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भेड़-बकरियों की तरह ट्रेनों में यात्रा करने वाले देश में अब भगवान शिव के लिए एक सीट आरक्षित

16 फरवरी को प्रधानमंत्री ने चन्दौली के पड़ाव से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये  ‘काशी महाकाल एक्स्प्रेस’ को हरी झंडी दिखाई। यह ट्रेन वाराणसी से इंदौर तक के लिए चलेगी और इसमें दो राज्यों (उप्र-मप्र) तीन ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर, (उज्जैन) ओंकारेश्वर, (इंदौर के निकट) और विश्वनाथ (वाराणसी) के दर्शन कराये जाएंगे। जो शिवरात्रि के ठीक एक दिन पहले याने आज 20 फरवरी को वाराणसी से 2:45 पर इंदौर के लिए रवाना हुई।

कैसी होगी ये ट्रेन

ट्रेन में 9 एसी, थ्री कोच, पेंट्री कार और दो ब्रेकवॉन कोच होंगे। हर बोगी में कॉफी और चाय की बेंडिंग मशीनें होंगी, जिसके लिए कोई पैसा नहीं देना होगा।

यह लखनऊ, कानपुर, बीना, भाेपाल, उज्जैन होते हुए इंदौर तक पहुंचेगी। इंदौर से बुधवार और शुक्रवार को उज्जैन, संत हिरदाराम नगर (भोपाल), बीना, कानपुर और लखनऊ होकर वाराणसी जाएगी। वाराणसी-इंदौर वाया इलाहाबाद-कानपुर-बीना (82403) ट्रेन रविवार को चलेगी। सोमवार को इंदौर पहुंचेगी।

महाकाल एक्सप्रेस

इस ट्रेन के हर कोच में दो-पांच सुरक्षाकर्मी तैनात होंगे और कुल 1080 सीटें होंगी। न्यूनतम किराया 1629 रुपये होगा। ट्रेन हफ्ते में दो दिन मंगलवार और गुरुवार को वाराणसी से चलेगी।

इस ट्रेन के दोनों छोरों पर HD कैमरे लगे हैं, जिससे सुरक्षा व्यवस्था सही तरह से चलेगी और साथ ही साथ बोगियों में ज़्यादा लाइटिंग और सामान रखने की अतिरिक्त शील्ड और चार्ज़िंग पॉइंट, डिस्प्ले बोर्ड लगे हैं।

मतलब इस ट्रेनों में कई खासियत हैं लेकिन सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाली ‘बोगी B5′ की सीट नम्बर ’64’ है।

उत्तर रेलवे प्रवक्ता दीपक कुमार ने कहा,

ऐसा पहली बार हुआ है जब एक सीट भगवान शिव के लिये आरक्षित और खाली रखी गई है सीट पर मन्दिर भी बनाया गया है ताकि लोगों को पता चले ये उज्जैन के भगवान महाकाल के लिए है। कुमार का कहना है इसे स्थायी तौर पर रखने का विचार किया जा रहा है।

क्या भगवान शिव के लिए सीट रखना ठीक होगा

पहले दिन ट्रेन में ॐ नमः शिवाय का संगीत बजाया गया और सभी को शिव चालीसा भी बांटा गया और प्रत्येक कोच में दो निजी गार्ड भी नियुक्त किये गये हैं जो कि यात्रियों को शाकाहार भोजन परोसेंगे।

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या भगवान शिव के लिए सीट रखना ठीक होगा। क्या यात्रा को शिवमय बनाना ही शिव में आस्था जगा पायेगा। क्या ट्रेन की एक पूरी बोगी जिसमें यात्री बैठ सकते हैं शिव के लिए रखना उचित होगा इस निर्णय को यदि आस्था के नाम पर स्थाई कर दिया जाये तब आस्था बची रहेंगी या आहत होंगी।

क्या आपने महाकाल, ओंकालेश्वर और वाराणसी में रहने वाले विश्वनाथ मन्दिरों का दर्शन किया है यदि नहीं तब आप उन मन्दिरों के परिसर से होते हुए उन मन्दिरों की सीढ़ियों को छूती नदियों तक जाईये। आप यदि आस्थावान हैं तब आपकी आस्थाएं आहत होंगी उन मन्दिरों और उन नदियों की दुर्दशा पर।

महाकाल एक्सप्रेस में शिव भगवान की सीट

आस्था से कहीं ज़्यादा राजनीति का ढकोसला

मन्दिर हों या फिर काशी महाकाल एक्सप्रेस की सीट नम्बर 64 का मंदिरनुमा दृश्य आस्थाएं नहीं बचा सकते।

मेरा मानना है आस्थाएं अंतर्मन की आवाज़ हैं। वह किसी शास्त्र किसी पुराण किसी मंदिर के वजूद पर नहीं टिकीं है। वह या तो है या नहीं है और यदि बोगी की सीट 64 को ज्यों का त्यों रखा जाये, तब उन यात्रियों की मनोदशा क्या होगी जिन्हें सिर्फ इसलिए वंचित रहना होगा कि वह सीट भगवान शिव की है।

क्या ज़रूरी है उस ट्रेन में कोई शिव भक्त ही सफर कर रहा हो। खुद से प्रश्न पूछिये कितने धार्मिक स्थान कितनी यात्राएं हैं जहां आप आस्था के नाम पर ही गये हैं। मुझे डर है उस बोगी की हालत आगे जाकर किसी बूढ़े बरगद सी हो जाएगी जिसे आस्था के धागों से लपेट दिया गया है।

वह शिव जिन्होंने अमृत मंथन में भी गरल (ज़हर) चुना। उन्हें हम सीट दे रहे हैं और ये आस्था से कहीं ज़्यादा राजनीति का ढकोसला है।

क्या उत्तरप्रदेश में चुनावी त्योहार नहीं आ रहा है? प्रसाद इस सीट के नाम पर शिव (हिन्दू भक्तों) के नाम पर नहीं बांटने की तैयारी है। भारत में 136 करोड़ की आबादी पर कुल 12617 ट्रेन हैं। वहां आप ट्रेन की कमियों और यात्रियों की असुविधा का जोड़ बिठा सकते हैं और क्या इस सम्भावना को नकारा जा सकता है कि ट्रेन में गैरहिन्दू सफर नहीं करेंगे।

क्या इस ट्रेन की हाइटैक सुविधाओं में थोड़ी कटौती कर साधारण ट्रेनों में बोगियां नहीं बढ़ा देनी चाहिए थीं। जहां भेड़- बकरियों से भी कहीं ज्यादा भयावह स्थिति में यात्री सफर करते हैं।

मैं नास्तिक नहीं हूं लेकिन मुझे ऐसी आस्थाओं से डर लगता है। मैं काशी महाकाल एक्सप्रेस के चलने से खुश हूं लेकिन यदि ऐसा कुछ स्थायी होता है, मेरा मानना है तब आस्थाएं सच ही आहत होंगी। 

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