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“गणतंत्र दिवस के रोज़ पास वाले स्कूल में फूहड़ गाने बज रहे थे”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

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गणतंत्र दिवस के रोज़ अपने घर पर बैठे हुए विद्यालयों के कार्यक्रमों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। गणतंत्र दिवस के अवसर पर शुरुआत झंडा रोहण के साथ ही राष्ट्रगान से हुई, मन देशभक्ति से परिपूर्ण हो गया।

किन्तु कुछ ही पलों में यह क्या? फिल्मी गीतों से महफिल सजने का आभास सा हुआ और यह क्रम ऐसा चला कि लगने लगा जैसे गणतंत्र दिवस नहीं, बल्कि फिल्मी नगमों का दिवस मनाया जा रहा हो यहां पर।

“दुपट्टा मैडम का” और “तेरी आंखों का काजल” जैसे फूहड़ गानों से क्या बच्चों में देशप्रेम जगाया जा सकता है?

मन में एक सवाल घर कर गया है कि क्या सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर रंगारंग कार्यक्रमों के माध्यम से इन विद्यालयों में बच्चों को शिक्षा मिल रही है? क्या इस ढंग से देश के प्रति सम्मान, देश की संस्कृति और सभ्यता का विकास हो पाएगा?

विद्यालयों का ऐसा माहौल चिंताजनक है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ है। अक्सर अपने गाँव के विद्यालयों में ऐसा माहौल इस अवसर पर देखने को मिल ही जाता है।

इस अवसर पर तो मौका मिलता है कि हम स्टूडेंट्स में देशभक्ति की भावना विकसित कर सकें और सास्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से स्टूडेंट्स को अपने देश के संस्कार और संस्कृति से अवगत कराया जाए। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में हुए आंदोलनों इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाए मगर ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों का ऐसा माहौल चिंताजनक है।

इसके पीछे यदि देखा जाए तो कारण अज्ञानता है। विद्यालयों को शिक्षा का माध्यम तो समझा जाता है मगर प्राइवेट स्कूलों को खोलने वाले लोगों को यह पता ही नहीं होता है कि उन्हें शिक्षा के साथ अपने स्टूडेंट्स को संस्कार किस प्रकार दिया जाना चाहिए।

ज़्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय खोलने में समर्थ वही लोग होते हैं, जिनके पास रोज़गार का ज़रिया नहीं होता है। उनका उद्देश्य केवल रोज़गार होता है, जिसके चलते वे इस विषय में शिक्षा के अतिरिक्त सोच ही नहीं पाते हैं।

मेरे हिसाब से जब भी किसी स्कूल के लिए अप्रूवल मिले, उसी समय उन्हें यह समझाया जाना चाहिए कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों से बच्चों में संस्कृति का विकास होता है। ऐसे में उन्हें सांस्कृतिक बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ना कि फिल्मी।

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