इन खबरों को पढ़िए और बेपनाह सर्दी के इस मौसम में भी झारखंड की इस तपिश भरी पीड़ा को महसूस करिए। झारखंड के उस दर्द को भी महसूस कीजिए, जिसे हमारे तथाकथित रहनुमाओं ने कभी महसूस नहीं किया। अगर किया भी तो उसे अछूत समझकर छोड़ दिया।
महसूस कीजिए सूबे की उन बेकस माओं की आहों को, महसूस करिए दर्द उन बेटियों की, जिनकी चीखें शोषण, दमन और बलात्कार की पीड़ा के कारण हलक में ही घुटकर रह गईं। अगर फिर भी महसूस नहीं कर पा रहा है तो कल्पना कीजिए कि हमारे अपनों के साथ अगर ऐसा हो जाए तो आप क्या महसूस करेंगे।
मैं जानता हूं कि बस यही बात दिल पर लगेगी, क्योंकि जिन्हें रोज़ बेचा जा रहा, जिनके शरीर की कीमत दिल्ली, मुंबई सहित दूसरे मेट्रोपोलिटन सिटी के बंद कमरों में मज़दूरी करने, चाइल्ड पॉर्न बनाने, अंगों की तस्करी करने और सेक्स स्लेव बनाने के लिए तय की जा रही है, वे तो हमारी आपकी कोई है ही नहीं।
लेकिन अब आप इसी बात से अंदाज़ा लगाइए कि हमारी सिस्टम और सरकार कहां सोई है? यही नहीं आज की तारीख में कोल्हान और संथाल मानव तस्करी के अभिश्राप से सबसे ज़्यादा अभिशप्त प्रमंडल हैं।
मेरे बड़े भाई नंदलाल नायक, जो मशहूर अंतरराष्ट्रीय फिल्मकार हैं, उन्होंने मानव तस्करी को टारगेट करके एक फिल्म बनाई है, ‘धुमकुड़िया’, यकीन मानिए फिल्म देखकर ना केवल आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे, बल्कि इस त्रासदी को आप समझ भी पाएंगे।
इस फिल्म में दिखाई गई त्रासदी को देखकर आपकी आंखें भर आएंगी लेकिन अफसोस तत्कालीन सूबे की सरकार ने इस फिल्म और फिल्मकार दोनों को उपेक्षित रखा। दुनिया के तमाम मुल्कों और राज्यों में फिल्म धूम मचाती रही लेकिन सूबे की सरकार ने ना तो इस फिल्म को राज्य की फिल्म पॉलिसी में रखा और ना ही कुछ सुविधाएं दी।
मसलन आज फिल्म की रिलीज़ की तारीख लंबी खींच चुकी है। बकौल नंदलाल नायक, अब तो सिस्टम से भरोसा ही उठ गया है। वह बताते हैं,
कभी-कभी तो हौसला ही टूटने लगता है। मैंने पलायन और मानव तस्करी जैसी मार्मिक सच्ची कहानियों को ही धुमकुड़िया फिल्म के माध्यम से पर्दे पर उतारा है, जो किसी भी सरकार के लिए सुधार के वास्ते एक नज़ीर बन सकती थी।
वहीं सीता दीया जो ‘दीया सेवा संस्थान’ की संचालिका हैं, उनकी जानकारी ने तो दहला कर ही रख दिया। उनके अनुसार अब तो झारखंड के बेच दिए गए बच्चों का इस्तेमाल अंगों की तस्करी और चाइल्ड पॉर्न बनाने के लिए भी किया जा रहा है।
उनके अनुसार एक बार बाहर गए बच्चे को लाना तो मुश्किल और दुरूह कार्य होता ही है, साथ ही उनका पुनर्वास भी बड़ी समस्या बन जाती है। सही नीति और पॉलिसी नहीं होने के कारण मानव तस्करी के दलदल से निकाल दी गईं लड़कियां पुनः उसी दलदल में समा जाती हैं। अपनी कोख में तमाम खनिजों को दबाए इस समृद्ध राज्य की यह कैसी विडम्बना है।