Site icon Youth Ki Awaaz

अबॉर्शन पर बनने वाले नए कानून से क्या कुछ बदलेगा

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने MTP एक्ट 1971 को संशोधित कर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) बिल 2020 को मंजूरी दे दी अगले सत्र में जिसके पारित होने की पूरी संभावना है।

इस बिल के तहत अब विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है, जिसमें गर्भपात किया जाना वैध होगा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई के एक मामले पर भ्रूण में असामान्यता और जान का खतरा होने पर 24 हफ्ते में गर्भपात की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

कुछ परस्थितियों में गर्भवती महिलाओं को जान का खतरा होता है और अपनी जीवन रक्षा का अधिकार सभी का है।

कुछ बातें जो आपको जाननी चाहिए

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

महिला स्वास्थ्य के लिए हितकारी होगा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी बिल, MTP एक्ट 1971 में सुधार लाएगा, जो महिला स्वास्थ्य के लिए काफी कारगर साबित होगा। इस एक्ट के तहत गर्भपात की सीमा 12 हफ्ते तक है, जिसमें विशेष परिस्थिति में अनुमति लेकर गर्भपात 20वें हफ्ते में करवाया जा सकता है। चर्चा इस बात पर अधिक हो रही है कि इस बिल के तहत इसकी सीमा को बढ़ाकर 24 हफ्ता कर दिया गया है।

MTP एक्ट 1971 के तहत पहले 12 हफ्ते तक बगैर किसी अनुमति के और विशेष परिस्थिति में 20वें हफ्ते में (बलात्कार, अजन्मे बच्चे में गंभीर असमानताएं होने पर) गर्भपात किया जाता था। अब यह 24 हफ्ता हो जाएगा। (24वें हफ्ते के बाद जान का खतरा कम हो जाता है।)

गर्भपात के लिए शादीशुदा दंपतियों को साबित करना होगा कि उनके गर्भनिरोध के उपाय फेल हुए हैं। अविवाहितों के लिए कोई कानून अब तक नहीं था। गर्भपात के लिए मंज़ूरी तभी दी जाएगी, जब यह सिद्ध होगा कि आने वाले बच्चे में किसी भी प्रकार की गंभीर समस्या है।

इसके अलावा विशेष परिस्थिति जैसे- बलात्कार, सगे सम्बन्धियों द्वारा दुष्कर्म और शारीरिक तौर पर अक्षम आश्रित महिलाओं को गर्भपात का प्रावधान।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 की खामियां

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज के समय में चिकित्सा की पद्धति बदल चुकी है और ऐसे में MTP एक्ट 1971 के तहत जो भी प्रवाधान हैं, उनकी जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं। जैसे- 20वें महीने तक भ्रूण का मस्तिष्क विकसित नहीं होता है। ऐसे में विषम परिस्थितियों में भी गर्भपात सम्भव नहीं था।

वहीं, MTP एक्ट 1971 अविवाहित महिलाओं को गर्भपात की अनुमति नहीं देता और अधिकतम परस्थितियों में अविवाहित महिलाओं के गर्भपात का प्रतिशत ही ज़्यादा है लेकिन कानून में उल्लेख नहीं होने से सुरक्षित गर्भपात सम्भव नहीं हो पाता था और नाम और पहचान छुपाने की ज़रूरत भी अवैध संस्थाओं को बढ़ा रही हैं।

इस बिल में मेडिकल अधिकारी की सक्रिय भूमिका है, क्योंकि यह बिल 24 हफ्ते की अनुमति देता है, जिससे लिंग परीक्षण सरल हो जाएगा।

परद दर परद जटिलताएं हैं

सुप्रीम कोर्ट। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अधिकतम मामलों में होता यह है कि याचिका दायर करने, सुनवाई और फैसलों आदि में गर्भधारण के पहले हफ्ते गुज़र जाते हैं और भ्रूण बौद्धिक रूप से कितना विकसित हुआ है, यह 20 हफ्ते बाद ही मालूम हो पाता है।

उदाहरण के तौर पर पिछले 4 सालों में 40 याचिकाएं दायर हुईं, जिनमें 33 बलात्कार के मामले थे। इनमें देखा गया कि डॉक्टर्स ने उनके स्वस्थ्य होने पर शंका ज़ाहिर की थी। ये परिस्थितियां गर्भवती महिलाओं को मानसिक और शाररिक रूप से भी कमज़ोर बनाती हैं।

26 देश जिनमें इजिप्ट, थाईलैंड और फिलीपींस शामिल हैं, वहां गर्भपात सम्बन्धित कोई कानून ही नहीं है। वहीं, श्रीलंका जैसे देश में जान का खतरा होने पर ही इसकी अनुमति दी जाती है।

2017 की रिपोर्ट अनुसार 59 देश ही (इलेक्टिव) निर्वाचन प्रक्रिया के तहत गर्भपात की अनुमति देते हैं, जिनमें से सिर्फ 7 ही देश जैसे- चीन, कनाडा, सिंगापुर, नॉर्थ कोरिया, यूनाइटेड स्टेट्स और वियतनाम ही 20 हफ्ते बाद गर्भपात की अनुमति देते हैं

वहीं, भारत ने इस लिहाज से एक नया और विकसित पद्धति को अपनाया है। मेडिकल साइंस समय के साथ चलने को अग्रसर है और यह आज बेहद ज़रूरी भी है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत महिलाओं को मिलने वाले विशेष अधिकार

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी की कुछ खास बातें हैं, जो एक महिला को उसके अधिकार देती हैं। MTP 1971 से पहले गर्भपात क्रिमिनल सेक्शन 312 के तहत अपराध माना जाता था।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल के तहत विशेष परस्थितियों में 24 हफ्ते तक गर्भपात किया जा सकेगा, जिनमें दो मौजूदा डॉक्टर्स से सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी होगा। इस संशोधन में विवाहित, अविवाहित (पहले शामिल नहीं थी), रेप सर्वाइर और दिव्यांग नाबालिग को शामिल किया जाएगा।

गर्भपात  सम्बन्धित कोई भी व्यक्तिगत जानकारी जैसे नाम, पता, उम्र किसी के साथ नहीं बांटी जाएगी और ठीक 5 महीने बाद उस जानकारी को नष्ट कर दिया जाएगा। गर्भपात के लिए भ्रूण संबंधित किसी भी विषमता में ऊपरी जांच को मानक नहीं माना जाएगा। मेडिकल बोर्ड के संघटक, सम्बन्धित विवरण कानून के तहत ही गर्भपात किया जाएगा।

मैं इस कानून को बेहद कारगर समझती हूं, क्योंकि इससे महिलाओं और लड़कियों को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार मिलेगा ओर गैरकानूनी तौर पर गर्भपात से निज़ात भी मिलेगी लेकिन भारत अपनी GDP का 2% ही स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है। वह भी तब, जब स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों, की ही भारी कमी है।

हमारे भारत में 12% मौतें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के दौरान होती हैं। ऐसे में ज़िम्मेदारी बनती है लोगों को स्वास्थ्य की जानकारी दी जाए। गर्भवतियों के पोषण सम्बन्धित सभी ज़रूरतों को पूरा किया जाए।

संदर्भ- https://bit.ly/2V3AEFH


नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

Exit mobile version