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“प्रशांत किशोर की ‘बात बिहार की’ और असल बिहार में बहुत फर्क है”

दिल्ली के चुनावों में भौकाल मचाने के बाद आई-पैक की टीम और उनके मुखिया प्रशांत किशोर अभी बिहार में भौकाल काटने की टोटल तैयारी में हैं। 

जदयू से निकाले जाने के बाद प्रशांत मंगलवार को पटना में आई-पैक के दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस करते नज़र आये। वहां उन्होंने कुछ ऐसी बातें भी कह दी जिसको लेकर मीडिया में पूरा दिन बवाल हुआ और उनके पुराने साथियों ने भी नाक-भौं सिकोड़े।

फिलहाल मोटा-मोटी बात यह है कि प्रशांत 20 फरवरी से ‘बात बिहार की’ नाम से एक कैंपेन लॉन्च करने वाले हैं, जिसमें वे 100 दिनों तक बिहार के सभी पंचायतों में घूम कर एनजीओ के तर्ज पर कार्यकर्ताओं से जुड़ेंगे।

प्रशांत किशोर ने बातें तो बहुत सारी की, लेकिन मीडिया और जदयू के नेताओं ने जो बात पकड़ी, वह थी गाँधी और गोडसे की विचारधारा वाली और नितीश कुमार को ‘पिछलग्गू’ कहने वाली बात।

प्रशांत किशोर कैंपेन “बात बिहार की” लॉन्च करते हुए

क्या करने वाले हैं प्रशांत किशोर 

पटना में लंबे प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि मैं बिहार में नई पार्टी बनाने नहीं आया हूं, बल्कि पूरे बिहार में एक कैंपेन चलाऊंगा।

अपने कैपेन के बारे में बताते हुए वे आगे कहते हैं,

 ‘बात बिहार की’ नाम से शुरू होने वाले इस कैंपेन के ज़रिए अगले 100 दिनों तक मैं बिहार भ्रमण करूंगा। बिहार एक सशक्त नेता चाहता है, जो बिहार की बात कहने के लिए किसी का पिछलग्गू न बने।

 उन्होंने कहा कि 20 फरवरी से इस अभियान की शुरूआत होगी।

अब सवाल उठता है कि क्या वाकई प्रशांत किशोर का यह मंत्र काम करेगा?

सबसे बड़ी बात और सौ बात कि एक बात, बिहार के चुनाव में लोग वोट काम देख कर नहीं बल्कि जातियां देखकर डालते हैं। प्रशांत अगर ये समझ रहे हों कि बिहार दिल्ली है और अरविन्द केजरीवाल की तर्ज पर विकास का मॉडल दिखाकर बिहार की जनता को लुभा लेंगे, तो फिर तो भईया ये मुश्किल लग रहा है।

शायद अर्बन क्षेत्रों में लोगों को समझाने में कामयाब हो भी जाएं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां जात-पात को सबसे ऊपर रखा जाता है, वहां काम आसान नहीं होगा।

बिहार का चुनाव इतने बड़े पैमाने पर होता है कि अकेले एक नई पार्टी बनाकर आप चुनाव में कभी भी फतह हासिल नहीं कर सकते। इसके लिए गठबंधन की बेहद ज़रूरत होगी।

क्या सोचता है विपक्ष

अगर विपक्ष के पॉइंट ऑफ व्यू से देखें तो राजद कहीं भी ये नहीं चाहेगी कि उनके सामने एक ऐसा चेहरा खड़ा हो, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अच्छी-खासी बनी हुई है। ऐसे में राजद की पुरज़ोर कोशिश होनी चाहिए कि प्रशांत आरजेडी ज्वॉइन कर लें और एक बार फिर पटना कि गद्दी वापस दिलाएं। 

लेकिन प्रॉब्लम तब भी है, क्योंकि तेजस्वी यादव को अपने से ज़्यादा पॉपुलर चेहरा अपने पार्टी में पसंद नहीं है। शायद यहीं कारण रहा था कि लोकसभा के चुनावों में कन्हैया कुमार को राजद ने किनारे किया था।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

फिर बात आती है कन्हैया कुमार के साथ टीम बनाने कि तो बात ऐसी है कि कन्हैया भले भीड़ जुटा लेते हैं लेकिन लोगों को उनकी बातें सुनने मात्र में ही मज़ा आता है। लेकिन वोट डालने के समय जनता शायद ही कन्हैया की लंबे-चौड़े जोशीले भाषणों को याद रखती है।

भाजपा का राष्ट्रवाद का एजेंडा भी कन्हैया को हमेशा विवादों के घेरे में ही रखना पसंद करता है। ऐसे में कन्हैया के साथ प्रशांत किशोर का टीम बनाना कुछ साफ नज़र नहीं आ रहा है।

तो क्या ‘आम आदमी पार्टी’ की एंट्री होगी?

संभव है, हो सकता है कि  प्रशांत किशोर के नेतृत्व में या प्रशांत की नई बनाई पार्टी के साथ गठबंधन कर के ‘आप’ बिहार की राजनीति में ग्रैंड एंट्री मारे लेकिन तब भी बिहार जैसे बड़े और विविधता से भरे स्टेट में अपना जनाधार खड़ा करने में समय की ज़रूरत होगी।

इतने कम समय में सब कुछ मुमकिन नहीं है लेकिन फिर अरविन्द केजरीवाल के ‘वन मैन आर्मी’ वाली इमेज पर भी असर पड़ सकता है। तो प्रशांत किशोर के नेतृत्व में बिहार का चुनाव लड़ना अरविन्द केजरीवाल के त्यागशीलता पर निर्भर करता है।

अगर प्रशांत किशोर आगे बनने वाली सरकार का हिस्सा ना होकर विपक्ष का एक मज़बूत चेहरा भी बन जाते हैं, तो ये उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। वैसे बिहार का चुनाव बहुत मजे़दार होने वाला है। जो बाज़ी मार गया वो हीरो, बाकी ज़ीरो (काँग्रेस मत समझ लीजियेगा) को कौन याद रखता है।

 

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