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“क्या भारतीयों के हृदय से अहिंसा खत्म होती जा रही है?”

महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी

अहिंसा, यह वो शब्द है जिसने भारत को सबसे अधिक पहचान दी है। यह अहिंसा ही है जिसने आज के शक्तिशाली भारत की बुनियाद शैशवावस्था में रखी थी। यद्यपि पिछले कुछ समय से विभिन्न धरना प्रदर्शनों के ज़रिये विश्वविद्यालय प्रांगणों में कुछ अराजक तत्त्वों ने हमारे भारत के इस मूल तत्व के साथ खिलवाड़ किया है।

लेकिन इन मुट्ठी भर लोगों की वजह से सम्पूर्ण भारत को ही हिंसक नहीं कहा जा सकता है। भारत का सम्पूर्ण इतिहास ही अहिंसा और प्रेम की कहानी रहा है।

सम्राट अशोक की अहिंसा

सम्राट अशोक। फोटो साभार- सोशल मीडिया

प्राचीन काल के सम्राट अशोक से शुरुआत करें तो उन्होंने उतनी प्रसिद्धि कलिंग विजय से नहीं पाई, जितनी प्रसिद्धि कलिंग विजय के बाद उन्होंने लोगों को हिंसा के माध्यम से मरते देखकर बाद में कभी युद्ध ना करने का निश्चय करने से पाई।

इस निश्चय के बाद सम्राट अशोक ने हिंसा का त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए सर्वहित के अनेक कार्य किए, फिर बाद में अकबर अन्य मुगल शासकों की तुलना में अधिक प्रसिद्ध हुआ। उसका कारण भी उसकी शांति प्रिय नीतियां ही रही हैं।

अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ों की चूलें हिलाने वाले बापू

महात्मा गाँधी।

स्वतन्त्रता आंदोलन के समय हमारे प्रिय बापू को कौन भूल सकता है। उन्होंने तो उसी अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ों के निरंकुश शासन की जड़ को हिला दिया। आज पूरे विश्व में हमारे बापू इसी सत्य और अहिंसा के अमोघ अस्त्र के नाते जाने जाते हैं।

यद्यपि पिछले कुछ महीनों से कहीं ना कहीं से हिंसात्मक खबरें आती रही हैं लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं निकाला जाना चाहिए कि भारतीयों के हृदय से अहिंसा खत्म होती जा रही है।

वास्तव में अहिंसा भारतीयों में उनके आरम्भ काल से ही रोपित चीज़ रही है। समस्याओं को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना हमारा इतिहास रहा है। आज भी भारतीय तृणमूल स्तर से लेकर उच्च स्तर तक आपसी विवादों को बिना हिंसा के हल करने में अधिक विश्वास करते हैं।

हम भारतीय यह मानते हैं कि किसी समस्या का अंतिम हल शांतिपूर्वक ढंग से ही हो सकता है। हमारा विश्वास है कि हिंसात्मक विवाद अगर हो जाता है, तो भी समस्या के पूर्ण हल के लिए हमें समझौते की मेज़ पर बैठना ही होगा। फिर हम क्यों ना हिंसात्मक विवाद के पहले ही समझौते की मेज़ पर बैठकर विवाद को हल कर लें।

भारतीय समाज में अहिंसा की प्रासंगिकता

फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज भी एक भारतीय गर्मी के दिनों में चिड़ियों, जानवरों आदि निरीह प्राणियों के प्यास को बुझाने के लिए अपने छतों और दरवाज़ों में किसी पात्र में पानी रख देते हैं। जिस जगह इस तरह का प्रेम भाव जानवरों तक से हो, वहां आखिर हिंसा कैसे पनप सकती है?

अगर किसी वजह से हिंसा पनपती भी है, तो उस दौरान भी एक हिंसा करने वाले भारतीय के दिल के किसी कोने में अहिंसा का विचार ज़रूर आता रहता है और उसकी हिंसात्मक क्रिया अल्पकाल तक ही सीमित हो जाती है।

जिन भारतीयों में जीव जंतुओं तक की हिंसा में विश्वास नहीं है, जो भारतीय चलचित्र में किसी हिंसात्मक दृश्य को देखकर भावुक हो जाते हैं, भला उस भारत का मूल चरित्र अहिंसा को कैसे छोड़ सकता है।

जो हिंसात्मक घटनाएं पिछले कुछ समय हो रही हैं, वे निश्चित ही भटके हुए लोगों के मस्तिष्क की उपज हैं। वे निश्चित ही अंत में हिंसा को छोड़कर अहिंसा की तरफ लौटेंगे। भारत जिसकी आधारशिला अहिंसा रही हो, आखिर कैसे अहिंसा को छोड़ सकता है।

मेरे प्यारे भारत का प्राण ही अहिंसा है। इसके बिना मेरा भारत नहीं रह सकता है। अहिंसा ही भारत का मूल और इसकी पहचान है। जब तक भारत रहेगा, तब तक इस भारत की अहिंसा रहेगी।

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