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क्या भगत सिंह को फांसी 14 फरवरी के दिन हुई थी?

14 फरवरी सुनकर ही आपके मुंह से निकलेगा वैलेंटाइन डे। जी हां, ये है मोहब्बत का महीना जिससे जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। वैलन्टाइन एक कैथोलिक सन्त थे, जिनकी शहादत (14 फरवरी) का ज़िक्र कैथोलिक विश्वकोश में किया गया है। अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों में यह एक अवकाश का दिन होता है, इसे परम्परागत तरीके से प्यार का इज़हार कर के मनाया जाता है।

हम भी 14 फरवरी से अछूते नहीं रहे हैं। लेकिन भारत में पिछले कुछ सालों से जैसे ही 14 फरवरी आता है वैसे ही अलग-अलग तरह के भ्रम फैलाये जाने लगते हैं। 14 फरवरी को शहीद भगत सिंह के शहीद दिवस के तौर पर ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से फैलाया जाने लगता है। जबकि उनको फांसी 23 मार्च 1931 को दी गई थी।

वहीं अंग्रेज़ी कैलेंडर जैसे ही नये साल की तरफ बढ़ता है, तो वहां किसी को तुलसी विवाह याद आ जाता है, तो किसी को कुछ और। फिर इसी तरह सिलसिला चलता चला जाता है।

14 फरवरी को आपको यहां-वहां जोड़ों को पकड़ते-पीटते सक्रिय कार्यकर्ता मिल जायेंगे और ये कहते-सुनते भी कि यह हमारी संस्कृति नहीं है। लेकिन क्या वाकई हम अपनी संस्कृति बचा पाये हैं और बचा लेने की कवायद है भी क्यों?

प्रतीकात्मक तस्वीर

किसी को प्रेम करने से भला संस्कृति किस तरह खतरे में पड़ सकती है। यूं भी प्रेम आपसी समझ, सामंजस्य और समर्पण की बुनियादी जड़ों पर खड़ा होता है, तो क्या प्रेम की जड़ें संस्कृति के पैर उखाड़ सकती हैं? नहीं, बिलकुल भी नहीं।

ऐसी किसी बात को देशभक्त भगत सिंह की शहादत से जोड़ना बहुत हास्यपद है।

क्या प्रेम का क्रांति से कोई संबंध नहीं है?

मान लीजिए 14 फरवरी शहीद दिवस होता भी तो क्या प्रेम का क्रांति से कोई संबंध नहीं है? यदि हां, तो आज आपके सामने भगत सिंह के लिखे शब्द दोहराती हूं। भगत सिंह ने सीताराम बाज़ार हॉउस में बैठकर सुखदेव को एक पत्र में लिखा था। जिसमें उन्होंने लिखा,

मैं यह कह सकता हूं की एक युवक-युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाये रख सकते हैं।
5 अप्रैल 1929 (इस पत्र को शिव वर्मा लाहौर लेकर गये)

वहीं भगतसिंह के दस्तावेज़ों में एक जगह लिखा मिलता है,

पराधीन भारत में प्रेम को गले लगाना ठीक नहीं लेकिन अगर अगला जन्म जैसा कुछ होता है, तो मैं अपनी पूरी ज़िंदगी प्रेमिका की बाहों में बिताना चाहूंगा।

और एक जगह वे सुखदेव को ही इस पत्र में कहते हैं,

किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूं। हां, यह मेजिनी था। तुमने अवश्य ही पढ़ा होगा की अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की याद वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह, यही नहीं कि किसी एक से मज़बूत हो गया, बल्कि सबसे अधिक मज़बूत हो गया।

कहने का सीधा मतलब इतना है कि प्रेम और क्रांति एक ही है एक-दूसरे से कोई अलग नहीं।

भगत सिंह

इस दिन हुई थी भगत सिंह को फांसी

भगत सिंह को सांडर्स की हत्या के आरोप में 23 मार्च 1931 को उनके साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर में फांसी दी गई थी और यह कोई कही-सुनी बात नहीं है।

रिवॉल्यूशनरी एंड द ब्रिटिश राज में श्री राम बक्शी लिखते हैं,

14 फरवरी 1931 में पंडित मदन मोहन ने वॉयसराय को टेलीग्राम किया और अपील की कि भगत सिंह,राजगुरु, सुखदेव को दी गई फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया जाये।”

एम.एस गिल अपनी किताब ‘ट्रायल्स दैट चेंज हिस्ट्री: फ्रॉम सो केट्स टू सद्धाम हुसैन में लिखते हैं,

स्पेशल ट्रायब्यूनल कोर्ट ने 7 अक्टूबर 1930 को भारतीय दंड सहिता की धारा 121 और 302 और एक्सप्लोसिव सब्सटेंस एक्ट 1908 की धारा 4(B) ओर 6(F) के तहत बेहद ठंडी हवा में ज़हर उगला और भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की मौत की सज़ा का एलान किया।

हिस्ट्री ऑफ सिरसा टाउन में जुगल किशोर गुप्त ने लिखा लाहौर षड्यंत्र मामले में  7 अक्टूबर 1930 को ट्राइब्यूनल ने सज़ा का एलान किया। 18 फरवरी 1931 में सिरसा के लोगों ने एक बड़ी सभा का आयोजन किया जिसमें मूलचंद कडारिया ने भगतसिह को याद कर उनकी कविताएं पढ़ी।

‘हज टू यूटोपिया: हाउ द दर मूवमेंट चार्टेड ग्लोबल रेडिकलिज़्म एंड अटेम्पटेड टू ओवर थ्रो द ब्रिटिश एम्पायर’ में माईया रामनाथ ने लिखा है कि  7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह साफ है कि भगतसिंह को फांसी 14 फरवरी को नहीं दी गयी थी। लेकिन मेरा प्रश्न है, एक बार खुद से ज़रूर पूछिये 23 मार्च यानी कि उनके शहीद दिवस पर आप ऐसा क्या ही करते हैं, जो आपकी भावनाएं 14 फरवरी को आहत हो जाएं।

कभी पढ़ने बैठेंगे तो जान पाएंगे क्रांति, हर परिस्थिति में क्रांति होती है। फिर चाहे आप वैलन्टाइन से प्रेम कर किसी को प्रेम जता लीजिये या फिर किसी विचार से आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी को गले लगा लीजिये।
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नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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