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पर्यटन क्यों बनता जा रहा है पर्यावरण के विनाश का कारण?

ये गाँव खेड़ा है साहिब, यहां मोटर गाड़ी नहीं मिलेगी कि बैठे और गर्ररर्र से चल दिए, यहां तो बसंती का तांगा ही चलता है।

कितना ही अच्छा होता कि अगर तांगा ही चलता रहता, मोटर गाड़ी नहीं। इसमें एक बेज़ुबान पर ज़ुल्म-ओ-सितम तो होते हैं, वक्त भी ज़ाया होता है सैर सपाटे में लेकिन हम खुद को प्रगतिवादी होने के ढोंग से बचा लेते हैं।

राहुल सांकृत्यायन ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ में लिखते हैं, “व्यक्ति के लिए घुमक्क्ड़ी से बढ़कर कोई नगद धर्म नहीं है।” कोलंबस और वास्को डी गामा दो घुमक्कड़ ही थे, जिनकी वजह से पूरब और पश्चिम आज इतने करीब लगते हैं।

शायद सब्र करना इंसान ने देर से सीखा है, पिछली एक या डेढ़ सदी में आवागमन के क्षेत्र में बेहिसाब तरक्की ने मुल्कों के दरम्यान तमाम फासले मिटा दिए हैं। हवाई जहाज, जलयान, मोटर कार, मोटरसाइकिल, ट्रक, बस, जीप, रेलगाड़ी आदि वाहनों ने हमको अपनी-अपनी मंज़िलों तक ज़रूर पहुंचाया है लेकिन पीछे आने वाले लोगों के मुंह पर कार्बन की कालिख भी पोतते चले गएं।

निर्माण क्षेत्र से भी ज़्यादा पर्यटन से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन

कार्बन ब्रीफ की मानें तो 2009 से 2013 के बीच दुनियाभर के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 8% उत्सर्जन पर्यटन की वजह से हुआ है, जो कि निर्माण क्षेत्र से भी अधिक है। यही नहीं खाद्य पदार्थ, रहन-सहन व अन्य वस्तुओं की वजह से भी कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन हाउस उत्सर्जन की मात्रा बढ़ी है। हालांकि इसमें विमानन उद्योग शामिल नहीं हैं।

बहरहाल, अमेरीका के निवासी सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन में योगदान देते हैं, इसके बाद चीन, जर्मनी व भारत कतार में खड़े हैं। शोध इन्हें दो भागों में रेखांकित करते हैं- रेजिडेंट एमिशन एवं डेस्टिनेशन एमिशन। ऐसा देखा गया है कि अमेरीकी रेजिडेंट एमिशन में आगे है, तो मालदीव डेस्टिनेशन एमिशन में।

इसे आसान शब्दों में यूं समझा जा सकता है-

इन सब तमाशों में अमीरी-गरीबी का नाच काफी अहमियत रखता है। जिन मुल्कों के बाशिंदों की जेबें गर्म रहती हैं, वे ही घूम फिर कर धरती का तापमान भी बढ़ाते हैं। गरीबी तो अपने ज़ख्मों को पांव के नीचे छुपाकर हौले-हौले चलती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि 2025 तक पर्यटन के क्षेत्र से होने वाला कार्बन उत्सर्जन तकरीबन 5-6.5 बिलियन टन होगा, जो कि अभी के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 12% होगा।

हवाई यात्रा से बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन

ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और इंडोनेशिया द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के लिए फ्लाइट्स ज़िम्मेदार है।

यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की सह-लेखिका अरुनिमा मलिक के अनुसार, इसलिए हम लोगों को फ्लाइट से कम ट्रैवल करने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने 2050 तक हवाई यात्रा में कार्बन उत्सर्जन को 2005 के भी आधे स्तर तक लाने का संकल्प किया है। एयर ट्रांसपोर्ट एक्शन ग्रुप के अनुसार विमानों से होने वाला 80 फीसदी कार्बन उत्सर्जन 1500 किमी से अधिक की उड़ानों से होता है।

कोढ़ में खाज यह है कि पेरिस समझौता और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे ट्रंप साहब की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। उधर बढ़ते तापमान की वजह से ग्रेट बैरियर रीफ को काफी संकटों का सामना करना पड़ रहा है। ये दोधारी तलवार के माफिक है, ज़्यादा पर्यटन से ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन और ज़्यादा कार्बन से ज़्यादा नुकसान।

लब्बो लुआब यह है कि हम शैतान बच्चे हैं कुदरत के लिए। बस किसी दिन हमारा कान मरोड़ा जाएगा और दंड बैठक करवाई जाएगी।

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