु

फोटो साभार- विष्णु

कठपुतली कलाकारों का निवास स्थान यानी कठपुतली कॉलोनी, जहां लोक कलाकार या स्ट्रीट परफॉर्मर रहा करते हैं। ये सभी कलाकार देश के करीब 14 राज्यों से आते हैं। इन कलाकारों में कठपुतली कलाकार, लोक गायक, सपेरे और जादूगर शामिल हैं।

खास बात यह है कि यहां मौजूद लोग विभिन्न समुदायों से ताल्लुक रखते हैं, जिन्हें हम इस तरह से सूचीबद्ध कर सकते हैं। जैसे- भट्ट समाज, भगड़ी समाज, पूर्वांचल समाज, वाल्मिकी समाज, बिहारी समाज, गुजराती समाज, कुष्ट समाज, मराठा समाज, जाटव समाज एवं आदिवासी समाज।

कठपुतली कॉलोनी के लोगों को किया गया विस्थापित

फोटो साभार- सोशल मीडिया

दिल्ली के शादीपुर इलाके में स्थित कठपुतली कॉलोनी एक ऐसी जगह थी, जहां लोग 1950 से रह रहे थे। यह 52,000 वर्ग मीटर में फैली हुई थी, जहां से 2017 में लोगों के मकानों को गिराकर उन्हें आनंद पर्वत में डीडीए द्वारा बनाए गए शिविर में भेज दिया गया। आनंद पर्वत पर 2800 मकान बने हुए हैं, जहां  8000 के करीब लोग रहते हैं। बाकि परिवारों को नरेला में आवास दिया गया है।

यह सब दिल्ली विकास प्राधिकरण की 2009 में आई एक योजना के तहत हुआ है, जिसमें रहेजा डेवलपर समूह, जो दिल्ली विकास प्राधिकरण का पार्टनर भी है। इसे इन सीटू पुनर्विकास प्रोजेक्ट कहा जा रहा है, जिसका मतलब लोगों को उसी जगह पर निवास स्थान मुहैया कराया जाना है, जहां वे रहते थे।

यह दिल्ली का पहला इन सीटू यानी मूल स्थान पर पुनर्विकास की परियोजना है। साथ ही यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भी पहली परियोजना है। ज़मीन का 60 प्रतिशत हिस्सा पुनर्विकास में इस्तेमाल होगा। जबकि बाकि बचे हिस्से को रहेजा डेवलपर्स अपने लिए से इस्तेमाल करेंगे।

इस योजना के तहत साफ-सुथरा आवास, मज़बूत आधारिक संरचना, व्यवसायिक सहयोग, सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ साथ दिल्ली को झुग्गी मुक्त करने का उद्देश्य है।

योजना का घटनाक्रम

क्या कहते हैं शादीपुर स्थित कठपुतली कॉलोनी के विस्थापित लोग?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

राहुल, जिनकी उम्र 28 साल है, वह शादीपुर से विस्थापित होकर आनंद पर्वत की कठपुतली कॉलोनी में रह रहे हैं। वह कहते हैं कि वहां पर अपनी पिछली तीन पीढ़ियों से रह रहे थे।

कुछ लोगों का सरकार के साथ एग्रीमेंट हुआ था कि उन्हें कठपुतली कॉलोनी से ट्रांज़िट कैंप जाने के बाद दूसरा घर दिया जाएगा लेकिन राहुल बताते हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी और उन्होंने सरकार के साथ कोई एग्रीमेंट नहीं किया था।

वह बताते हैं, “मेरी वहां सब्ज़ी की दुकान थी मगर अब यहां ठेले पर सब्ज़ी बेचता हूं। बच्चे हमारे शादीपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे और उन्हें आने-जाने की दिक्कत थी, तो उन्हें ससुराल में छोड़ दिया है। इस बार के चुनाव में वोट भी नहीं दिया है।”

राहुल आगे बताते हैं कि हमारी पिछली आईडी बंद हो गई है और हमने नई नहीं बनवाई है। अगर नई आईडी बनवा ली, तो हम किस आधार पर दावा करेंगे? हमें अपने अधिकार का यह डर बना हुआ है। हम खाता भी नहीं खुलवा सकते हैं। यहां कैम्प लगे थे, जिसके ज़रिये कुछ लोगों ने बनवा लिए मगर हमने नहीं बनवाए। वहां थे तो हमारे परिवार के पास दो घर थे। यहां एक में ही रहना पड़ रहा है। यहां साफ पानी नहीं मिलती है, पानी में क्लोरीन ज़्यादा होता है।

साहिल कठपुतली कलाकार हैं

फोटो साभार- विष्णु

साहिल जो कि कठपुतली कलाकार हैं, एक बुज़ुर्ग की ओर इशारा करते हुए बताने लगे कि यहां आने के बाद वो दीवार से तख्त लगाकर बाहर ही रहते हैं। वहां दो मकान थे, यहां एक कमरा है, बेटा-बहू रहते हैं उसमें। विस्थापित हो चुके इन लोगों का ज़िक्र करते हुए वह आगे कहते हैं कि यहां पर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल जाने पर बहुत परेशानी होती है, क्योंकि रास्ता अच्छा नहीं है, सड़क खराब है और ढलान भी है।

साहिल और राहुल की तरह यहां 2800 परिवार रह रहे हैं, जो शादीपुर की कठपुतली कॉलोनी में रह रहे थे। लोगों के बीच बेचैनी है और वे समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार दिलासा के सिवाय मकान देना कब शुरू करेगी।

ट्रांज़िट कैम्प में रह रहे कठपुतली कॉलोनी के निवासियों होने वाली असुविधाएं

लोगों को मकान दिसम्बर 2019 तक दिए जाने की बात कही गई थी, जिसे अब 2020 मार्च तक दिए जाने की बात कही जा रही है। हालांकि निर्माण कार्य अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। डीडीए का रिस्पॉन्स जानने के लिए हमने अधिकारियों से बात करने की कोशिश की मगर कोई भी बात करने को राज़ी नहीं हुआ।


नोट: विष्णु Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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