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क्या हम कभी प्यार करने की आजादी को हासिल कर सकेंगे?

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प्यार, इश्क, मोहब्बत इन शब्दों को सुनकर हर किसी का मन तरह-तरह के दृश्य बनाने लगता है। प्यार करने, प्यार समझने, प्यार को निभाने का हर किसी का अपना एक तरीका होता है, जो हमें एक दूसरे से विपरीत और अलग बनाता है।

वैसे भी बचपन से बॉलीवुड की रोमांटिक कहानियों को देखकर, हम जैसे युवाओं का दिल प्यार करने और प्यार पाने को बेताब रहता है लेकिन हमारे समाज में कुछ ऐसी सच्चाई आज भी रहती हैं, जिनके पार देख पाना आज भी हम जैसे युवाओं के लिए संभव नहीं है।

नफरत और जातिवाद के बीच पिसता प्यार

आज के इस आधुनिक दौर में भी भारत के लोगो के आगे वही पुरानी दीवारें खड़ी हुई हैं, जो सदियों से लोगों को प्यार करने से रोकती आई हैं। 21वीं सदी के इस भारत में आज भी लोग प्यार के ऊपर जाति अथवा धर्म को ही तरज़ीह देते हैं। यही नहीं हमारे समाज में आज भी ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं बड़े स्तर पर हो रही हैं लेकिन हमें इसकी परवाह तक नहीं। आज नफरत और जातिवाद की राजनीति ने प्यार को और कठिन बना दिया है।

राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव-पार्वती जिनकी यह देश पूजा करता है और जिनकी प्रेम कहानियां टीवी पर देख-देखकर हम सभी बड़े हुए। वही लोग  वैलेंटाइन्स डे के दिन उसी धर्म का चोला पहनकर प्रेमी जोड़ों की पिटाई करने वाले काश एक बार उस धर्म में प्यार की महानता का ज्ञान ले पाते।

 वो मेरी जिंदगी से अब दूर जा चुकी है

मुझे याद है जब 8 महीने पहले मुझे पहली बार प्यार का एहसास हुआ था। कुछ समय तो मुझे ये समझने में लग गया कि क्या ये प्यार है या फिर सिर्फआकर्षण। फिर मैंने सोचा कि क्या फर्क पड़ता है और पहला कदम उठाने का फैसला किया। लेकिन पहला कदम उठाने से पहले ही मेरे पैर कांपने लगे और धर्म की दीवार सामने खड़ी दिखाई देने लगी। अगर मैं अपने दिल की बात मानकर प्यार की झील में छलांग लगा देता, तो शायद झील एक सूखा कुंवा बन जाती जिसमें, मैं सर के बल गिर पड़ता।

मैंने अपने प्यार का गला घोंट कर लव ज़िहादी का तमगा अपने सर पर ना लेने का फैसला कर लिया। मतलब कभी मैंने उसे अपने दिल का हाल ही नहीं बताया और अब वह मेरी ज़िदगी, मेरे शहर और तो और मेरे राज्य से भी बहुत दूर जा चुकी है और हो सकता है कि जीवन में उससे अब कभी मुलाकात ही नहीं हो।

मेरी यह कहानी तो बहुत ही सिंपल सी थी लेकिन यकीन मानिए देश में ऐसी करोड़ों प्रेम कहानियां हैं, जो ऐसी ही किसी दीवार के आगे लड़कर टूट चुकी ह जिनका दर्द मुझसे कहीं ज़्यादा है लेकिन इनका  ज़िक्र कभी सुनाई नहीं देगा।

इसका अंत क्या होगा मुझे नहीं मालूम और अब सोचने की इच्छा भी नहीं होती क्योंकि मेरा पहला प्यार तो मुझसे दूर जा ही चुका है। अगर मैं कहूं कि अच्छी शिक्षा प्रणाली और अच्छी सरकार से यह सब दूर हो जाएगा तो आपको मेरी बात बेमानी लगेगी, जो कि सही भी है। मैं बस दुआ ही कर सकता हूं कि शायद कभी ऐसा दिन आए जब लोग प्यार को समझ कर खुद भी प्यार करें और दूसरों को भी करने दे।

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