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“मेरा दोस्त भीड़ के बहाने लड़कियों को गलत तरीके से छूता था”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

हाल ही में शाम को जब मैं अपने दोस्त के साथ चाय की दुकान पर था, तो वहां कुछ लड़के मेरे शहर जमशेदपुर मके गोपाल मैदान में लगने वाले टुसू मेले की बात कर रहे थे। यह मेला मकर संक्रान्ति के अवसर पर लगता है।

उनमें से एक ने छाती चौड़ी करते हुए मेले का अपना अनुभव बताया कि कैसे उसने मेले में भीड़ का फायदा उठाकर एक लड़की को गलत तरीके से छूआ था और बिना पिटे आराम से निकल गया था। उसकी यह बात सुनकर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या हमारे शहर में लड़कियां सुरक्षित हैं?

महिला सुरक्षा पर शर्तें लागू कर दी जाती हैं

मेरा शहर जमशेपुर, जहां किसी एक जाति, धर्म और समुदाय के लोग बहुतायत में नहीं रहते हैं, यहां सभी जाति और धर्म के लोग रहते हैं।

वे हर मौके पर साथ भी आते हैं, चाहे वह 3 मार्च को जे.एन. टाटा के जन्मदिन के अवसर पर जुबली पार्क की खूबसूरती देखने के लिए हो या फिर दुर्गा पूजा में पंडाल घूमना, वो भी रात भर। सभी लोग साथ खुशियां मनाते हैं और पुलिस प्रशासन बहुत अच्छे से इतने लोगों को संभालते हैं।

मगर जब बात लड़कियों की सुरक्षा की हो तो उस पर कुछ शर्तें लागू होती हैं। लड़कियां जमशेपुर की सड़कों पर बहुत ही बेफिक्र होकर घूमती नज़र आती हैं, चाहे वे गोलगप्पे के ठेले हों या सिटी सेंटर मॉल।

वहीं, जब जमशेपुर वुमेन कॉलेज के सामने पिंक रंग की पेट्रोलिंग गाड़ी नज़र आती है, तो मन में सवाल उठता है।

मेरा शहर महलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

अभी जब मैं यह लेख लिख रहा हूं, तो मेरे दिमाग में अखबार की कई सारे खबरें घूम रही हैं, जो मैं हर कुछ दिनों में देखता हूं। मैं जमशेदपुर के सभी मुद्दों पर नहीं लिख सकता, क्योंकि मैं कोई क्राइम फाइल्स तो नहीं लिख रहा मगर दिमाग में कुछ खबरें घर कर जाती हैं, जो आपको और आपके परिवार को लेकर डर पैदा करती हैं।

चाहे वो स्टेशन से 3 साल की बच्ची को उठाकर दूर ले जाकर बलात्कार करके सर धड़ से अलग करके मैदान में फेंक देने की घटना हो, एक लड़की की लाश को सूटकेस में भरकर टाटानगर स्टेशन पर रख देने वाली घटना हो, चलती ऑटो में लड़की के साथ रेप करने, अपने दोस्त के साथ घूमने आई लड़की को अगवा कर बलात्कार करने की घटना हो या फिर पार्क में घूमने आई लड़कियों के साथ इव टीज़िंग की घटना हो, ये सभी घटनाएं मुझे परेशान करती हैं।

स्थाई सरकार का हवाला देते हैं राजनीतिक दल

नवंबर 2000 को झारखंड राज्य के गठन होने से आज तक राज्य ने कई राजनीतिक उठा पटक देखी है। लंबे समय तक राजनीतिक दलों ने यह कहा कि यहां कोई स्थाई सरकार नहीं है मगर ये बातें कितनी सच हैं, हमें पता है।

राज्य सरकार के ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी के होते हुए भी लड़कियों का सड़कों पर घूमना एक भयानक हादसा जैसा है। शायद ही ऐसी कोई लड़की हो जिसके साथ इव टीजिंग की कोई घटना ना हुई हो।

जमशेदपुर शहर के आसपास के ओद्योगिक क्षेत्रों में शाम के 7 बजे के बाद लड़कियों के लिए अकेले घूमना नर्क जैसा ही होता है, क्योंकि सरकार की दया से शहर में स्कूल अस्पताल खुले ना खुले, शराब की दुकानें ज़रूर खुली हैं।

हम और आप में से ही हैं इव टीज़िंग करने वाले लोग

फोटो साभार- सोशल मीडिया

बेरोज़गारी में डूबा हमारा राष्ट्रभक्त युवा शाम के बाद अपने मित्रों के साथ शराब जैसे अनमोल अमृत को पीकर गैंग्स ऑफ वासेपुर का सरदार खान बन जाता है और फब्बतियां कसता हुआ बोलता है, “कोई छुआ नहीं है क्या?”

कभी-कभी लोगों को लगता है कि लड़कियों की शादी जल्दी कर देने से ऐसी समस्या नहीं होगी मगर वे यह भूल जाते हैं कि इव टीज़िंग करने वाले ये सारे लोग हम में से ही हैं, जो उम्र के साथ और विकराल हो जाते हैं।

ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद डरावनी

जमशेदपुर के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की अगर बात की जाए, तो वहां हालात बहुत अच्छी है, क्योंकि वहां लोक लाज में रेप को छोटी-मोटी घटना समझकर रिपोर्ट ही दर्ज़ नहीं कराई जाती है।

समझ नहीं आता कि किसी टुच्चे नेता की ओर फेंके गए जूते ओर स्याही सुर्खियां बटोर लेती हैं, मगर डायन बिसाही के नाम पर किसी महिला को नंगा कर जब गाँव में घुमाया जाता है, तब वे खबरें किसी भी अखबार की सुर्खियां नहीं बनती हैं।

किसी अखबार के तीसरे पन्ने के खोपचे में शायद ऐसी खबरों को जगह दी जाती हैं। शायद अखबार वाले भी अपने शहर का असली रूप सामने नहीं लाना चाहते हैं।

स्कूल हो या कॉलेज, घर हो या सड़क, अपने पहचान वाले हों, अजनबी लड़कियों को परेशानी तो होती ही है। कुछ बोलती हैं तो कुछ चुप रह जाती हैं। लड़कियां कॉलेज पहुंच जाने के बाद जमशेपुर के लड़कों के लिए माल बन जाती हैं। पता नहीं यह किस संदर्भ में लड़कियों के लिए कहा जाता है।

शायद ओद्यौगिक क्षेत्र में जैसे लोहे के बने सामान को माल बोलते हैं। इसलिए मेरे शहर के लड़के, लड़कियों को माल बोलते हैं, क्योंकि लड़कियां भी लोहे जैसी मज़बूत हैं। जब किसी को पीटती हैं, तो बस पीटती ही रहती हैं।

थोड़ा अजीब है मगर सच है। मुझे हसीं आती है उन लोगों पर जो हाथों में मोमबत्ती जलाकर मार्च करते हैं। समझ नहीं आता कि आप सब किसको सज़ा दिलवाना चाहते हैं।

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